ज़मानत आदेशों का होगा सीधा प्रसारण, कैदियों की तत्काल रिहाई: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज़मानत के बाद समय पर रिहाई के निर्देश जारी किए
ज़मानत मिलने के बाद भी किसी व्यक्ति को जेल में न रहना सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को ज़मानत आदेशों के सीधे इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण और ज़मानत आदेश प्रबंधन प्रणाली (BOMS) के माध्यम से कैदियों की तत्काल रिहाई के लिए व्यापक निर्देश जारी किए, जो सुप्रीम कोर्ट के 2023 के ज़मानत अनुदान नीति रणनीति संबंधी फैसले के अनुरूप है।
जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने अपहरण के आरोपी को ज़मानत देते हुए ज़मानत आदेशों के क्रियान्वयन में लगातार हो रही देरी पर ध्यान दिया। सिंगल जज ने इस बात पर ज़ोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रशासनिक ढिलाई के कारण सीमित नहीं किया जा सकता।
अपने 7-पृष्ठ के आदेश में कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2024 के फैसले के बावजूद, ज़मानत आदेश अक्सर जेल अधिकारियों तक तुरंत नहीं पहुंचते हैं। रजिस्ट्रार (अनुपालन) ने बताया कि ज़मानत आवेदनों में जेल का विवरण न होने के कारण ज़मानत आदेशों की प्रतियाँ सीधे जेल अधीक्षक को भेजना मुश्किल हो जाता है।
इसके परिणामस्वरूप, पीठ को अवगत कराया गया कि आदेश महानिरीक्षक (कारागार) और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटों के माध्यम से भेजे जाते हैं, जिससे ज़मानत आदेशों के संप्रेषण में देरी होती है।
इस प्रथा पर ध्यान देते हुए जस्टिस देशवाल ने ज़ोर देकर कहा कि ज़मानत मिलने के बाद विचाराधीन या दोषी व्यक्ति को तुरंत सूचित किया जाना उसका अधिकार है।
अदालत ने आगे कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए है कि न्यायिक व्यवस्था, जेल प्रशासन या राज्य के किसी अन्य तंत्र की ढिलाई के कारण कोई भी व्यक्ति जेल में बंद न रहे।
अदालत ने कहा कि उसके सामने ऐसे कई मामले आए हैं, जहां ज़मानतदारों के सत्यापन के अभाव में संबंधित अदालत से ज़मानत मिलने के बाद भी कोई अभियुक्त-विचाराधीन या दोषी व्यक्ति जेल में बंद रहता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि राजस्व विभाग और पुलिस विभाग के कुछ अधिकारी ज़मानतदारों के सत्यापन के नाम पर भ्रष्ट आचरण में लिप्त हैं, जो न्याय प्रशासन के लिए एक ख़तरा है।
अतः, कोर्ट ने कहा कि ज़मानतदारों का सत्यापन कोर्ट परिसर में ही इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया के माध्यम से किया जाना चाहिए ताकि अभियुक्त/दोषी ज़मानत मिलने के बाद एक दिन भी जेल में न रहे।
जस्टिस देशवाल ने यह भी कहा कि ज़मानत आदेश प्रबंधन प्रणाली (BOMS) लागू होने के बाद भी जेल अधिकारी अक्सर अदालतों से रिहाई आदेश प्राप्त करने के बाद शाम को ही कैदियों को रिहा करते हैं।
जस्टिस देशवाल ने कहा कि जेल नियमावली में ऐसी प्रथा का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि उत्तर प्रदेश जेल नियमावली, 2002 के नियम 91 के अनुसार रिहाई आदेशों का तुरंत पालन किया जाना चाहिए और कैदियों को सामान्यतः उसी दिन रिहा कर दिया जाना चाहिए।
तदनुसार, कोर्ट ने जमानत प्रदान करने हेतु नीतिगत रणनीति में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों की भावना के अनुरूप निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
1. वकीलों को जमानत आवेदन में उस जेल का विवरण अवश्य देना चाहिए, जहां अभियुक्त आवेदक या दोषी कारावास में रहा है ताकि इस कोर्ट का कार्यालय/जमानत अनुभाग, विचाराधीन/दोषी-आवेदक को तुरंत जमानत आदेश भेज सके।
2. हाईकोर्ट का रिपोर्टिंग अनुभाग, 01.12.2025 के बाद इस कोर्ट या इसकी लखनऊ पीठ में दायर किसी भी जमानत आवेदन को तब तक स्वीकार नहीं करेगा, जब तक कि जमानत आवेदन में उस जेल के बारे में विवरण न दिया गया हो, जहां आवेदक वर्तमान में कारावास में है।
3. इस निर्देश की सूचना बार एसोसिएशन, हाईकोर्ट, इलाहाबाद के माध्यम से वकीलों को भी दी जानी चाहिए। ऐसी सूचना इलाहाबाद हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर अधिसूचित करने के अलावा, रिपोर्टिंग अनुभाग के बाहर भी चिपकाई जानी चाहिए।
4. CPC, हाईकोर्ट, इलाहाबाद संबंधित आपराधिक धाराओं में समर्पित आईडी के माध्यम से ई-जेल पोर्टल तक सीधी पहुंच प्राप्त करने के लिए NIC के साथ समन्वय करेगा ताकि हाईकोर्ट से जमानत आदेश आवेदक (विचाराधीन या दोषी) को जेल अधीक्षक के माध्यम से बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के तुरंत भेजा जा सके, जो ई-मेल के माध्यम से संभव है।
5. NIC उपरोक्त मामले में सीपीसी, हाईकोर्ट, इलाहाबाद के साथ सहयोग करेगा।
6. अपर मुख्य सचिव (गृह), सचिवालय, उत्तर प्रदेश शासन, लखनऊ को निर्देश दिया जाता है कि वे संबंधित अधिकारियों को संबंधित जिला जज के समन्वय से जिला न्यायालय परिसर में ही जमानतदारों के इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन की व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश जारी करें।
7. महानिदेशक (कारागार) को यह भी निर्देश दिया जाता है कि वे सभी कारागार प्राधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करें कि वे न्यायालयों से रिहाई आदेश प्राप्त करने के बजाय, BOMS के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रिहाई आदेश प्राप्त होने के तुरंत बाद जेल के कैदियों को रिहा करें और फिर शाम को जेल के कैदियों को रिहा करें।
रजिस्ट्रार (अनुपालन) को निर्देश दिया गया कि वे इस आदेश की एक प्रति मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव (गृह), महानिदेशक (कारागार), उप महानिदेशक (NIC), सीपीसी और संबंधित रजिस्ट्रारों को सख्ती से कार्यान्वयन हेतु प्रसारित करें।
Case title - Sohrab Alias Sorab Ali vs. State of U.P.