पति अपने माता-पिता से अलग रहने का विकल्प चुनता है तो पत्नी द्वारा उनकी देखभाल न करना क्रूरता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-08-26 06:33 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि जब पति अपने माता-पिता से अलग रहने का विकल्प चुनता है तो केवल अपने माता-पिता की देखभाल न करना क्रूरता नहीं है।

अपीलकर्ता-पति ने मुरादाबाद के फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज द्वारा तलाक याचिका खारिज किए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पति ने प्रतिवादी-पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक के लिए अर्जी दी, क्योंकि वह उसके माता-पिता की देखभाल नहीं कर रही थी।

न्यायालय ने पाया कि कथित अपीलकर्ता ने खुद अपने माता-पिता से अलग रहने का विकल्प चुना था और चाहता था कि उसकी पत्नी उनकी देखभाल करने के लिए उनके साथ रहे। यह माना गया कि पत्नी द्वारा अपने ससुराल वालों की देखभाल करने में कथित विफलता प्रकृति में व्यक्तिपरक है।

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कि अपीलकर्ता ने कभी यह नहीं बताया कि पत्नी को उसके माता-पिता के प्रति किस स्तर की देखभाल की आवश्यकता है, कहा गया ,

“पति या पत्नी के वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने में विफलता वह भी तब जब पति या पत्नी ने अपने वैवाहिक घर से दूर रहने का विकल्प चुना हो कभी भी क्रूरता नहीं मानी जा सकती। प्रत्येक घर में क्या स्थिति हो सकती है इस बारे में विस्तार से जांच करना या उस संबंध में कोई कानून या सिद्धांत निर्धारित करना न्यायालय का काम नहीं है।”

न्यायालय ने एन.जी. दास्ताने (DR) बनाम एस. दास्ताने पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्रूरता इस प्रकृति की होनी चाहिए कि यह पति या पत्नी के मन में यह उचित आशंका पैदा करे कि साझा घर में रहने से जीवन या अंग या स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। यह भी माना गया कि न्यायालय को आदर्श पति या आदर्श पत्नी की तलाश नहीं करनी है, क्योंकि आदर्श जोड़ा वैवाहिक न्यायालय में नहीं आएगा।

पवन कुमार बनाम हरियाणा राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि क्रूरता केवल शारीरिक कृत्यों तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें मानसिक यातना और क्रूरता करने वाले पक्ष का जानबूझकर किया गया आचरण भी शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामले में यह माना गया कि दहेज की मांग करना और दहेज न लाने के लिए लड़की को लगातार ताना मारना क्रूरता के बराबर है।

न्यायालय ने रूपा सोनी बनाम कमलनारायण सोनी पर भी भरोसा किया सुप्रीम कोर्ट ने माना,

“हम इस बात पर ज़ोर देना चाहेंगे कि व्यक्तिपरकता का एक तत्व लागू किया जाना चाहिए, क्रूरता का गठन वस्तुनिष्ठ है। इसलिए किसी दिए गए मामले में महिला के लिए जो क्रूरता है, वह पुरुष के लिए क्रूरता नहीं हो सकती। हम जब किसी ऐसे मामले की जांच करते हैं, जिसमें पत्नी तलाक चाहती है तो अपेक्षाकृत अधिक लचीले और व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। 1955 के अधिनियम की धारा 13(1) दोनों पक्षों के कहने पर तलाक देने के लिए रूपरेखा और कठोरता निर्धारित करती है। तलाक का कानून मुख्य रूप से दोष सिद्धांत के आधार पर रूढ़िवादी कैनवास पर बनाया गया। सामाजिक दृष्टिकोण से वैवाहिक पवित्रता का संरक्षण प्रचलित कारक माना जाता था। स्वतंत्रतावादी दृष्टिकोण को अपनाने के साथ विवाह के अलगाव या विघटन के आधारों को अक्षांशवाद के साथ व्याख्यायित किया गया।”

तदनुसार, न्यायालय ने तलाक याचिका खारिज करने वाला फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा और पति द्वारा दायर अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल- ज्योतिष चंद्र थपलियाल बनाम श्रीमती देवेश्वरी थपलियाल

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