जज लोया मामला : रोहतगी ने अपनी दलील में याचिकाकर्ताओं की विश्वसनीयता पर उठाए सवाल
सीबीआई के विशेष जज लोया की मौत को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई में आज महाराष्ट्र सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने अपनी दलील पेश की। इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही है जिसमें उनके अलावा डीवाई चंद्रचूड़, और एएम खानविलकर भी हैं।
रोहतगी ने पीठ से कहा, “इसके पहले कि मैं आरोपों की महत्ता के बारे में में कुछ कहूं, मैं इस मामले में दायर पीआईएल की आधारभूत बातों के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ।”
उन्होंने उत्तराखंड राज्य बनाम बलवंत सिंह चौफाल मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का जिक्र किया जिसमें उसने कहा कि किसी पीआईएल पर गौर करने से पहले अदालत को चाहिए कि वह पीआईएल दायर करने वाले की विश्वसनीयता को परख ले, यह देख ले कि उसका विषयवस्तु सही है कि नहीं ज्यादा से जयादा लोगों की भलाई से यह जुड़ा है कि नहीं।
रोहतगी ने कहा, “यह याचिका निजी हितों से प्रेरित है और इसका उद्देश्य जज की मौत को सनसनीखेज बनाना है।”
उन्होंने आगे कहा, “जज की मौत 1 दिसंबर 2014 को तड़के हुई। जज की अंत्येष्टि लातूर के नजदीक उनके गृह नगर में उनके परिजनों की उपस्थिति में कर दी गई। न तो पीड़ित व्यक्तियों ने और न ही पीआईएल दाखिल करने वालों को तीन सालों तक इसका ख़याल आया।
फिर 21 नवंबर 2017 कारवाँ पत्रिका में एक आधारहीन खबर छपी। इसके बाद इन लोगों की नींद खुली और फिर एक-के बाद एक कई याचिकाएं दायर कर दी गईं।
“रोहतगी ने कहा, प्रथमतः, एक अखबार की रपट के आधार पर दायर पीआईएल पर गौर नहीं किया जा सकता है। कही सुनी बातों का आपराधिक सुनवाई में कोई स्थान नहीं है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि इन याचिकाओं को शुरू में ही खारिज कर दिया जाए पर राज्य इस मामले में हुई गहरी तहकीकात से संतुष्ट है...दूसरे पक्ष के एडवोकेट्स ने इस मामले में ऐसे बहस की है जैसे यह हत्या के मामले की अपील है...इनमें से किसी ने भी जजों के बयान नहीं पढ़े हैं।”
“29 नम्वंबर 2014 की रात से 1 दिसंबर 2014 के दोपहर तक जिला स्तर के चार जज मृतक के साथ थे। जज लोया की मौत की जांच तभी की जा सकती है जब इन जजों के बयानों को खारिज कर दिया जाता है और यह माना जाता है कि वे उनकी मौत के षड्यंत्र में शामिल थे। फिर, बॉम्बे हाई कोर्ट के चार जजों जिनमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं, 7 बजे मेडीट्रिना अस्पताल पहुंचे थे। इससे ज्यादा तात्कालिक और क्या हो सकता है,” रोहतगी ने कहा।
इसके बाद रोहतगी ने याचिकाकर्ताओं की विश्वसनीयता के बारे में कोर्ट को बताना शुरू किया। उन्होंने कहा – एक याचिकाकर्ता का नाम है तहसीन पूनावाला जिनका दावा है कि उन्होंने समाज के हित में यह आवेदन किया है। कौन है यह याचिकाकर्ता? वे करते क्या हैं? जज लोया की मौत से समाज का हित कैसे जुड़ा है? इस जानकारी का स्रोत अखबार और मीडिया रिपोर्ट हैं – याचिका, इंडियन एक्सप्रेस, कारवाँ, एनडीटीवी की चर्चा करता है, बस इतना ही! सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने के समय तथ्यों की पड़ताल नहीं की गई। आरोपों की प्रकृति भी पूरी तरह असावधानी भरा है। याचिका का एक आधार यह कहता है कि पोस्ट मॉर्टम परिवार वालों की अनुमति के बिना किया गया। जज लोया ने मेडीट्रिना अस्पताल जाते हुए ही दम तोड़ दिया था और उन्हें अस्पताल में “मृत पहुंचा” घोषित किया गया था। इसीलिए अस्पताल ने पोस्ट मॉर्टम का आदेश दिया था क्योंकि इसके बिना वे मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं दे सकते थे।”
रोहतगी ने कहा, “एक अन्य याचिका बंधुराज संभाजी नामक व्यक्ति ने दायर किया है जो पत्रकार-एक्टिविस्ट हैं। उनकी भी सूचनाओं का स्रोत अख़बार एवं मीडिया रिपोर्ट्स हैं। लगता है कि कारवाँ ऐसा गोस्पेल है जिसके आधार पर राज्य की जांच पर उंगली उठाई जा सकती है, मामले पर अपील के रूप में बहस की जा सकती है। दूसरा आधार अखबारों में छपी विरोधाभासी रपटें हैं – पर इससे क्या अंतर पड़ता है?...अब समय आ गया है कि कोर्ट और रजिस्ट्री यह तय करे कि हलफनामा क्या है?
बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन की याचिका जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास ट्रांसफर किया है, के बारे में उन्होंने कहा, “यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता वकीलों की संस्था है। इस संस्था के पंजीकरण और इसके पदाधिकारियों के बारे में कुछ भी नहीं दिया गया है। फिर, (सोहराबुद्दीन) मामले की सुनवाई 2017 में शुरू हुई, ट्रांसफर (जज उत्पट) के तीन साल बाद। ट्रांसफर के तथ्यों का इससे कोई लेना देना नहीं है। एसोसिएशन ने कारवाँ में आलेख छपने के बाद ही क्यों हाई कोर्ट में अपील की और ट्रांसफर के समय नहीं जबकि वे तथ्यों के बारे में जानते थे? एक अन्य व्यक्ति अशोक अस्थाना की याचिका के बारे में उन्होंने कहा कि अखबारों की रिपोर्ट में जो दावे किए गए हैं उसको “जानकारी” मान ली गई है। न्यायमूर्ति खानविलकर के इस प्रश्न के उत्तर में कि अशोक अस्थाना कौन हैं, रोहतगी ने कहा, “हमें नहीं पता। मुझे नहीं पता कि पदाधिकारी कौन हैं।” इस पर वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे जो कि एसोसिएशन की पैरवी कर रहे हैं, ने कहा, “याचिकाओं में इस तरह की तकनीकी बातों का कोई महत्त्व नहीं है।”
इसके बाद उन्होंने याचिका पर कोर्ट में सुनवाई के औचित्य के बारे में फैसलों को उद्धृत किया -
कुसुमलता बनाम भारत सरकार [(2006) 6 SCC 180], रोहित पांडेय बनाम भारत संघ [ (2005) 13 SCC 702] और बीपी सिंघल बनाम तमिलनाडु राज्य [(2004) 13 SCC 673]। इसके अलावा उन्होंने 2004 में दो मामलों में आए फैसलों का भी जिक्र किया।
‘प्रश्न यह है कि जज लोया की मौत किसी बीमारी के कारण हुई या नहीं। अगर नहीं, तो फिर उनकी मौत अस्वाभाविक थी। उनको उचित इलाज उपलब्ध कराया गया कि नहीं इस बारे में कोई प्रश्न नहीं है। मुआवजे का भी कोई मामला नहीं है”, रोहतगी ने कहा। इसके बाद उन्होंने उस पत्र का जिक्र किया जो राज्य के खुफिया विभाग के आयुक्त ने नवंबर 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखा था। इस पत्र का विषय है “गंभीर सत्यापन”। आयुक्त ने जिला स्तर के साथ-साथ हाई कोर्ट के जजों से इस बारे में तहकीकात की अनुमति मांगी थी। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने सिर्फ जिला जजों के लिए ही यह अनुमति दी।
न्यायिक अधिकारियों के बयानों के बारे में उन्होंने कहा, “ये उनके अपने पत्र हैं, पुलिस के बयान नहीं। अपने-अपने पत्रों पर जजों ने हस्ताक्षर किए हैं और एक बयान तो एक जज ने अपने हाथ से लिखा है। यह न झुठलाया जाने वाला सबूत है।”
उन्होंने जज श्रीकांत कुलकर्णी के पत्र का एक हिस्सा पढ़ा – “सुश्री स्वप्ना जोशी ने मोदक, लोया, और मुझे आमंत्रित किया था...हम 30 नवंबर 2014 को रवि भवन में एक वीआईपी सूट में ठहरे...हमने सुश्री जोशी की बेटी के रिसेप्शन समारोह में हिस्सा लिया...1 दिसंबर 2014 को तड़के लोया ने छाती में दर्द की शिकायत की...हमने जज बरदे को बुलाया जो जज आर राठी के साथ 4.15 बजे सुबह आए...हम लोग जज लोया को दांडे अस्पताल लाए जहाँ उनको आपातकालीन ट्रीटमेंट दिया गया...एक अन्य स्थानीय जज वाईकर भी अपने कार से वहाँ पहुंचे...जज राठी ने अपने चचेरे भाई डॉ. पंकज हरकूत को बुलाया...हम लोग जज लोया को मेडीट्रिना अस्पताल ले गए...वे रास्ते में ही मर गए...मेडीट्रिना में उनको स्ट्रेचर पर डाला गया...सीपीआर का उनपर कोई असर नहीं हुआ...हमें बताया गया कि उनकी मौत हो गई है...हमने इसकी सूचना हाई कोर्ट के जजों को दी...जो आधे घंटे के भीतर वहाँ पहुँच गए...नागपुर के दो स्थानीय वकील जज लोया के शव के पोस्ट मॉर्टम के लिए गए।”
इसके बाद उन्होंने जज मोदक के बयान का अंश पढ़ा, “मेरे भाई को मरे तीन साल हो गए हैं...यह पत्र मुझे जो कुछ भी याद है उस पर आधारित है...मैं जज कुलकर्णी और लोया के साथ शादी में गया था...हम एक ही रूम में ठहरे थे...हमने शायद जज बरदे और आर राठी को बुलाया था...जज लोया को दांडे ले जाया गया...मुझे याद है कि एक अन्य स्थानीय जज वाईकर भी दांडे में मौजूद थे...मुझे यह याद नहीं है कि जज लोया के परिवार वालों को किसने सूचित किया था...”
“उस स्थिति में जिस तरह की आपाधापी थी उसकी वजह से यह याद करना मुश्किल है कि किस जज ने परिवार वालों को इसकी सूचना दी। पर इसकी जरूरत भी क्या है? घटना को हुए तीन साल हो गए और उनकी याददाश्त भी क्षीण हो गई है। वे एक ही रूम में क्यों रुके यह महत्त्वपूर्ण नहीं है; तथ्य यह है कि तीनों जज एक ही रूम में टिके,” रोहतगी ने कहा।
इसके बाद जज बरदे का पत्र उन्होंने पढ़ा –“मुझे जज कुलकर्णी से इस बात का लगभग 4 बजे सुबह पता लगा...मैं जज राठी के साथ रवि भवन पहुंचा...हम पांच लोग दांडे अस्पताल उनको ले गए...जज वाईकर को भी बुलाया गया...जज राठी के अपने चचेरे भाई डॉ. पंकज हारकूत को बुलाने के बाद हम मेडीट्रिना अस्पताल गए...हमने हाजी अली में जज लोया के मित्र से संपर्क किया था...10 बजे सुबह शव को पोस्ट मॉर्टम के लिए ले जाया गया साथ में दो जज भी गए थे...”
अन्त में, उन्होंने जज रूपेश आर राठी के बयान का हिस्सा पढ़ा जिन्होंने कहा कि दांडे अस्पताल में ईसीजी मशीन टूटा हुआ था।
“गहरी जांच के दौरान इन चार जजों के बयान 1 दिसंबर 2014 को जो हुआ उसके बारे में उनकी याददाश्त पर आधारित हैं। समय को लेकर थोड़ा बहुत विरोधाभास और किसने किसको बुलाया यह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं होना चाहिए”, रोहतगी ने कहा।
जहाँ तक कि ईसीजी के बारे में विवाद की बात है, “दांडे अस्पताल में ईसीजी किया गया। यह रिपोर्ट पुलिस रिकॉर्ड का हिस्सा है जो मैं दिखाऊंगा। अपने बयान में जज बरदे ने कहा है कि उस समय ड्यूटी पर तैनात मेडिकल ऑफिसर ने जज लोया का ईसीजी किया था। जज राठी ने कहा है कि ईसीजी मशीन टूटा हुआ था और यह स्वाभाविक विरोधाभास है। जहाँ तक इलाज की बात है, जज लोगों की जानकारी सामान्य लोगों की तरह होती है और उनकी सोच अलग रही होगी”।
सुनवाई के अंत में एडवोकेट दवे ने राज्य के खुफिया आयुक्त द्वारा उन चार जजों को लिखे गए पत्र को पढ़कर सुनाने को कहा जिस पर रोहतगी ने कहा कि उनके पास खुद यह पत्र नहीं है।