एनडीपीएस एक्ट | प्रतिबंधित पदार्थ को सुरक्षित रखा गया था और नमूने बिना किसी देरी के एफएसएल को भेजे गए थे, यह साबित करना अभियोजन पक्ष का दायित्व: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट
Avanish Pathak
26 Aug 2024 2:35 PM IST
जम्मू एंड कश्मीर एडं लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में एनडीपीएस एक्ट, 1985 से जुड़े मामलों में अभियोजन पक्ष के दायित्व को रेखांकित किया।
कोर्ट ने कहा यह साबित करना कि प्रतिबंधित पदार्थ को सुरक्षित रखा गया था और नमूने बिना किसी देरी के फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) को भेजे गए थे, अभियोजन पक्ष का दायित्व है। उक्त टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने एनडीपीसए एक्ट, 1985 के तहत आरोपित दो व्यक्तियों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा।
जस्टिस राजेश ओसवाल और जस्टिस राजेश सेखरी की पीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि रासायनिक विश्लेषक को भेजे गए सील नमूने की अनुपस्थिति अभियोजन पक्ष के मामले को संदिग्ध बना सकती है।
राजस्थान राज्य बनाम गुरमेल सिंह AIR 2005 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने दोहराया कि यदि अभियोजन पक्ष की ओर से से प्रस्तुत लिंक साक्ष्य संतोषजनक नहीं है और यह साबित करने के लिए मालखाना रजिस्टर प्रस्तुत नहीं किया जाता है कि प्रतिबंधित माल को मालखाना की सुरक्षित कस्टडी में रखा गया था और यदि रासायनिक विश्लेषक को नमूनों के साथ सील का कोई नमूना नहीं भेजा जाता है तो अभियोजन पक्ष के मामले को संदिग्ध माना जा सकता है।
हाईकोर्ट ने अपनी विस्तृत जांच में प्रतिवादियों को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और दोहराया कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत अभियोजन पक्ष को यह साबित करना आवश्यक है कि बरामदगी और जब्ती के बाद, प्रतिबंधित पदार्थ को मालखाना में सुरक्षित रखा गया था और मालखाना रजिस्टर में उचित प्रविष्टि की गई थी।
अभियोजन पक्ष को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रतिबंधित पदार्थ का नमूना बिना किसी देरी के एफएसएल को भेजा जाए और रासायनिक विश्लेषक को प्रतिबंधित पदार्थ के साथ भेजे गए सील के नमूने की अनुपस्थिति साक्ष्य की प्रामाणिकता पर संदेह पैदा कर सकती है।
न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्य में कई विसंगतियों की ओर ध्यान दिलाया, विशेष रूप से कैप्सूल की संख्या और घटनास्थल से पुलिस स्टेशन की दूरी के संबंध में साइट प्लान में ओवरराइटिंग। गवाहों की गवाही में विसंगतियों को उजागर करते हुए न्यायालय ने पाया कि कैप्सूल की गिनती कहां और कैसे की गई और नमूने लिए गए, इस बारे में पुलिस अधिकारियों की गवाही में विरोधाभास थे। न्यायालय ने तर्क दिया कि इन विसंगतियों ने अभियोजन पक्ष के कथन की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह पैदा किया।
एनडीपीएस अधिनियम के अनिवार्य प्रावधानों के गैर-अनुपालन पर टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अभियोजन पक्ष द्वारा अधिनियम के अनिवार्य प्रावधानों, विशेष रूप से जब्त किए गए प्रतिबंधित माल के उचित संचालन और दस्तावेजीकरण के संबंध में, का पालन करने में विफलता उनके मामले के लिए हानिकारक थी।
पंजाब राज्य बनाम माखन चंद, 2004 का संदर्भ देते हुए न्यायालय ने रेखांकित किया कि अनिवार्य प्रावधानों का पालन न करना अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक हो सकता है, खासकर एनडीपीएस मामलों में जहां प्रक्रियात्मक अखंडता सर्वोपरि है। अभियोजन पक्ष और जांच अधिकारियों की ओर से इन स्पष्ट खामियों को देखते हुए पीठ ने अपील को खारिज कर दिया और आरोपी व्यक्तियों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा।
केस टाइटलः जम्मू-कश्मीर राज्य बनाम पुरुषोत्तम सिंह
साइटेशन: 2024 लाइवलॉ (जेकेएल) 245