सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

27 Oct 2024 12:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (21 अक्टूबर, 2024 से 25 अक्टूबर, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    पर्यवेक्षी क्षमता में कार्यरत कर्मचारी औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत 'कर्मचारी' नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कोई कर्मचारी औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (जैसा कि 2010 में संशोधित किया गया) की धारा 2(एस) के तहत "कर्मचारी" की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है, क्योंकि वह पर्यवेक्षी क्षमता में कार्यरत था और 10,000/- रुपये प्रति माह से अधिक वेतन प्राप्त कर रहा था।

    केस टाइटल: प्रबंधन, मेसर्स एक्सप्रेस पब्लिकेशन्स (मदुरै) लिमिटेड बनाम लेनिन कुमार रे, एसएलपी (सी) 12876/2024 से उत्पन्न

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    S. 126 TPA | गिफ्ट डीड को सामान्य रूप से निरस्त नहीं किया जा सकता, विशेषकर तब जब डीड में निरस्तीकरण का कोई अधिकार सुरक्षित न हो: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपहार विलेख को सामान्य रूप से निरस्त नहीं किया जा सकता, विशेषकर तब जब डीड में निरस्तीकरण का कोई अधिकार सुरक्षित न हो। निर्णय में संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 126 के अनुसार गिफ्ट डीड को निरस्त करने की शर्तों को भी स्पष्ट किया गया।

    जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने कहा कि जब गिफ्ट डीड दाता द्वारा उपहार प्राप्तकर्ता के पक्ष में निष्पादित किया जाता है, जिसमें उपहार का उद्देश्य निर्धारित किया जाता है। किसी भी आकस्मिकता में इसके निरस्तीकरण के लिए कोई अधिकार सुरक्षित नहीं होता है तो गिफ्ट प्राप्तकर्ता द्वारा गिफ्ट के उद्देश्य की पूर्ति इसे वैध उपहार बनाती है, जिससे यह अपरिवर्तनीय हो जाता है।

    केस टाइटल: एन. थाजुदीन बनाम तमिलनाडु खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड, सिविल अपील नंबर 6333/2013

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    शीर्षक घोषणा वाद में कब्जे की वसूली भी मांगी जाती है तो कब्जे की वसूली के लिए सीमा अवधि भी लागू होती है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब शीर्षक घोषणा के लिए वाद के साथ-साथ एक और राहत मांगी जाती है तो सीमा अवधि उस अनुच्छेद द्वारा शासित होगी, जो इस तरह की अतिरिक्त राहत के लिए वाद को नियंत्रित करता है।

    जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यदि शीर्षक घोषणा के लिए वाद में कब्जे की वसूली के लिए एक और राहत भी मांगी जाती है तो वाद दायर करने की सीमा अवधि कब्जे की वसूली के लिए वाद दायर करने के लिए निर्धारित सीमा अवधि (यानी, परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 65 के अनुसार 12 वर्ष) द्वारा शासित होगी, न कि शीर्षक की घोषणा के लिए निर्धारित सीमा अवधि (यानी, सीमा अधिनियम के अनुच्छेद 58 के अनुसार 3 वर्ष) द्वारा।

    केस टाइटल: एन. थाजुदीन बनाम तमिलनाडु खादी और ग्राम उद्योग बोर्ड, सिविल अपील नंबर 6333/2013

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    जन्म तिथि के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड उपयुक्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता की आयु निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि को स्वीकार करने के हाई कोर्ट का निर्णय खारिज किया। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने आयु के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड की उपयुक्तता को स्वीकार करने की इच्छा नहीं जताई। कोर्ट ने कहा कि मृतक की आयु निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि का संदर्भ देने के बजाय किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) की धारा 94 के तहत वैधानिक मान्यता प्राप्त स्कूल अवकाश प्रमाण पत्र में उल्लिखित जन्म तिथि से मृतक की आयु अधिक अधिकारपूर्वक निर्धारित की जा सकती है।

    केस टाइटल: सरोज एवं अन्य बनाम इफको-टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी एवं अन्य, सी.ए. नंबर 012077 - 012078 / 2024

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    जमानत याचिका खारिज करते समय जांच को CBI को ट्रांसफर करने का आदेश नहीं दिया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दायर जमानत याचिका पर विचार करते समय कोर्ट जांच को किसी अन्य एजेंसी को ट्रांसफर नहीं कर सकता।

    कोर्ट ने कहा, “यह कहना पर्याप्त है कि अपीलकर्ता द्वारा दायर जमानत याचिका खारिज करते समय हाईकोर्ट को जांच CBI को ट्रांसफर नहीं करना चाहिए था। निर्देश वस्तुतः नए सिरे से जांच करने का है। अपीलकर्ता द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज करते समय ऐसा निर्देश जारी नहीं किया जा सकता था।”

    केस टाइटल- अभिषेक और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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    पराली जलाना अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के मौलिक अधिकार का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस बात पर जोर दिया कि पराली जलाना केवल कानून के उल्लंघन का मुद्दा नहीं है बल्कि यह प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई है।

    उन्होंने कहा कि भारत सरकार और राज्य सरकारों को यह याद दिलाने का समय आ गया है कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार निहित है। ये केवल मौजूदा कानूनों को लागू करने के मामले नहीं हैं, ये संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के घोर उल्लंघन के मामले हैं। यह केवल आयोग के आदेशों को लागू करने और कानून के उल्लंघन के लिए कार्रवाई करने का प्रश्न नहीं है। सरकार को खुद इस सवाल का जवाब देना होगा कि वे नागरिकों के गरिमा के साथ और प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीने के अधिकार की रक्षा कैसे करेंगे।

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    कार्ड जारी करने वाला बैंक इंटरचेंज रेट पर सर्विस टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं, जबकि यह MDR पर पहले ही भुगतान किया जा चुका है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि कार्ड जारी करने वाला बैंक इंटरचेंज शुल्क पर अलग से सेवा कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है, जबकि उक्त कर पहले से ही मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) पर भुगतान किया जा चुका है।

    जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आर. महादेवन की तीन जजों की पीठ ने कहा कि "MDR पर देय सेवा कर की पूरी राशि सरकार को भुगतान कर दी गई और राजस्व की कोई हानि नहीं हुई।" (पैरा 9)

    केस टाइटल: जीएसटी और केंद्रीय उत्पाद शुल्क आयुक्त बनाम सिटीबैंक

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    सुप्रीम कोर्ट ने 'Intoxicating Liquor' शब्द के अंतर्गत औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने का राज्यों का अधिकार बरकरार रखा

    सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने 8:1 बहुमत से कहा कि राज्यों के पास 'विकृत स्प्रिट या औद्योगिक अल्कोहल' को विनियमित करने का अधिकार है। बहुमत ने यह निष्कर्ष निकाला कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 8 में "Intoxicating Liquor" (मादक शराब) शब्द में औद्योगिक अल्कोहल शामिल होगा।

    बहुमत ने कहा कि "मादक शराब" शब्द की व्याख्या संकीर्ण रूप से केवल मानव उपभोग के लिए उपयुक्त अल्कोहल को शामिल करने के लिए नहीं की जा सकती। यह माना गया कि ऐसे तरल पदार्थ जिनमें अल्कोहल होता है, जिनका मानव उपभोग के लिए उपयोग या दुरुपयोग किया जा सकता है, उन्हें "मादक शराब" शब्द के अंतर्गत शामिल किया जा सकता है।

    केस टाइटल: उत्तर प्रदेश राज्य बनाम मेसर्स लालता प्रसाद वैश्य सी.ए. नंबर 000151/2007 और अन्य संबंधित मामले

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    सुप्रीम कोर्ट ने BCCI के साथ समझौते के आधार पर Byju के खिलाफ दिवालियेपन की प्रक्रिया बंद करने के NCLAT का आदेश खारिज किया

    सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें एड-टेक कंपनी Byju (थिंक एंड लर्न प्राइवेट लिमिटेड) के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही बंद कर दी गई थी। इसमें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के साथ करीब 158 करोड़ रुपये के समझौते को स्वीकार किया गया था।

    कोर्ट ने माना कि NCLAT ने NCLAT नियम 2016 के नियम 11 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल करके दिवालियेपन के आवेदन को वापस लेने की अनुमति देकर गलती की। जब दिवालियेपन के आवेदनों को वापस लेने के लिए विशिष्ट प्रक्रिया प्रदान की जाती है तो NCLAT अपनी अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकता।

    केस टाइटल: ग्लास ट्रस्ट कंपनी एलएलसी बनाम बायजू रवींद्रन | डायरी नंबर - 35406/2024

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    सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत बेदखली आदेश संविदात्मक विवादों के लिए मध्यस्थता पर रोक नहीं लगाता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविदात्मक विवादों को तय करने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (मध्यस्थता अधिनियम) की धारा 11(6) के तहत आवेदन दाखिल करने पर मध्यस्थता खंड को लागू करते समय सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत संपदा अधिकारी द्वारा पारित बेदखली आदेश आड़े नहीं आएगा।

    जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि जब पक्षों के बीच हुए समझौते में विशेष रूप से मध्यस्थता खंड शामिल होता है, जिसमें कहा जाता है कि समझौते से उत्पन्न विवाद (विशेष रूप से समझौते के नवीनीकरण) का समाधान मध्यस्थता द्वारा किया जाएगा तो सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत संपदा अधिकारी द्वारा समझौते की समाप्ति के बाद अनधिकृत कब्जे में रहने वाले पक्ष को बेदखल करने का आदेश, बेदखल पक्ष को समझौते से उत्पन्न विवाद का निर्णय करने के लिए मध्यस्थता खंड का आह्वान करने से नहीं रोकेगा।

    केस टाइटल: सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन एवं अन्य बनाम सिद्धार्थ टाइल्स एंड सैनिटरी प्राइवेट लिमिटेड, सी.ए. संख्या 011723/2024

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    ट्रेडिंग एसेट के रूप में जाने पर बैंक HTM प्रतिभूतियों पर टूटी अवधि के ब्याज के लिए टैक्स कटौती का दावा कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंक परिपक्वता तक रखी गई (HTM) सरकारी प्रतिभूतियों पर टूटी अवधि के ब्याज के लिए टैक्स कटौती का दावा कर सकते हैं, यदि उन्हें ट्रेडिंग एसेट के रूप में रखा जाता है।

    कोर्ट ने कहा, इसलिए तथ्यों के आधार पर यदि यह पाया जाता है कि HTM प्रतिभूति को निवेश के रूप में रखा जाता है तो टूटी अवधि के ब्याज का लाभ उपलब्ध नहीं होगा। यदि इसे ट्रेडिंग एसेट के रूप में रखा जाता है, तो स्थिति अलग होगी।”

    केस टाइटल - बैंक ऑफ राजस्थान लिमिटेड बनाम आयकर आयुक्त

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