क्या असंवैधानिक कानूनों को बचाने के लिए Saving Clause का उपयोग किया जा सकता है?
Himanshu Mishra
8 Jan 2025 5:59 PM IST
State of Manipur v. Surjakumar Okram के मामले ने विधायी शक्तियों (Legislative Powers), असंवैधानिकता के सिद्धांत (Doctrine of Unconstitutionality), और न्यायपालिका की भूमिका (Role of Judiciary) जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी (नियुक्ति, वेतन और भत्ते और विविध प्रावधान) अधिनियम, 2012 और इसके निरस्तीकरण (Repeal) को लेकर 2018 में बनाए गए कानून की वैधता पर निर्णय दिया। यह निर्णय संविधान के तहत शक्तियों के संतुलन और विधायिका व न्यायपालिका के बीच संबंधों को समझने का अवसर प्रदान करता है।
विधायी क्षमता और असंवैधानिकता का सिद्धांत (Legislative Competence and Doctrine of Unconstitutionality)
इस मामले का मुख्य मुद्दा यह था कि क्या मणिपुर विधानसभा (Legislature) के पास 2012 का अधिनियम बनाने और 2018 के निरस्तीकरण अधिनियम द्वारा इसे रद्द करने की शक्ति थी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी सक्षम विधायिका (Competent Legislature) द्वारा बनाया गया कानून तब तक वैध (Valid) रहता है जब तक कि इसे किसी सक्षम न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित न कर दिया जाए।
एक बार जब कोई कानून असंवैधानिक घोषित कर दिया जाता है, तो उसे Void Ab Initio (शुरू से ही शून्य) माना जाता है, और यह ऐसा हो जाता है जैसे वह कभी अस्तित्व में ही नहीं था।
Bimolangshu Roy v. State of Assam (2018) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने असम विधानसभा द्वारा 2004 में बनाए गए इसी तरह के पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया।
कोर्ट ने यह पाया कि संविधान के अनुच्छेद 194(3) (Article 194(3)) या अनुसूची VII (Seventh Schedule) की प्रविष्टियों के तहत ऐसी कार्यालयों (Offices) को बनाने की शक्ति राज्य विधायिका के पास नहीं है। मणिपुर का 2012 अधिनियम भी इसी कमी से प्रभावित था।
निरस्तीकरण और बचाव खंड का दायरा (Repeal and Scope of Saving Clauses)
मणिपुर विधानसभा ने 2018 का निरस्तीकरण अधिनियम पारित किया, जो 2012 अधिनियम को स्पष्ट रूप से समाप्त करता है। हालांकि, इस अधिनियम में एक बचाव खंड (Saving Clause) शामिल था जो 2012 अधिनियम के तहत किए गए कार्यों को वैध बनाए रखने का प्रयास करता था।
यह समझना आवश्यक है कि वैध कानून के निरस्तीकरण (Repeal) और असंवैधानिक कानून की समाप्ति (Invalidation) के बीच अंतर होता है।
जब किसी वैध कानून को रद्द किया जाता है, तो बचाव खंड उसके प्रभावों को पिछली तिथि (Retrospectively) से संरक्षित कर सकता है। लेकिन जब कोई कानून असंवैधानिक होता है, तो वह शुरुआत से ही शून्य (Void) होता है। इसलिए, ऐसे कानून के तहत किए गए किसी भी कार्य या नियुक्तियों को वैध नहीं ठहराया जा सकता।
कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि 2018 अधिनियम में बचाव खंड जोड़ना विधायिका के अधिकार क्षेत्र (Legislative Competence) से बाहर था।
मौलिक संवैधानिक मुद्दे (Fundamental Constitutional Issues)
1. अनुच्छेद 246 और अनुसूची VII की प्रविष्टियों के तहत विधायी अधिकार (Legislative Authority under Article 246 and Entries in Seventh Schedule)
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुसूची VII की प्रविष्टि 39 राज्य विधानसभा और उसके सदस्यों की शक्तियों और विशेषाधिकारों (Privileges) से संबंधित है, जबकि प्रविष्टि 40 राज्य के मंत्रियों के वेतन और भत्तों से संबंधित है। किसी नई पदवी (Office) जैसे पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी बनाने के लिए इन प्रविष्टियों का विस्तार नहीं किया जा सकता।
2. परिनियमन का सिद्धांत (Doctrine of Prospective Overruling)
कोर्ट ने परिनियमन के सिद्धांत का हवाला दिया, जो पहले से लागू किसी कानून को रद्द करने के बाद, उसके तहत किए गए सार्वजनिक कार्यों को बचाने की अनुमति देता है। यह सिद्धांत पहली बार I.C. Golak Nath v. State of Punjab (1967) में लागू किया गया था और तब से संवैधानिक विवादों में संतुलन बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
3. अनुच्छेद 142: सुप्रीम कोर्ट की शक्ति (Powers of the Supreme Court under Article 142)
अनुच्छेद 142 के तहत, सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासनिक अव्यवस्था (Administrative Chaos) से बचने के लिए 2012 अधिनियम के तहत किए गए कार्यों और निर्णयों को संरक्षित किया। यह राहत 2018 अधिनियम में दिए गए बचाव खंड को अमान्य घोषित करने के बावजूद दी गई।
प्रमुख न्यायिक निर्णयों का उल्लेख (Judicial Precedents Highlighted)
कोर्ट ने अपने निष्कर्षों को प्रमाणित करने के लिए कई न्यायिक मिसालों (Precedents) का उल्लेख किया:
• Kay v. Goodwin (1830): यह स्थापित किया कि किसी अधिनियम को रद्द करने का प्रभाव उसे अस्तित्व से पूरी तरह मिटाने जैसा होता है।
• State of U.P. v. Hirendra Pal Singh (2011): रद्द किए गए अधिनियम को ऐसा माना जाता है जैसे वह कभी अस्तित्व में नहीं था।
• Deep Chand v. State of U.P. (1959): यह सिद्ध किया कि विधायी क्षमता से परे बनाए गए कानून शुरू से ही शून्य होते हैं।
बचाव खंड और संवैधानिक ढांचे में इसकी भूमिका (Saving Clauses in Constitutional Framework)
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि निरस्तीकरण अधिनियम में शामिल बचाव खंड केवल वैध कानूनों के तहत किए गए कार्यों की रक्षा कर सकता है। असंवैधानिक कानूनों के तहत किए गए कार्यों को वैध ठहराने का अधिकार केवल न्यायपालिका के पास है।
State of Manipur v. Surjakumar Okram का निर्णय विधायी क्षमता और न्यायिक पुनर्विचार (Judicial Review) पर संवैधानिक सिद्धांतों को पुन: स्थापित करता है। यह निर्णय इस तथ्य को रेखांकित करता है कि असंवैधानिक कानूनों को विधायी कार्यों द्वारा बचाया नहीं जा सकता, चाहे उनकी मंशा कितनी भी अच्छी क्यों न हो। यह निर्णय भारतीय संविधान में संवैधानिक सर्वोच्चता (Constitutional Supremacy) के महत्व को पुन: पुष्टि करता है।