यूपी आवास विकास अधिनियम 1965 के तहत शुरू की गई अधिग्रहण कार्यवाही भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत समाप्त नहीं मानी जा सकती: हाईकोर्ट

Update: 2024-09-13 06:13 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यूपी आवास विकास अधिनियम 1965 के तहत शुरू की गई अधिग्रहण कार्यवाही भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 (Land Acquisition Act) के तहत समाप्त नहीं मानी जा सकती। आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन एवं पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकर एवं पारदर्शिता के अधिकार अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) के अंतर्गत समाप्त नहीं माना जा सकता।

जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस मनीष कुमार निगम की खंडपीठ ने कहा,

“जबकि नए अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) लागू नहीं होगी और अधिग्रहण समाप्त नहीं होगा, लेकिन याचिकाकर्ता नए अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अनुसार प्रतिकर पाने का हकदार होगा। प्रतिकर निर्धारण के लिए संदर्भ की तिथि 01.01.2014 होगी, जिस दिन नया अधिनियम, 2013 लागू हुआ था।”

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने यू.पी. अधिनियम, 2004 की धारा 28 और धारा 32 के अंतर्गत जारी दिनांक 12.06.2004 और 24.06.2010 की अधिसूचनाओं को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 के तहत इस आधार पर अधिग्रहण समाप्त हो गया कि कार्यवाही पूरी करने में देरी के कारण अधिग्रहण पर रोक लगाई।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि अवार्ड पारित नहीं किया गया, इसलिए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता के अधिकार अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) के तहत अधिग्रहण समाप्त हो गया।

यू.पी. आवास एवं विकास परिषद के वकील ने तर्क दिया कि यू.पी. आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 में अधिग्रहण के स्वतः समाप्त होने का कोई प्रावधान नहीं था। चूंकि अधिग्रहण अधिनियम के तहत किया गया, इसलिए यह दलील दी गई कि अधिग्रहण केवल इसलिए समाप्त नहीं हुआ, क्योंकि अवार्ड देने में देरी हुई।

यू.पी. आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 के तहत सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया गया। आवास एवं विकास परिषद बनाम जैनुल इस्लाम और अन्य, यह तर्क देने के लिए कि संशोधित धारा 11-ए अधिनियम के तहत किए गए अधिग्रहणों पर लागू नहीं है। इसी सादृश्य से यह तर्क दिया गया कि 2013 अधिनियम की धारा 24(2) अधिनियम के तहत अधिग्रहणों पर लागू नहीं होगी।

हाईकोर्ट का फैसला

न्यायालय ने देखा कि यू.पी. आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 की धारा 55 भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के कुछ प्रावधानों को अधिनियम की अनुसूची में संशोधनों के अधीन अधिनियम के तहत अधिग्रहणों पर लागू करती है।

यह देखा गया कि जब 1984 में भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 में संशोधन किया गया तो संशोधन के प्रस्ताव में यह शर्त थी कि यदि निर्दिष्ट अवधि के भीतर पुरस्कार नहीं दिया जाता है तो अधिग्रहण समाप्त माना जाएगा।

यू.पी. आवास एवं विकास परिषद बनाम जैनुल इस्लाम एवं अन्य ने माना कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधान, जिन्हें अधिनियम की धारा 59 के आधार पर अधिनियम में शामिल किया गया, अनुसूची में निर्दिष्ट संशोधनों के अधीन, भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन किए जाने पर संशोधित नहीं किए जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

“इसलिए हमारा मत है कि अधिनियम की धारा 55 के उचित अर्थ में यह माना जाना चाहिए कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधानों को अधिनियम में शामिल करते समय विधानमंडल का इरादा यह था कि मुआवजे के निर्धारण और भुगतान से संबंधित भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन अधिनियम के प्रयोजनों के लिए भूमि अधिग्रहण पर लागू होंगे। इसका मतलब यह है कि मुआवजे के निर्धारण और भुगतान से संबंधित 1984 के अधिनियम द्वारा एल.ए. अधिनियम में पेश किए गए संशोधन, अर्थात, 1984 के अधिनियम द्वारा संशोधित धारा 23 (1-ए) और धारा 23 (2) और 28, अधिनियम की धारा 55 के तहत अधिनियम के उद्देश्य के लिए अधिग्रहण पर लागू होंगे।"

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भले ही अधिनियम की धारा 32 के तहत अधिसूचना पर 2 साल तक कार्रवाई न की गई हो, अधिग्रहण समाप्त नहीं हुआ।

2013 के अधिनियम की धारा 105 पर गौर करते हुए न्यायालय ने कहा,

"अधिनियम चौथी अनुसूची के तहत एक निर्दिष्ट कानून नहीं है। इसलिए नए अधिनियम, 2013 के प्रावधान स्वतः ही अधिनियम के तहत किए गए अधिग्रहण पर लागू नहीं होते हैं। नतीजतन धारा 24 (2) भी लागू नहीं होगी।"

न्यायालय ने हेम चंद्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य तथा अन्य में अपने पहले के फैसले पर भी गौर किया, जिसमें उसने नए अधिनियम के तहत मुआवजे से संबंधित प्रावधानों का लाभ बढ़ाया, अधिनियम की धारा 28 के तहत अधिग्रहणों पर लागू होगा।

न्यायालय ने माना कि जबकि मुआवजे से संबंधित प्रावधानों का लाभ 01.01.2014 से पहले किए गए अधिनियम के तहत अधिग्रहणों तक बढ़ाया जा सकता है, धारा 24(2) के आधार पर अधिग्रहण समाप्त नहीं होगा। याचिकाकर्ता परिणामी लाभों का हकदार होगा।

तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: मेसर्स बीर होटल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य [रिट - सी नंबर - 23248/2024]

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