अनुच्छेद 12 के तहत क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम राज्य नहीं है, इसके खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्यता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-06-20 06:44 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य नहीं है, क्योंकि आश्रम के कार्यों को विनियमित करने या राज्य को इसके मामलों को नियंत्रित करने का अधिकार देने वाला कोई कानून नहीं है।

जस्टिस जे.जे. मुनीर ने सुरेश राम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और राम बचन सिंह बनाम मुख्य कार्यकारी अधिकारी खादी ग्रामोद्योग एवं अन्य के निर्णयों पर भरोसा किया, जहां इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि श्री गांधी आश्रम, क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम, मेरठ का मूल निकाय भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य नहीं है और आश्रम के खिलाफ कोई रिट सुनवाई योग्यता नहीं है।

सुरेश राम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत सहकारी समिति 'राज्य' है या नहीं, यह तय करते समय विचारणीय 6 कारक निर्धारित किए हैं।

उक्त कारक हैं:

(1) एक बात स्पष्ट है कि यदि निगम की संपूर्ण शेयर पूंजी सरकार के पास है तो यह इस बात का संकेत देने में काफी मददगार साबित होगा कि निगम सरकार का साधन या एजेंसी है। (एस.सी.सी. पृ. 507, पैरा 14)

(2) जहां राज्य की वित्तीय सहायता इतनी अधिक है कि निगम के लगभग पूरे व्यय को पूरा किया जा सके तो यह निगम के सरकारी चरित्र से प्रभावित होने का कुछ संकेत देगा। (एस.सी.सी. पृ. 508, पैरा 15)

(3) यह भी प्रासंगिक कारक हो सकता है कि निगम को एकाधिकार का दर्जा प्राप्त है या नहीं जो राज्य द्वारा प्रदत्त है या राज्य द्वारा संरक्षित है। (एस.सी.सी. पृ. 508, पैरा 15)

(4) गहन और व्यापक राज्य नियंत्रण का अस्तित्व यह संकेत दे सकता है कि निगम राज्य एजेंसी या साधन है। (एस.सी.सी. पृ. 508, पैरा 15)

(5) यदि निगम के कार्य सार्वजनिक महत्व के हैं तथा सरकारी कार्यों से निकटता से संबंधित हैं तो निगम को सरकार की संस्था या एजेंसी के रूप में वर्गीकृत करने में यह प्रासंगिक कारक होगा। (एस.सी.सी. पृ. 509, पैरा 16)

(6) 'विशेष रूप से यदि सरकार का कोई विभाग निगम को हस्तांतरित किया जाता है तो यह निगम के सरकार की संस्था या एजेंसी होने के इस अनुमान का समर्थन करने वाला मजबूत कारक होगा। (एस.सी.सी. पृ. 510, पैरा 18)

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता क्षेत्रीय गांधी आश्रम, गढ़ रोड, मेरठ में पर्यवेक्षक है तथा उसके बाद उसे श्री गांधी आश्रम, खादी भंडार, बड़ौत, जिला बागपत में स्थानांतरित किया गया। याचिकाकर्ता ने यूनियन बैंक और केनरा बैंक के शाखा प्रबंधक के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, जहां क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम, मेरठ के खाते रखे जाते हैं, जिसमें आश्रम की ओर से धन के दुरुपयोग और राणुका आशियाना प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में गलत सेल्स डीड निष्पादित करने के संबंध में शिकायत दर्ज कराई गई।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि जब जांच की गई तो क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम के सचिव ने उसे अपनी शिकायत वापस लेने की धमकी दी और आश्रम के बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन के आधार पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी।

प्रतिवादी के वकील ने याचिका की स्थिरता के संबंध में प्रारंभिक आपत्ति उठाई। यह तर्क दिया गया कि क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम, सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत रजिस्टर्ड सोसायटी होने के नाते राज्य का साधन नहीं है। यह तर्क दिया गया कि आश्रम किसी भी सार्वजनिक कार्य का निर्वहन नहीं करता है। रिट याचिका की स्वीकार्यता का बचाव करते हुए याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड अधिनियम, 1960 के प्रावधानों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि आश्रम ने इस कानून के तहत सार्वजनिक कर्तव्यों का पालन किया।

हाईकोर्ट का निर्णय

न्यायालय ने पाया कि यू.पी. राज्य सहकारी भूमि विकास बैंक लिमिटेड बनाम चंद्रभान दुबे एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उत्तर प्रदेश सहकारी भूमि विकास बैंक संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य है, जैसे कि यह उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम, 1965 के अंतर्गत समिति के रूप में पंजीकृत है, यह राज्य सरकार के वैधानिक नियंत्रण में है।

चंद्रभान दुबे मामले में राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश सहकारी संस्थागत सेवा बोर्ड का गठन किया, जिसने यू.पी. सहकारी समिति कर्मचारी सेवा विनियम, 1975 तैयार किया, जो बैंक के कर्मचारियों के अधिकारों को नियंत्रित और संरक्षित करता है, जिससे राज्य का व्यापक नियंत्रण स्थापित होता है।

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता-आश्रम का मामला चंद्रभान दुबे मामले में बैंक के मामले से अलग है, जस्टिस मुनीर ने माना कि लखनऊ में श्री गांधी आश्रम द्वारा नियंत्रित क्षेत्रीय गांधी आश्रम, मेरठ अनुच्छेद 12 के अंतर्गत 'राज्य' नहीं है, क्योंकि राज्य का इसके कामकाज पर कोई वैधानिक नियंत्रण नहीं है। इसके अलावा, 1965 के अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड सोसायटी होने के नाते इसके कामकाज को निर्देशित करने वाला कोई क़ानून नहीं है।

तदनुसार, न्यायालय ने माना कि क्षेत्रीय गांधी आश्रम, मेरठ भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य' नहीं है और रिट याचिका खारिज की।

केस टाइटल: प्रेम चंद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य [रिट - ए नंबर- 19131/2023]

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