जब दो वयस्क सहमति से शादी करने का फैसला लेते हैं तो किसी को हस्तक्षेप का हक नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों को दी सीधी चेतावनी
सम्मान के लिए हत्या यानी ‘ऑनर किलिंग’ के अपराध के संबंध में एनजीओ शक्ति वाहिनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने फिर से दोहराया, "जहां आपसी सहमति से दो व्यस्क वैवाहिक संबंधों के लिए राजी होते हैं तो कोई भी व्यक्तिगत अधिकार, समूह के अधिकार या सामूहिक अधिकार उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते या जोडे को परेशान नहीं कर सकते।”
वहीं खाप पंचायत से लिए पेश वकील ने कहा, "खाप पंचायतों ने अंतर जातीय और अंतर धर्म विवाहों को प्रोत्साहित किया है। हरियाणा में विषम लिंग अनुपात की वजह से 25 लाख स्थानीय लड़कों ने अन्य राज्यों में शादी की है। खाप पंचायत को समान गोत्र में शादी करने से ऐतराज है। उन्होंने कहा, मैं 'हुड्डा' हूँ; यह एक पुरानी परंपरा है कि एक हुड्डा दूसरे हुड्डा से शादी नहीं करेगा क्योंकि वो
एक सामान्य पूर्वज से आए हुए माने गए हैं और इसलिए भाई बहन हैं। यहां तक कि 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 में सपिंड में विवाह पर पाबंदी है। इसमें पिता के पक्ष से 5 डिग्री संबंधों के भीतर गणना है और माता के पक्ष में 3 डिग्री की गणना की जाती है। वैज्ञानिक रूप से यह भी साबित हो गया है कि ऐसे विवाहों में बच्चों की आनुवांशिकी पर एक विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।”
लेकिन मुख्य न्यायाधीश मिश्रा ने इससे इनकार किया। "हम खाप पंचायतों से इत्तेफाक नहीं रखते। कोई भी, ना ही पंचायत, ना समाज, माता-पिता या किसी भी पार्टी के अन्य रिश्तेदार शादीमें हस्तक्षेप कर सकते हैं।” इसके बाद मुख्य न्यायाधीश मिश्रा ने टिप्पणी की,"हम यहाँ एक निबंध नहीं लिख रहे हैं। हम सपिंड या गोत्र से चिंतित नहीं हैं। हम शादी करने के लिए केवल दो वयस्कों के निर्णय में रुचि रखते हैं। अगर वैवाहिक स्थिति या संपत्ति के संबंध में कोई मुद्दा उठता है, तो अदालत निर्णय लेने की हकदार होगी।
बच्चे वैध या नाजायज हो सकते हैं जो विभाजन वाद में देखा जा सकता है।इसी तरह, यहां तक कि शादी भी निरर्थक और शून्य हो सकती है। लेकिन आप इससे बाहर रहते हैं और कोई तृतीय पक्ष हस्तक्षेप नहीं करेगा। हमने पहले से ही विकास यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में ये स्पष्ट रूप से कहा है। "
खाप पंचायतों का प्रतिनिधित्व करते हुए एक अन्य वकील ने एमिक्स क्यूरीराजू रामचंद्रन द्वारा दिए गए सुझावों के बारे में चिंता व्यक्त की,"'सम्मान की हत्या' इन घृणित अपराधों के लिए सम्मानजनक शब्द है। हालांकि गोत्र के कारण इनमें से केवल 3 प्रतिशत हत्याएं होती हैं। सम्मान के लिए हत्याओं पर रोक लगाने के लिए 20 से ज्यादा खाप पंचायतों ने प्रस्ताव पारित किए हैं।इसलिए इस संबंध में 'गैरकानूनी सभा’' शब्द का उपयोग मानहानि के बराबर है।
जवाब में वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने कहा, “ 242 वें कानून आयोग की रिपोर्ट मेंखाप पंचायत का शब्द का इस्तेमाल किया गया है। अदालत किसी तटस्थ नाम का उपयोग कर सकती है, जैसे विवाह निषेध सभा। इसके अलावा, 1955 के अधिनियम में केवल सपिंड विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया है जो कि सगोत्र विवाह से अलग है।”
हाल ही में हुई अंकित सक्सेना की हत्या का उदाहरण देकर इसके बारे में चर्चा करने के लिए याचिका के दायरे का विस्तार करने की बात को खारिज करते हुए बेंच ने सम्मान के लिए हत्याओं से निपटने के लिए अधिवक्ताओं
से पुलिस समितियों के गठन पर सुझाव मांगा। बेंच ने एएसजी पिंकी आनंद को निर्देश दिया कि वह एमिक्स क्यूरी के सुझावों पर राज्य के जवाब को शीघ्रता से दाखिल करें क्योंकि ये एक गंभीर मुद्दा है।मामले की अगली सुनवाई 16 फरवरी को होगी।