वैवाहिक उपाय एक-दूसरे से जुड़े हो सकते हैं, पर क्रूरता के आरोप चुनिंदा रूप से नहीं उभर सकते: हाईकोर्ट ने धारा 498-A की FIR रद्द की

Praveen Mishra

29 Dec 2025 11:35 PM IST

  • वैवाहिक उपाय एक-दूसरे से जुड़े हो सकते हैं, पर क्रूरता के आरोप चुनिंदा रूप से नहीं उभर सकते: हाईकोर्ट ने धारा 498-A की FIR रद्द की

    जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय ने यह माना है कि धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 तथा धारा 498-A आईपीसी के तहत चलने वाली कार्यवाही को हमेशा अलग-अलग और सख्ती से विभाजित रखना आवश्यक नहीं है, क्योंकि दहेज माँग, मानसिक क्रूरता, शारीरिक उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से जुड़ी शिकायतें प्रायः आपस में जुड़ी होती हैं। हालाँकि, न्यायमूर्ति संजय परिहार ने यह स्पष्ट किया कि यदि पत्नी किसी घरेलू उत्पीड़न का दावा करती है, तो ऐसे आरोप सामान्यतः सभी समानांतर कार्यवाहियों में समान रूप से परिलक्षित होने चाहिए।

    यह टिप्पणी उस मामले में की गई जहाँ न्यायालय ने धारा 498-A आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम के तहत दर्ज एफआईआर से उत्पन्न आपराधिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह मुकदमा कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। याचिका पति और उसकी माँ की ओर से दायर की गई थी, जिन्होंने यह दलील दी कि पत्नी पहले ही 125 CrPC और घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही शुरू कर चुकी थी और बाद में दर्ज की गई एफआईआर पति की दूसरी शादी के प्रतिशोधस्वरूप दायर की गई।

    रिकॉर्ड से पता चला कि विवाह 2016 में हुआ था और एक बच्चा भी पैदा हुआ। वैवाहिक संबंधों में मतभेद के बाद पति ने 2022 में तीन बार तलाक उच्चारित करने का दावा किया। इसके बाद पत्नी ने अगस्त 2022 में भरण-पोषण और अन्य राहतों के लिए कार्यवाही शुरू की, जबकि एफआईआर मार्च 2023 में दर्ज की गई जिसमें दहेज माँग और मारपीट के आरोप लगाए गए।

    न्यायालय ने पाया कि इससे पहले दायर कार्यवाहियों में दहेज या निरंतर क्रूरता के आरोपों का कोई उल्लेख नहीं था। पत्नी के कथित तौर पर जुलाई 2022 में घर से निकाले जाने के बावजूद उस समय कोई आपराधिक शिकायत दर्ज नहीं की गई, जो मामले की विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न करता है। अदालत ने यह भी नोट किया कि दहेज से संबंधित आरोप पहली बार तभी सामने आए जब पति ने दूसरी शादी की।

    न्यायालय के अनुसार, शिकायत के पैरा-7 से स्पष्ट होता है कि एफआईआर दर्ज करने का वास्तविक कारण पति की दूसरी शादी थी, न कि किसी निरंतर या तत्काल क्रूरता का आरोप। दहेज संबंधी आरोपों में देरी, ठोस तथ्य, तिथियों और विशिष्ट घटनाओं का अभाव तथा 161 और 164 CrPC के बयानों में विवरण न होना, अभियोजन मामले को कमजोर बनाता है।

    सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक विवादों में अदालतों को सावधानी बरतनी चाहिए, विशेषकर तब जब सामान्य, अस्पष्ट और सामूहिक आरोप लगाए जाएँ। न्यायालय ने कहा कि धारा 498-A का उद्देश्य वास्तविक पीड़ितों की रक्षा करना है, परंतु इसका दुरुपयोग दबाव बनाने के साधन के रूप में नहीं होना चाहिए।

    अंततः न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि इस तरह की आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करेगा। इसलिए, एफआईआर और उससे उत्पन्न सभी कार्यवाहियाँ रद्द कर दी गईं।

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