एक ही घटना के लिए दूसरी FIR की अनुमति, बशर्ते साक्ष्य का संस्करण अलग हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक ही घटना के लिए दूसरी FIR की अनुमति है बशर्ते साक्ष्य का संस्करण अलग हो और तथ्यात्मक आधार पर खोज की गई हो।
जस्टिस मंजू रानी चौहान की पीठ ने निर्मल सिंह कहलों बनाम पंजाब राज्य 2008 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए यह टिप्पणी की। निर्मल सिंह मामले (सुप्रा) में राम लाल नारंग बनाम राज्य (दिल्ली प्रशासन) 1979 में पहले के फैसले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दूसरी FIR तब भी कायम रहेगी, जब किसी बड़ी साजिश के बारे में तथ्यात्मक आधार पर नई खोज की गई हो।
एकल न्यायाधीश ने यह भी कहा कि एक ही मामले में एक ही आरोपी के खिलाफ दो FIR नहीं हो सकतीं। हालांकि, जब एक ही घटना के दो विरोधी संस्करण होते हैं तो वे आम तौर पर दो अलग-अलग एफआईआर का रूप ले लेते हैं और एक ही जांच एजेंसी दोनों के तहत जांच कर सकती है।
अदालत ने अंजू चौधरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2012 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण को भी ध्यान में रखा, जिसमें यह दोहराया गया कि पहली एफआईआर में निहित एक ही लेनदेन का हिस्सा बनने वाले एक ही अपराध या घटना के संबंध में दूसरी FIR स्वीकार्य नहीं है लेकिन जहां अपराध पहली FIR के दायरे में नहीं आता है, वहां दूसरी FIR स्वीकार्य होगी।
संक्षेप में मामला
एकल न्यायाधीश मुख्य रूप से संगीता मिश्रा द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहे थे, जिन्होंने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मथुरा द्वारा धारा 156 (3) CrPC के तहत उनका आवेदन खारिज करने के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसमें उनके पति के हत्यारों के खिलाफ FIR दर्ज करने का अनुरोध किया गया था।
सीजेएम कोर्ट ने इस आधार पर उसकी याचिका खारिज की कि उसके पति की हत्या के लिए 2020 में धारा 302 और 201 IPC के तहत FIR दर्ज की जा चुकी है, जिसमें आवेदक (महिला) को दोषी पाया गया था और उसे जेल भेज दिया गया था।
आदेश में यह तर्क दिया गया कि आवेदक के पति की हत्या के लिए एक बार FIR दर्ज की गई थी और उसके खिलाफ आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया था, उसके द्वारा पेश किए गए आवेदन की सामग्री संदिग्ध प्रतीत होती है, जो विश्वास को साबित नहीं करती है। इसलिए उस पर विचार नहीं किया जा सकता है।
उपरोक्त आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की गई, जिसे भी खारिज कर दिया गया। इसलिए आवेदक ने हाईकोर्ट का रुख किया।
मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए जिसमें मृतक की पत्नी द्वारा धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत आवेदन दिया गया, जिसमें उसके पति की हत्या में शामिल असली अपराधियों का पता लगाने के लिए कुछ तथ्य बताए गए हैं, न्यायालय ने कहा कि उसके द्वारा दायर आवेदन पर कानून की स्थापित स्थिति के मद्देनजर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि दूसरी FIR बनाए रखने योग्य है, जहां एक अलग संस्करण है और तथ्यात्मक आधार पर नई खोज भी की गई है।
इसके मद्देनजर न्यायालय ने सीजेएम की अदालत का आदेश खारिज किया और मामले को संबंधित न्यायालय को वापस भेज दिया, जिससे आवेदक द्वारा धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत दायर आवेदन पर कानून की स्थापित स्थिति के मद्देनजर नए सिरे से निर्णय लिया जा सके।
केस टाइटल- संगीता मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 6 अन्य