इलाहाबाद हाईकोर्ट में “जेंडर सेंसिटाइजेशन” पर दो दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन

Update: 2025-10-16 07:27 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट की फैमिली कोर्ट मामलों के प्रति संवेदनशीलता समिति की ओर से “जेंडर सेंसिटाइजेशन” (लिंग संवेदनशीलता) पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन 11 और 12 अक्टूबर 2025 को न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (JTRI), लखनऊ में किया गया।

कार्यशाला में इलाहाबाद हाईकोर्टमें प्रतिनियुक्त न्यायिक अधिकारियों, उत्तर प्रदेश सरकार, न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (JTRI) और उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से जुड़े अधिकारियों ने भाग लिया।

इस कार्यशाला का उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों को जेंडर की अवधारणा से परिचित कराना, लिंग आधारित रूढ़िवाद (स्टीरियोटाइप) के प्रति संवेदनशील बनाना और घर व कार्यस्थल दोनों जगहों पर लिंग समानता को बढ़ावा देना था।

उद्घाटन सत्र

कार्यशाला का उद्घाटन जस्टिस जसप्रीत सिंह, इलाहाबाद हाईकोर्ट(लखनऊ पीठ) एवं समिति के सदस्य द्वारा किया गया।

अपने मुख्य संबोधन में जस्टिस जसप्रीत सिंह ने कहा कि हमें “सीखने के साथ-साथ भूलना भी सीखना चाहिए” ताकि जेंडर से जुड़े पूर्वाग्रहों को पीछे छोड़ा जा सके। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों का काम केवल मामलों का निपटारा नहीं, बल्कि न्याय प्रदान करना है — जो एक दिव्य कार्य है।

उन्होंने कहा कि ज्ञान निरंतर विकसित होता है और “जितना अधिक कोई जानता है, उतना ही उसे एहसास होता है कि वह कितना कम जानता है।” उन्होंने खुले मन से सीखने की आवश्यकता पर बल देते हुए नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत संघ (2018) फैसले का उल्लेख किया, जो जेंडर पहचान और सामाजिक मान्यताओं के विकास का एक अहम उदाहरण है।


कार्यशाला के सत्र

कार्यशाला के विभिन्न सत्र प्रो. रोली मिश्रा, डॉ. प्रशांत शुक्ला और डॉ. सोनाली रॉय चौधरी (लखनऊ विश्वविद्यालय) द्वारा संचालित किए गए। कार्यशाला को संवादात्मक और सहभागितापूर्ण ढंग से तैयार किया गया था ताकि प्रतिभागियों की सोच और दृष्टिकोण में वास्तविक परिवर्तन लाया जा सके।

प्रो. रोली मिश्रा ने कार्यशाला की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए समिति के निरंतर प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि समाज में गहराई तक फैली असमानताओं और सामाजिक पूर्वाग्रहों को समाप्त कर ही समानता को वास्तविक रूप दिया जा सकता है।

डॉ. प्रशांत शुक्ला ने “Setting the Tone” विषय पर बोलते हुए कहा कि ज्ञान ही सद्गुण है और हमें अपने अंदर मौजूद जेंडर पूर्वाग्रहों को पहचानना और सुधारना आवश्यक है।

एक अन्य सत्र में तीनों विशेषज्ञों ने मीडिया के उदाहरणों के माध्यम से बताया कि जेंडर स्टीरियोटाइप कैसे बनते हैं, और इस दौरान न्यायिक अधिकारियों ने अपने अनुभव साझा किए।

दूसरे दिन के सत्रों में प्राचीन भारत, प्रसिद्ध पुस्तकों और न्यायिक फैसलों के उदाहरणों के माध्यम से जेंडर संवेदनशीलता पर चर्चा हुई। इसके अलावा, मीडिया क्लिप्स के जरिए जेंडर संबंधी विभिन्न मुद्दों को भी उजागर किया गया।

समापन सत्र

कार्यशाला का समापन जस्टिस संगीता चंद्रा, इलाहाबाद हाईकोर्ट(लखनऊ पीठ) एवं समिति की अध्यक्ष द्वारा किया गया।

अपने समापन भाषण में उन्होंने अपरना भट्ट बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2021) फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि न्यायिक आदेशों और निर्णयों में भी जेंडर संवेदनशीलता को अपनाना जरूरी है।

जस्टिस संगीता चंद्रा ने डॉ. बी.आर. अंबेडकर के कथन का उल्लेख किया —

“मैं किसी समाज की प्रगति का माप इस बात से करता हूँ कि उसकी महिलाएँ कितनी आगे बढ़ी हैं।”

उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य ऐसा समाज बनाना है जहाँ सभी को समान सम्मान मिले और पूर्वाग्रह समाप्त हों। उन्होंने आशा व्यक्त की कि कार्यशाला से मिली सीखें न्यायिक अधिकारियों के व्यवहार और निर्णयों में सकारात्मक बदलाव लाएँगी।

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