छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने औद्योगिक उपयोग के लिए भांग की खेती की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की, बढ़ते मादक द्रव्यों के सेवन की ओर किया इशारा
Shahadat
9 July 2025 3:15 PM IST

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने डॉ. सचिन अशोक काले द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) खारिज की, जिसमें राज्य में औद्योगिक भांग/कैनबिस की खेती और विकास की अनुमति मांगी गई थी। साथ ही औषधीय, औद्योगिक और पर्यावरणीय उद्देश्यों के लिए भांग की खेती और उपयोग के लिए नियामक ढांचा परिभाषित करने, लाइसेंस देने और स्थापित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने छत्तीसगढ़ में मादक और मनोविकारकारी पदार्थों की बढ़ती खपत पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे पदार्थ न केवल उपभोक्ता के शरीर और मन पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं - अक्सर नशे की हालत में अपराध करने की ओर ले जाते हैं, बल्कि परिवार को भी बर्बाद कर देते हैं, जो गंभीर रूप से पीड़ित होता है, खासकर जब एकमात्र कमाने वाला जेल में बंद हो।
खंडपीठ ने आगे कहा,
“इस जनहित याचिका की आड़ में यह न्यायालय ऐसी किसी भी गतिविधि को प्रोत्साहित नहीं कर सकता और न ही राज्य को कोई निर्देश जारी कर सकता है, जो भविष्य में आपदा का कारण बन सकती है। छत्तीसगढ़ राज्य में भांग की खेती की अनुमति देने के लिए याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए कारण पूरी तरह से तुच्छ और निराधार हैं। याचिकाकर्ता के पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है और यह एक वास्तविक जनहित याचिका नहीं है। यह सर्वविदित है कि यदि कोई जनहित याचिका व्यक्तिगत हितों से जुड़ी हो तो वह मान्य नहीं होगी। याचिकाकर्ता ने जनहित की आड़ में इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। ऐसे निर्देश मांगे हैं, जो पूरी तरह से राज्य की विधायी और कार्यकारी नीति के दायरे में आते हैं। न्यायालय सरकार को नीतिगत निर्णय लेने का निर्देश नहीं दे सकते, खासकर मादक पदार्थ नियंत्रण जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में। NDPS Act के तहत भांग की खेती प्रतिबंधित है, सिवाय विशिष्ट अनुमत उद्देश्यों और वैधानिक प्रक्रिया के। भांग की खेती आम तौर पर मेडिकल, वैज्ञानिक, औद्योगिक या बागवानी उद्देश्यों के अलावा और केवल सरकारी प्राधिकरण के साथ ही प्रतिबंधित है। याचिकाकर्ता ने न तो कोई जनहित प्रदर्शित किया है और न ही उचित कानूनी तंत्र का पालन किया है। वर्तमान याचिका, जिसे न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कहा जा सकता है।”
मामले की पृष्ठभूमि
जनहित याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया- (i) औद्योगिक भांग को उसमें मौजूद टेट्राहाइड्रोकैनाबिनॉल (THC) के प्रतिशत के आधार पर परिभाषित किया जाए, (ii) एक सलाहकार बोर्ड या आयोग बनाकर औद्योगिक भांग की खेती और उसके कब्जे को अधिकृत किया जाए। साथ ही राज्य लाइसेंसिंग या पंजीकरण कार्यक्रम की स्थापना या अधिकृत किया जाए, औद्योगिक और औषधीय भांग की खेती, प्रसंस्करण और उपयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रतिबंधों को हटाकर ताकि स्थानीय लोग इसके व्यावसायिक उपयोग और औषधीय गुणों से लाभान्वित हो सकें, और (iii) राज्य को याचिकाकर्ता को छत्तीसगढ़ में भांग/कैनबिस की खेती और पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की अनुमति देने का निर्देश दिया जाए।
जनहित याचिका दायर करने का मुख्य कारण छत्तीसगढ़ के नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए भांग के 'स्वर्णिम पौधा' के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों का दोहन करना था। याचिकाकर्ता ने 'स्वर्णिम पौधे' को छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए संभावित रूप से "सोने की खानों की नई पीढ़ी" कहा था। उन्होंने तर्क दिया कि NDPS Act बागवानी और औद्योगिक उपयोगों के लिए भांग की खेती की अनुमति देता है, जबकि धारा 10 और 14 राज्य सरकार को इसकी खेती के लिए लाइसेंस देने की सीमा तय करने का अधिकार देती है। हालांकि, इस अधिकार का कभी भी उपयोग नहीं किया गया और न ही इस पौधे के मेडिकल या औद्योगिक उपयोग को सुगम बनाने के लिए कोई नियम या विनियमन बनाया गया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि विभिन्न सरकारी निकायों ने भांग की उपयोगिता को मान्यता दी और व्यावसायिक गतिविधियों में इसकी भूमिका को स्वीकार किया। उदाहरण के लिए, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने "मानक की पुष्टि" के अधीन खाद्य उत्पादों में इसके उपयोग की अनुमति दी; आयुष मंत्रालय ने भांग के तेल पर आधारित दवाओं के लिए केंद्र सरकार की स्वीकृति अनिवार्य कर दी और सरकार ने इसे वस्तु एवं सेवा संहिता में वर्गीकृत किया। आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि सुश्रुत संहिता, सामवेद, यजुर्वेद आदि जैसे पवित्र ग्रंथों में इसके कई संदर्भ हैं, जो भारतीय संस्कृति और चिकित्सा में भांग की महत्वपूर्ण विरासत का संकेत देते हैं।
याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 21—जिसमें स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया, अनुच्छेद 29—जो अल्पसंख्यकों के हितों और संस्कृति की रक्षा करता है, अनुच्छेद 41—जो बीमारी और दिव्यांगता की स्थिति में सहायता का अधिकार प्रदान करता है, अनुच्छेद 47—जो सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार को राज्य का प्राथमिक कर्तव्य बनाता है और अनुच्छेद 48ए—जो यह सुनिश्चित करता है कि राज्य अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रदूषण मुक्त वातावरण की रक्षा और उसे लागू करने का प्रयास करेगा—जैसे प्रावधानों का भी सहारा लिया।
याचिकाकर्ता ने औपनिवेशिक काल के भारतीय भांग औषधि आयोग के कार्यों पर भी प्रकाश डाला, जिसने हिंदुओं में हर्बल भांग की प्राचीन जड़ों का पता लगाया और निष्कर्ष निकाला कि यह सीमित मात्रा में, विशेष रूप से शराब की तुलना में, हानिरहित है। इसके उपयोग को दबाने से धार्मिक मौलवियों द्वारा विरोध प्रदर्शन को बढ़ावा मिल सकता है। संभवतः अधिक खतरनाक नशीले पदार्थों के उपयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
याचिकाकर्ता ने अंत में दलील दी कि भांग में व्यापक औद्योगिक और चिकित्सीय क्षमता है। फिर भी इसके विनाश को अनिवार्य बनाने वाली वर्तमान नीतियों के कारण पर्यावरण प्रदूषण, जैव विविधता का ह्रास और मृदा स्वास्थ्य को नुकसान हुआ है। ऐसे प्रशासनिक निर्णय न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं, बल्कि लोगों की बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन तक पहुंच को भी खतरे में डालते हैं।
इसके विपरीत, राज्य ने तर्क दिया कि यह याचिका राज्य से भांग की खेती और उसके व्यावसायिक लेन-देन के लिए किसी तरह अनुमति प्राप्त करने के प्रयास के अलावा और कुछ नहीं है।
न्यायालय के निष्कर्ष:
न्यायालय ने कहा कि जनहित याचिका की शुद्धता और पवित्रता को बनाए रखना उसका कर्तव्य है। इस प्रक्रिया में—केवल प्रामाणिक और वास्तविक जनहित याचिकाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए, जबकि बाहरी कारणों से दायर जनहित याचिकाओं को हतोत्साहित करना चाहिए। न्यायालय ने आगे दोहराया कि किसी जनहित याचिका पर विचार करने से पहले न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह वास्तविक सार्वजनिक क्षति या सार्वजनिक क्षति को संबोधित करती है। जनहित याचिका दायर करने के पीछे कोई व्यक्तिगत लाभ या निजी या अप्रत्यक्ष उद्देश्य नहीं है।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। जनहित याचिका में याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत हित शामिल हैं। इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि जनहित की आड़ में याचिकाकर्ता ने न्यायालय से ऐसे क्षेत्र में हस्तक्षेप करने की मांग की, जो विशेष रूप से विधायिका और कार्यपालिका के अंतर्गत आता है।
याचिका खारिज करते हुए न्यायालय ने इस प्रकार कहा,
“हम इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि यह जनहित में दायर वास्तविक याचिका है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत जनहित में अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया जा सके।”
Case Title: Dr. Sachin Ashok Kale v. State of Chhattisgarh

