हिरासत में टॉर्चर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व कानून मंत्री की याचिका पर सुनवाई बंद की, कहा ये संसद का काम
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो हिरासत में टॉर्चर को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संधि को अपनाते हुए कानून बनाने के निर्देश जारी नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि ये संसद का काम है।
इसी के साथ चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने पूर्व कानून मंत्री डॉ अश्विनी कुमार की याचिका का निस्तारण करते हुए सुनवाई बंद कर दी।
सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस मिश्रा ने कहा कि कोर्ट संसद को कानून बनाने के लिए कैसे आदेश दे सकता है ? कानून बनाना संसद का अधिकार है।
केंद्र सरकार की ओर से AG के के वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा कि हिरासत में टॉर्चर को लेकर लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट दी है, जिसपर विचार हो रहा है। ये पूरी तरह संसद का अधिकार क्षेत्र है और संसद ही इस पर कोई फैसला लेगी।
वहीं एमिक्स क्यूरी कॉलिन गोंजाल्विस ने भी कहा कि कार्यपालिका का मामला है।
हालांकि याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार का कहना था कि संसदीय स्थायी समिति ने भी टॉर्चर को लेकर अलग से कानून बनाने की सिफारिश की है।
वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि ये सरकार के ऊपर है कि वो राजनीतिक तरीके से इस अंतर्राष्ट्रीय संधि पर फैसला ले।
वहीं चीफ जस्टिस ने कहा कि जब याचिकाकर्ता की सरकार थी तब ये कदम क्यों नहीं उठाया गया। कोर्ट ने कहा कि क्योंकि मामले पर विचार किया जा रहा है इसलिए कोर्ट इस याचिका को लंबित नहीं रखना चाहता।
दरअसल अश्विनी कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में हिरासत में टॉर्चर को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संधियों के तहत कानून बनाने के लिए केंद्र को निर्देश जारी करने की मांग की थी।
गौरतलब है कि लॉ कमीशन ने हिरासत में टॉर्चर को लेकर नया बिल तैयार किया है। नए बिल के मुताबिक अगर कोई सरकारी अधिकारी या पुलिस वाला हिरासत में टॉर्चर करता है तो उसे उम्र क़ैद की सज़ा के साथ जुर्माना भी लगाया जाए। लॉ कमिशन ने बिल को कानून मंत्रालय को दिया है।
लॉ कमीशन के बिल का नाम " द प्रीवेंशन ऑफ टॉर्चर बिल 2017" है। लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र सरकार यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन की पुष्टि करती है जिसमें उन्होंने हिरासत में टॉर्चर को लेकर सज़ा की बात कही गई है।
लॉ कमीशन ने कहा है कि भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए है , लेकिन एन्टी टॉर्चर लॉ के न होने से इस संधि का अनुसमर्थन करना बाक़ी है। 160 देश इसका अनुसमर्थन करते है।
लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पीड़ित को मुआवजा देने के लिए ,में बदलाव की जरूरत है। कमीशन ने ये भी कहा है CRPC में बदलाव कर मुआवजा और जुर्माने का प्रावधान किया जाए।