सुप्रीम कोर्ट ने क्लैट के पीआईएल पर कहा, लॉ कॉलेजों में एनआरआई/पीडब्ल्यूडी सीटों का कोटा इस मामले में कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा [आर्डर पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह स्पष्ट किया कि कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (सीएलएटी-क्लैट) 2018 के माध्यम से अनिवासी भारतीय (एनआरआई) और दिव्यांग कोटा के तहत होने वाले एडमिशन प्रो. शमनाद बशीर की याचिका पर आने वाले निर्णय पर निर्भर करेगा।
न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने अपने निर्देश में कहा, “विश्वविद्यालय इस बारे में नोटिस जारी करेगा कि एनआरआई और दिव्यांग कोटा के तहत होने वाले एडमिशन रिट याचिका के फैसले पर निर्भर करगा”।
मंगलवार को इस याचिका पर सुनवाई के दौरान एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने क्लैट 2018 की परीक्षा में छात्रों को तकनीकी गड़बड़ी के कारण हुई परेशानी के बारे में कोर्ट को बताया और कहा कि यह अब तक का क्लैट का सबसे खराब आयोजन था।
कोर्ट ने हालांकि मामले को स्थगित कर दिया और अब इस मामले की सुनवाई छुट्टियों के बाद होगी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि कि एनआरआई और दिव्यांग कोटे के तहत जो प्रवेश दिया गया है वह इस मामले पर होने वाले फैसले पर निर्भर करेगा। कोर्ट ने उस छात्र की नहीं सुनी जिसे इस साल क्लैट की परीक्षा में काफी परशानियाँ झेलनी पड़ी।
प्रो. बशीर ने 2015 में याचिका दाखिल की थी और क्लैट के अपारदर्शी और अक्षम प्रबंधन में कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग की थी। इस याचिका में क्लैट द्वारा आयोजित किये जाने वाली परीक्षाओं में होने वाली गड़बड़ियों की बात उठाई गई है और कहा कि यह पीए इनामदार एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन भी करता है जिसमें एनआरआई कोटा अधिकतम 15% निर्धारित किया गया है और इसके लिए दो शर्तें रखी गईं – पहला, इस तरह की सीटों का प्रयोग सिर्फ योग्य एनआरआई ही करें और सिर्फ अपने बच्चों के लिए करें। दूसरा, इस कोटे के तहत योग्यता को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।