पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब 'द टर्बुलेंट ईयर्स 1980-1996' को लेकर दाखिल याचिका पर दिल्ला हाईकोर्ट की जज ने सुनवाई से खुद को अलग किया
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब 'द टर्बुलेंट ईयर्स 1980-1996' के कुछ अंशों को विवादित बताते हुए उसे हटाने को लेकर लगाई गई याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया और मामले को एक्टिंग चीफ जस्टिस के पास भेज दिया।
हालांकि शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान उन्होंने मौखिक रूप से पूर्व राष्ट्रपति को नोटिस जारी कर जवाब मांग लिया था लेकिन बाद में उन्होंने आदेश जारी कर कहा कि इस मामले को एक्टिंग चीफ जस्टिस के पास भेज रही हैं। उन्होंने इस मामले की सूचना याचिकाकर्ता के वकील को भी दी।
दरअसल याचिकाकर्ता उमेश चंद पांडेय ने इस संबंध में दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है।
30 नवंबर 2016 को पटियाला हाउस कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन ने राष्ट्रपति की किताब 'टर्बुलेंट ईयर्स 1980-1996' के कुछ अंशों पर आपत्ति जताते हुए उनसे हिंदुओं की भावनाएं आहत होने की दलील दी है। साथ ही इन अंशों को किताब से हटाए जाने का आग्रह किया गया है।
कहा गया है कि किताब के पृष्ठ संख्या 128-129 पर लिखा गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा 1 फरवरी, 1986 को राम जन्मभूमि मंदिर खुलवाने का आदेश देना उनका गलत फैसला था। जबकि सच यह है कि राम जन्मभूमि का ताला जिला जज फैजाबाद के आदेश से खुला था। किताब में लोगों को यह बताने की कोशिश की गई है भारत में न्यायिक आदेश राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव में होते हैं। इससे न्यायपालिका की छवि खराब होती है। यह न्यायालय की अवमानना है। पृष्ठ संख्या 151 से 155 पर लेखक ने विवादित ढांचे को बाबरी मस्जिद कहा है। ऐसा कहना गलत है। किताब के विवादित अंशों से हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं।