इलाहाबाद हाईकोर्ट को 'उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट' के रूप में संदर्भित करने की मांग को लेकर याचिका दायर

Update: 2024-04-16 05:41 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई। उक्त याचिका में केंद्र सरकार और अन्य प्राधिकारियों को सभी अधिसूचनाओं, संचार, निर्णय, आदेश और फरमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट को 'उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट' के रूप में संदर्भित करने का निर्देश देने की मांग की गई।

लखनऊ के रहने वाले वकील दीपांकर कुमार द्वारा दायर जनहित याचिका में हाईकोर्ट के अधिकारियों को इसके नियमों (इलाहाबाद हाईकोर्ट नियम, 1952) का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट नियम करने और अपने आदेशों/निर्णय, नोटिसों और अधिसूचनाओं में हाईकोर्ट के 'उचित नाम' का उल्लेख करने का निर्देश देने की भी मांग की गई।

जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि चूंकि देश के सभी हाईकोर्ट संविधान की रचना हैं, न कि 'आक्रमणकारी' ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए किसी कानून या चार्टर द्वारा बनाए गए। इसलिए संविधान अस्तित्व में आने के बाद यह उनका कर्तव्य है कि सरकार मौजूदा हाईकोर्ट का नाम उस राज्य के नाम पर रखेगी, जिससे वे संबंधित हैं।

जनहित याचिका में याचिकाकर्ता ने दृढ़ता से तर्क दिया कि हाईकोर्ट के 'उचित' नाम को लेकर भ्रम की स्थिति के कारण जनता, राज्य के पदाधिकारियों, साथ ही हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों के जजों और वकीलों के बीच अनिश्चितता पैदा हो गई। विशेष रूप से भ्रमित हैं, कुछ लोग इसे "इलाहाबाद हाईकोर्ट" कहते हैं, जबकि अन्य "उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट" का विकल्प चुनते हैं।

1964 के विशेष संदर्भ नंबर 1 में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट के रूप में संदर्भित किया और उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के रूप में हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ का नाम रखा गया।

जनहित याचिका में कहा गया कि फैसले को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि राष्ट्रपति इस हाईकोर्ट के नाम को लेकर भ्रमित नहीं हैं और संविधान पीठ की स्थिति भी ऐसी ही है।

इस पृष्ठभूमि में, जनहित याचिका में केंद्र सरकार और अन्य प्राधिकारियों को सभी अधिसूचनाओं में इलाहाबाद हाईकोर्ट को 'उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट' के रूप में संदर्भित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया।

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