इलाहाबाद हाइकोर्ट ने महिला बैंक मैनेजर पर तेजाब फेंकने के आरोपी 4 लोगों को जमानत देने से किया इनकार

Update: 2024-05-10 12:19 GMT

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने गुरुवार को 2022 में (यूपी के कौशांबी जिले में) एक महिला बैंक मैनेजर पर तेजाब से हमला करने के आरोपी चार लोगों द्वारा दायर जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया, क्योंकि उसने कथित तौर पर ऐसे लोन आवेदनों को मंजूरी देने से इनकार किया था, जो इसके लिए योग्य नहीं थे।

सिंगल जज जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने तेजाब की खरीद कुछ आवेदकों की वास्तविक संलिप्तता और अन्य आवेदकों को सौंपी गई सहायक भूमिकाओं के बारे में जांच के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्य पर विचार करते हुए उन्हें जमानत देने से इनकार किया।

अदालत ने कहा कि CDR विवरण हैं और सभी आवेदक और अन्य सह-आरोपी एक बड़ी साजिश का हिस्सा हैं।

अभियोजन पक्ष के अनुसार पीड़िता जो बैंक मैनेजर के पद पर कार्यरत थी को दो बाइक सवार बदमाशों ने उस समय रोक लिया जब वह अपने कार्यालय जा रही थी और उन्होंने उस पर तेजाब फेंक दिया।

मामले की जांच के दौरान आवेदक और अन्य सह-आरोपियों के नाम प्रकाश में आए। वे सभी लोन आदि की मंजूरी में सहायता करने के लिए बैंक में दलाल के रूप में काम करते थे।

आरोपियों के खिलाफ आरोपों के अनुसार जब पीड़िता ने बैंक मैनेजर के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए कुछ लोन आवेदनों को अस्वीकार कर दिया तो उस पर दबाव डाला गया। हालांकि जब वह उनके दबाव में नहीं आई, तो उस पर तेजाब से हमला हुआ।

मामले में जमानत की मांग करते हुए, आरोपियों ने हाईकोर्ट में यह प्रस्तुत करने के लिए याचिका दायर की कि वे अगस्त 2022 से जेल में बंद हैं और जल्द सुनवाई की कोई संभावना नहीं है।

दूसरी ओर राज्य के वकील ने आरोपियों की जमानत याचिकाओं का विरोध किया।

शुरू में अदालत ने उल्लेख किया कि पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने शिवानी त्यागी बनाम यूपी राज्य और अन्य मामले में 2024 लाइव लॉ (एससी) 333 ने बलात्कार के बढ़ते हमलों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।

इसके अलावा घटना की प्रकृति और तरीके को ध्यान में रखते हुए जहां पीड़िता एक महिला होने के नाते, एसिड अटैक से पीड़ित थी और अभी भी इसके जख्मों से उबर रही है और साथ ही जमानत से संबंधित कानून के अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया।

अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि मामले की पीड़िता को अवैध कार्य करने के दबाव में न आने की कीमत चुकानी पड़ी जिससे ऐसे लोन आवेदनों को मंजूरी दी जा सके जो इसके लिए योग्य नहीं थे।

हालांकि अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह मुकदमे को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए सभी प्रयास करे और अगर पीड़िता का बयान आज तक दर्ज नहीं किया गया है, तो उसे छह महीने के भीतर दर्ज किया जा सकता है।

केस टाइटल - मान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और संबंधित याचिकाएँ 2024 लाइव लॉ (एबी) 295

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