सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही में समझौता करके हिंदुओं के बीच विवाह को समाप्त नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की कार्यवाही के समय किए गए समझौते के माध्यम से दो हिंदुओं के बीच कानूनी विवाह को समाप्त नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने माना कि ऐसा कोई भी विवाह केवल हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत सक्षम न्यायालय द्वारा पारित डिक्री द्वारा ही भंग किया जा सकता है।
जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस सैयद कमर हसन रिजवी की पीठ ने फैसला सुनाया,
चूंकि पक्षकारों के बीच विवाह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधानों द्वारा शासित होते हैं, ऐसे विवाह को भंग करने का एकमात्र तरीका अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के अनुसार सक्षम न्यायालय द्वारा उचित डिक्री पारित करना है।”
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
भोजराज सिंह सहायक अध्यापक थे, जिनकी सेवानिवृत्ति के बाद मृत्यु हो गई। याचिकाकर्ता-अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसने मृतक के साथ विवाह किया और कई वर्षों तक उसके साथ रही। इसलिए वह पारिवारिक पेंशन की हकदार है। तर्क दिया गया कि मृतक की पहली शादी सफल नहीं रही और वे अलग हो गए थे।
मृतक की पहली पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही में समझौता कर लिया। यह तर्क दिया गया कि मृतक से अलग होने के बाद उसके पास कोई अधिकार नहीं था। भले ही अपीलकर्ता ने उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया, लेकिन पेंशन के लिए उसके दावे को अधिकारियों ने खारिज कर दिया।
अपीलकर्ता की रिट याचिका खारिज करते हुए एकल न्यायाधीश ने कहा कि पहली पत्नी मृतक कर्मचारी की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है और उसकी मृत्यु के समय उनका तलाक नहीं हुआ था। तदनुसार, न्यायालय ने मृत कर्मचारी की कानूनी उत्तराधिकारी होने के नाते पहली पत्नी को दिए गए लाभ को बरकरार रखा। अपीलकर्ता-याचिकाकर्ता ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ एक विशेष अपील दायर की।
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पहली शादी तब भंग कर दी गई, जब सीआरसीपी की धारा 125 के तहत कार्यवाही में समझौता किया गया। बाद में मृतक और अपीलकर्ता के बीच विवाह संपन्न हुआ। तदनुसार, यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता मृतक की पारिवारिक पेंशन का हकदार है।
इसके विपरीत, पहली पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि उसके बाद के विवाह के आरोप किसी भी सबूत से प्रमाणित नहीं है और अस्पष्ट प्रकृति के हैं।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायालय के समक्ष विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या मृतक की पहली शादी सीआरसीपी की धारा 125 के तहत कार्यवाही में समझौते के माध्यम से भंग की जा सकती है और क्या पहली पत्नी की बाद की शादी मृत कर्मचारी की पारिवारिक पेंशन का दावा करने के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती है।
न्यायालय ने कहा कि चूंकि दोनों पक्ष धर्म से हिंदू हैं, इसलिए उनका विवाह केवल हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत सक्षम अदालत द्वारा पारित डिक्री द्वारा ही भंग किया जा सकता। 1955 के अधिनियम के अनुसार, मृतक और उसकी पहली पत्नी के बीच विवाह कायम है।
न्यायालय ने माना कि मृतक और उसकी पहली पत्नी के बीच विवाह विच्छेद के संबंध में सक्षम न्यायालय की घोषणा के बिना पहली पत्नी के पारिवारिक पेंशन के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता और उसकी बाद की शादी, यदि कोई हो, पारिवारिक पेंशन को अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकती।
केस टाइटल: रजनी रानी बनाम यूपी राज्य और 10 अन्य [विशेष अपील नंबर - 2024 की 56]