कैसा रहा सुप्रीम कोर्ट में पिछला सप्ताह, देखिए खास फैसलों के साथ वीकली राउंड अप

LiveLaw News Network

20 Oct 2019 9:38 AM IST

  • कैसा रहा सुप्रीम कोर्ट में पिछला सप्ताह, देखिए खास फैसलों के साथ वीकली राउंड अप

    अक्टूबर माह के तीसरे सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण फैसले हुए। आइए डालते हैं सुप्रीम कोर्ट के पिछ्ले सप्ताह के कुछ खास फैसलों पर एक नज़र।

    किसी के नाम पावर ऑफ अटार्नी करने से वह संपत्ति का स्वामी नहीं बन सकता, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि जीपीए बिक्री और एसए/जीपीए/वसीयत ट्रांसफ़र क़ानूनी रूप से वैध नहीं है और इससे स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं होता और न ही यह अचल संपत्ति के हस्तांतरण का वैध तरीक़ा है। यह मामला एक अधिसूचित ज़मीन का एसए/जीपीए/वसीयत के माध्यम से ख़रीद का है। पीठ ने कहा कि अचल संपत्ति ख़रीदने का यह तरीक़ा क़ानूनी रूप से वैध नहीं है क्योंकि इन अग्रीमेंट के द्वारा अचल संपत्ति में किसी भी तरह के स्वामित्व के अधिकार का सृजन नहीं होता।

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    भूमि अधिग्रहण के मामले में वैधानिक प्राधिकारी द्वारा मुआवजे के फैसले की समीक्षा नहीं की जा सकती, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि जब कानून ऐसी शक्ति प्रदान करे तो ही एक वैधानिक प्राधिकरण द्वारा किसी फैसले की समीक्षा की जा सकती है। संबंधित कानून में वैधानिक प्राधिकारी को फैसले की समीक्षा का प्रावधान होना चाहिए। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने एक ज़िला कलेक्टर के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें भूमि अधिग्रहण के एक मामले में मुआवजे के निर्णय (अवार्ड) की समीक्षा की गई थी।

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    ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड के बिना अपील का निपटारा नहीं किया जा सकता, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को देखे बिना एक आपराधिक अपील का निपटारा किया था। न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ अपील पर विचार किया, जिसमें हाईकोर्ट ने मुकदमे के ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड के बिना आईपीसी 498 ए और आईपीसी 304 के तहत एक व्यक्ति पर लगाए गए मुकदमे में दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा। ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड अपील के लंबित रहने के दौरान खो गया था।

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    सिर्फ कॉल गर्ल कहने पर आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) का मामला नहीं बनता, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को बरी किया, पढ़िए फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को सही ठहराया है, जिसमें एक लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी को बरी कर दिया गया था। आरोप लगाए गए थे कि आरोपी लड़के और मृतक लड़की के बीच प्रेम संबंध थे। जब वे एक-दूसरे से शादी करने के अपने फैसले के बारे में आरोपी के माता-पिता को बताने के लिए आरोपी के घर गए तो उसके माता-पिता (अन्य आरोपी) ने इसे मंजूरी देने से इनकार कर दिया और लड़की पर चिल्लाते हुए उसे 'कॉल गर्ल' कह दिया।

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    महज कानून का प्रश्न खड़ा करने में चूक के कारण ही दूसरी अपील में दिये गये फैसले को निरस्त नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महज कानून का प्रश्न खड़ा करने में चूक के कारण ही द्वितीय अपील में दिये गये फैसले को निरस्त नहीं किया जा सकता, यदि यह पता चल जाये कि कानून का व्यापक प्रश्न मौजूद है और ऐसे प्रश्न का हल उच्च न्यायालय ने दे दिया है। न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि अधीनस्थ अदालतों द्वारा तथ्यात्मक निर्णय तक न पहुंच पाने के कारण कानून का व्यापक प्रश्न उठ सकता है और नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 100 के तहत दायर द्वितीय अपील में हाईकोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।

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    मजिस्ट्रेट ट्र्रायल शुरू होने से पहले तक मामले में आगे की जांच के आदेश दे सकते हैं, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिए एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि मजिस्ट्रेट के पास किसी अपराध की आगे की जांच करने का आदेश देने की शक्ति है। यहां तक कि मामले में संज्ञान लेने के चरण के बाद भी मजिस्ट्रेट ट्र्रायल शुरू होने से पहले तक जांच का आदेश दे सकते हैं। न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के एक आदेश को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि मजिस्ट्रेट के पास एक अपराध की जांच करने का आदेश देने की शक्ति नहीं होगी।

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    संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाइकोर्ट के वैकल्पिक उपचार और पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार

    हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने एक अहम फ़ैसला दिया जिसमें उसने कहा कि नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के संदर्भ में अपीली उपचार की उपलब्धता को संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाइकोर्ट के पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार को लगभग पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने जैसा माना जाएगा। यह सिद्धांत कि अनुच्छेद 227 के तहत मिले पर्यवेक्षी अधिकार का कभी-कभार ही उपयोग किया जाना है और निचली अदालतों को उनके क्षेत्राधिकारों के भीतर बनाए रखने के लिए ही किया जाना चाहिए न कि सिर्फ़ ग़लतियों को ठीक करने के लिए| इस बात को पांच जजों की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने वरयाम सिंह बनाम अमरनाथ [AIR 1954 SC 215] मामले में पहले ही निर्धारित कर दिया है।

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    अगर कोई वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए कुछ ख़रीदता है और उसका प्रयोग अपनी आजीविका कमाने के लिए करता है तो वह एक उपभोक्ता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दुहराया है कि ख़रीदार ख़ुद वाणिज्यिक वस्तु का प्रयोग स्व-रोज़गार के रूप में अपनी आजीविका कमाने के लिए करता है तो वस्तु का इस तरह ख़रीद करने वाला व्यक्ति 'उपभोक्ता' है। न्यायमूर्ति यूयू ललित, इंदिरा बनर्जी और एमआर शाह की पीठ ने यह बात राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के आदेश के ख़िलाफ़ सुनवाई में कही। आयोग ने एक शिकायत को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया था कि यह अदालत में टिक नहीं सकता। (सुनील कोहली बनाम मै. प्योरअर्थ इंफ़्रास्ट्रक्चर लिमिटेड)

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    PMC बैंक मामला : सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार किया, हाईकोर्ट जाने को कहा

    पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी (पीएमसी) बैंक को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ ने याचिकाकर्ता बेजोन मिश्रा को इस संबंध में हाईकोर्ट जाने के लिए कहा। याचिकाकर्ता के वकील शशांक देव सुधी ने पीठ को कहा कि इस मामले में चार राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के लोग प्रभावित हुए हैं।

    ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना चाहिए और बेल आउट पैकेज के निर्देश देने चाहिए। इस दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार लोगों के लिए चिंतित है और त्वरित कार्रवाई कर रही है। आरोपियों की 88 संपत्तियां भी जब्त की गई हैं। वहीं आरबीआई की तरफ से कहा गया कि ऐसा ही मामला दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है।

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