'सरकार के पॉलिटिकल विज़डम पर सवाल नहीं उठाया जा सकता': केंद्र सरकार की 'संविधान हत्या दिवस' अधिसूचना को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी अमिताभ ठाकुर की जनहित याचिका का निपटारा किया। उक्त याचिका में केंद्र सरकार की हाल ही में जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसमें 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' घोषित किया गया था। यह वह दिन है, जब 1975 में देश में आपातकाल लगाया गया था।
जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने कहा कि कोर्ट राजनीतिक मामलों में नहीं उलझ सकता और न ही अधिसूचना जारी करने में सरकार की पॉलिटिकल विज़डम (Political Wisdom) पर सवाल उठा सकता है।
न्यायालय ने सार्वजनिक किए गए अपने आदेश में कहा,
"यह न्यायालय, याचिकाकर्ता के वकील को विस्तार से सुनने के बाद इस विचार पर पहुंचा है कि 25.06.1975 को आपातकाल की घोषणा के कारण हुई ज्यादतियों के संबंध में घोषणा करने के लिए सरकार की ओर से विचार किया जाना चाहिए। न्यायालय राजनीतिक पचड़े में नहीं पड़ सकता और इस तरह की अधिसूचना जारी करने में सरकार की राजनीतिक बुद्धि पर सवाल नहीं उठा सकता, जैसा कि इस रिट याचिका में चुनौती दी गई।"
अपनी जनहित याचिका में ठाकुर ने तर्क दिया कि सरकार की विवादित अधिसूचना अनुचित और अनपेक्षित है। इससे भारत के संविधान के बारे में आम लोगों में प्रतिकूल संदेश जाएगा। न्यायालय के समक्ष ठाकुर की ओर से पेश हुए एडवोकेट नूतन ठाकुर और दीपक कुमार ने तर्क दिया कि 'संविधान हत्या दिवस' शब्दों का उपयोग आपातकाल की घोषणा के दौरान लोगों के अधिकारों के खिलाफ हिंसा को दोहराता है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि संविधान की ही हत्या की गई।
यह प्रस्तुत किया गया कि यदि सरकार को लगता है कि संविधान की 'हत्या' हो गई है तो उसके बाद हुए आम चुनावों में जब भारत की जनता ने तत्कालीन सरकार को उखाड़ फेंका, तब लोकतंत्र पुनर्जीवित नहीं हो पाता।
यह भी तर्क दिया गया कि विचाराधीन शब्दों का उपयोग करने के बजाय केंद्र सरकार अधिक उपयुक्त भाषा का उपयोग कर सकती थी और सकारात्मक शब्दावली पर विचार कर सकती है।
यह तर्क दिया गया कि केंद्र सरकार "संविधान रक्षा दिवस" शब्दों का उपयोग कर सकती है, क्योंकि राजपत्र अधिसूचना का उद्देश्य केवल भारत के लोगों को 25.06.1975 को आपातकाल की घोषणा करके तत्कालीन सरकार द्वारा की गई ज्यादतियों की याद दिलाना था।
प्रतिवादियों के वकील ने प्रारंभिक आपत्ति उठाई, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता न्यायालय के समक्ष पूर्ण साख का खुलासा करने में विफल रहा।
यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता ने खुद को आईआईटी कानपुर से बी.टेक, आईआईएम लखनऊ से मानव संसाधन प्रबंधन में डिग्री, यूपी कैडर में पूर्व आईपीएस अधिकारी और पंजीकृत राजनीतिक दल आजाद अधिकार सेना के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ-साथ कई पुस्तकों के लेखक के रूप में सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में पहचाना, लेकिन उन्होंने यह खुलासा नहीं किया कि उन पर सुप्रीम कोर्ट परिसर के बाहर बलात्कार पीड़िता को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है।
जवाब में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकीलों ने प्रस्तुत किया कि यद्यपि इलाहाबाद हाईकोर्ट नियम, 1952 के अध्याय 22 में नियम 3ए जोड़ा गया, लेकिन यदि याचिकाकर्ता किसी आपराधिक मामले में आरोपी है तो हलफनामे पर यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं है।
दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करते हुए न्यायालय ने कोई प्रभावी उपाय देने से इनकार किया और यह कहते हुए याचिका का निपटारा किया कि वह केंद्र सरकार की राजनीतिक समझदारी पर सवाल नहीं उठा सकता।
केस टाइटल- अमिताभ ठाकुर बनाम भारत संघ के माध्यम से सचिव गृह मंत्रालय, भारत सरकार नई दिल्ली 2024 लाइव लॉ (एबी) 456