'पांच साल पुरानी FIR के आधार पर नज़रबंदी, निकट संबंध के अभाव का संकेत देती है': जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने PSA के तहत निवारक नज़रबंदी आदेश रद्द किया

Shahadat

2 Nov 2025 6:44 PM IST

  • पांच साल पुरानी FIR के आधार पर नज़रबंदी, निकट संबंध के अभाव का संकेत देती है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने PSA के तहत निवारक नज़रबंदी आदेश रद्द किया

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि किसी पुरानी और पुरानी घटना पर आधारित निवारक नज़रबंदी आदेश बरकरार नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि कथित अपराध और नज़रबंदी के बीच पांच साल का अंतराल दोनों के बीच किसी भी प्रत्यक्ष और निकट संबंध के अभाव को दर्शाता है।

    जस्टिस मोक्ष खजूरिया काज़मी, जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम, 1978 (PSA) के तहत ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित 30 अप्रैल 2025 के नज़रबंदी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थीं। यह नज़रबंदी 2020 में शस्त्र अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधिया (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दर्ज FIR पर आधारित थी, जिसमें बंदी को पहले ही ज़मानत मिल चुकी थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पुलिस डोजियर के दो दिनों के भीतर और बिना विश्वसनीय सामग्री प्रस्तुत किए, आदेश यंत्रवत् पारित कर दिया गया, जिससे उसे अपनी हिरासत के विरुद्ध प्रभावी ढंग से पक्ष रखने के अधिकार से वंचित कर दिया गया।

    कोर्ट ने कहा कि यदि बंदी को निवारक हिरासत में रखने के लिए जिम्मेदार अधिकारी यह तर्क देने में विफल रहते हैं कि बंदी को उसके विरुद्ध कथित घृणित गतिविधियों में लिप्त होने से रोकने के लिए मूल कानून अपर्याप्त कैसे था, तो हिरासत आदेश कायम नहीं रह सकता।

    कोर्ट ने कहा कि बंदी के विरुद्ध वर्ष 2020 में दर्ज एक मामले में संलिप्तता के लिए वर्ष 2025 में विवादित आदेश जारी किया गया। इसलिए यह आदेश अप्रासंगिक आधारों पर आधारित है। बंदी के कथित कार्यों से इसका कोई निकट संबंध नहीं है, जिन्हें राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक माना गया हो।

    कोर्ट ने कहा,

    "वर्ष 2020 में दर्ज एक मामले में बंदी की संलिप्तता के कारण उसके विरुद्ध वर्ष 2025 में आक्षेपित आदेश जारी किया गया। इसलिए यह आदेश अप्रासंगिक आधार पर दिया गया, क्योंकि आक्षेपित हिरासत आदेश FIR दर्ज होने की तिथि से पांच वर्ष बाद पारित किया गया। यह तथ्य यह दर्शाता है कि बंदी के कथित कार्यों से राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक माने जाने वाले किसी भी प्रकार का निकट संबंध नहीं है।"

    कोर्ट ने कहा कि यदि बंदी और उसके कथित विध्वंसक कार्यों के बीच कोई निकट संबंध नहीं है तो हिरासत आदेश बरकरार नहीं रखा जा सकता।

    यह मानते हुए कि हिरासत आदेश इस विषय पर क़ानून और कानून के अनुरूप नहीं था, हाईकोर्ट ने आक्षेपित आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि बंदी को तत्काल रिहा किया जाए।

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