UAPA | जांच के लिए समय बढ़ाने के आदेश में त्रुटि, आरोपपत्र दाखिल होने के बाद डिफ़ॉल्ट जमानत का कोई आधार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
14 Dec 2024 10:19 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम अधिनियम), 1967 (UAPA) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत देने के पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के 12 मई, 2023 का आदेश इस आधार पर खारिज किया कि सक्षम आदेश की कमी के कारण जांच एजेंसी को आरोपपत्र दाखिल करने के लिए समय बढ़ाया गया, इसलिए आरोपी व्यक्तियों को डिफ़ॉल्ट जमानत का लाभ मिलना चाहिए।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की खंडपीठ ने कहा कि हालांकि हाईकोर्ट का यह मानना सही था कि विस्तार का आदेश ऐसे न्यायालय द्वारा पारित किया गया, जो क्षेत्राधिकार में सक्षम नहीं था। हालांकि, चूंकि डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन आरोपपत्र दाखिल होने के 4 महीने बाद पेश किया गया, इसलिए ऐसा कोई अधिकार कायम नहीं है।
इसने कहा: डिफ़ॉल्ट जमानत का लाभ केवल आरोपपत्र दाखिल होने से पहले ही दिया जा सकता है, जो इस मामले में लागू नहीं था। इसलिए हाईकोर्ट ने डिफॉल्ट बेल के लिए आवेदन से काफी पहले चार्जशीट पेश किए जाने के तथ्य को स्पष्ट रूप से नजरअंदाज करके आरोपी-प्रतिवादियों को गलत तरीके से ऐसा लाभ दिया।"
मामले के तथ्य
संक्षिप्त तथ्यों के अनुसार, 15 सितंबर, 2021 को जलालाबाद (फजलिखा) में मोटरसाइकिल पर बम विस्फोट हुआ। इसके अनुसरण में घटना के अगले दिन विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 की धारा 3 और 4; UAPA की धारा 13, 15, 17, 18, 18बी, 20 और नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 21, 29, 61-85 के तहत एफआईआर नंबर 205 दर्ज की गई।
पुलिस अधिकारियों को बताया गया कि अगर तरलोक सिंह के घर पर छापा मारा जाए तो आरोपी व्यक्तियों को पकड़ा जा सकता है तो FIR नंबर 181 दर्ज की गई। इस मामले में आईपीसी की धारा 212 और 216 तथा UAPA की धारा 18 और 19 के तहत मामला दर्ज किया गया। इसके बाद जसवंत सिंह उर्फ शिंदा बाबा और बलवंत सिंह उर्फ बंत, रंजीत सिंह उर्फ गोरा, मंजीत सिंह उर्फ माना, सुखविंदर सिंह उर्फ सुखा और परवीन सिंह को गिरफ्तार किया गया। 14 फरवरी, 2020 को जसवंत सिंह ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 167(2) के तहत डिफॉल्ट जमानत याचिका दायर की। इसे उसी दिन इस आधार पर खारिज किया गया कि जांच एजेंसी को 31 जनवरी, 2022 के आदेश के तहत आरोपपत्र दाखिल करने के लिए 180 दिनों का विस्तार पहले ही दिया जा चुका है। इसके बाद 14 फरवरी के आदेश के खिलाफ कोई अपील नहीं की गई। इसके बाद 29 अप्रैल, 2022 को सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया और 8 जुलाई, 2022 को मामला लुधियाना के सत्र न्यायाधीश के समक्ष सौंप दिया गया।
2 सितंबर, 2022 को CrPC की धारा 167(2) के साथ UAPA की धारा 43डी के तहत डिफॉल्ट जमानत की मांग करते हुए सामान्य आवेदन एडिशनल सेशन जज, लुधियाना के समक्ष दायर किया गया। उक्त आवेदन 5 सितंबर, 2022 को इस तर्क के साथ खारिज कर दिया गया कि चालान इस आवेदन के दाखिल होने से काफी पहले 29 अप्रैल, 2022 को पेश किया गया।
हाईकोर्ट में अपील
इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई, जिसे पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने इस आधार पर स्वीकार किया कि जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने का वैध अधिकार केवल नामित विशेष न्यायालय के पास है। हालांकि, इस मामले में जगरांव के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आदेश पारित किया, जो आदेश पारित करने के लिए न्यायिक रूप से अक्षम था।
हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि आरोपी व्यक्तियों को जांच एजेंसी द्वारा समय का कोई वैध विस्तार नहीं दिया गया, इसलिए वे डिफ़ॉल्ट जमानत का लाभ प्राप्त करने के हकदार थे।
इससे व्यथित होकर पंजाब राज्य ने वर्तमान मामले में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश से इस हद तक सहमति जताई कि उसने पाया कि जांच के लिए समय का विस्तार अधिकार क्षेत्र की दृष्टि से अक्षम अदालत द्वारा दिया गया। इसलिए 31 जनवरी, 2022 का आदेश, इस प्रकार, अमान्य था।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 167(2) के साथ UAPA की धारा 43डी के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत आवेदन चार्जशीट दाखिल होने से पहले के चरण में पसंद किया जाता है।
संजय दत्त बनाम राज्य सीबीआई, बॉम्बे (1994) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:
"डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार तब प्राप्त होता है, जब जांच का समय या विस्तारित समय पूरा हो जाता है। फिर भी कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है और यह अधिकार तब तक कायम रहता है जब तक कि संबंधित मामले में चार्जशीट दाखिल नहीं हो जाती। कानून की स्थिति को न्यायालयों द्वारा बार-बार स्पष्ट किया गया।"
संजय दत्त के फैसले में न्यायालय ने कहा:
"ऐसी स्थिति में अभियुक्त को मिलने वाला अप्रतिदेय अधिकार चालान दाखिल होने से पहले ही लागू हो सकता है। यदि इसका लाभ पहले से नहीं उठाया गया तो यह चालान दाखिल होने पर लागू नहीं रह सकता। चालान दाखिल होने के बाद जमानत देने के सवाल पर विचार किया जाना चाहिए और चालान दाखिल होने के बाद अभियुक्त को जमानत देने से संबंधित प्रावधानों के तहत मामले की योग्यता के संदर्भ में ही निर्णय लिया जाना चाहिए। चालान दाखिल होने के बाद अभियुक्त की हिरासत धारा 167 द्वारा नहीं बल्कि दंड प्रक्रिया संहिता के विभिन्न प्रावधानों द्वारा शासित होती है।"
इसने सीबीआई बनाम कपिल वधावन (2024) का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया:
"संहिता की धारा 167 की उपधारा (2) में संलग्न प्रावधान का लाभ अपराधी को तभी मिलेगा जब आरोप-पत्र दाखिल न किया गया हो और उसके खिलाफ जांच लंबित रखी गई हो। हालांकि, एक बार आरोप-पत्र दाखिल हो जाने के बाद उक्त अधिकार समाप्त हो जाता है।"
इसके आधार पर न्यायालय ने कहा:
"इसलिए समय-सीमा और मामले के तथ्यों को देखते हुए यह पर्याप्त रूप से स्पष्ट है कि डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन करने की तिथि यानी 02.09.2022 को ऐसा कोई अधिकार कायम नहीं था, क्योंकि चालान पहले ही दाखिल किया जा चुका था।
केस टाइटल: पंजाब राज्य बनाम सुखविंदर सिंह