अगर कोई वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए कुछ ख़रीदता है और उसका प्रयोग अपनी आजीविका कमाने के लिए करता है तो वह एक उपभोक्ता है : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
13 Oct 2019 1:09 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने दुहराया है कि ख़रीदार ख़ुद वाणिज्यिक वस्तु का प्रयोग स्व-रोज़गार के रूप में अपनी आजीविका कमाने के लिए करता है तो वस्तु का इस तरह ख़रीद करने वाला व्यक्ति 'उपभोक्ता' है।
न्यायमूर्ति यूयू ललित, इंदिरा बनर्जी और एमआर शाह की पीठ ने यह बात राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के आदेश के ख़िलाफ़ सुनवाई में कही। आयोग ने एक शिकायत को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया था कि यह अदालत में टिक नहीं सकता। (सुनील कोहली बनाम मै. प्योरअर्थ इंफ़्रास्ट्रक्चर लिमिटेड)
शिकायत में शिकायतकर्ताओं ने कहा था कि वे डेनमार्क में अपनी परिसंपत्ति को बेचना चाहते हैं और दिल्ली आकार कोई व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं और इस उद्देश्य से उन्होंने एक परिसर को बुक किया। एक शिकायत यह कहते हुए दर्ज की गई कि दूसरा पक्ष निर्धारित अंतिम तिथि के गुज़र जाने के बाद भी यह परिसर उन्हें सौंपने में विफल रहा। आयोग ने इसे नहीं माना और कहा कि शिकायतकर्ता ने यह परिसर बुक किया था और यह कहा जा सकता है कि उन्होंने दूसरे पक्ष की सेवा वाणिज्यिक कारणों से ली थी और वे अधिनियम की धारा 2(1) (d) के तहत उपभोक्ता नहीं हैं।
इसके ख़िलाफ़ अपील पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि शिकायतकर्ता का मामला 'उपभोक्ता' की परिभाषा के अधीन नहीं आएगा जैसा कि अधिनियम के प्रावधानों में इसे परिभाषित किया गया है।
पीठ ने इस बारे में निम्न मामलों में आए फ़ैसलों का हवाला दिया –
लक्ष्मी इंजीनियरिंग वर्क्स बनाम पीएसजी इंड्स्ट्रियल इंस्टिट्यूट (1995) 3 SCC 583
चीमा इंजीनियरिंग सर्विसेस बनाम राजन सिंह (1997) 1 SCC 131
पीठ ने कहा, "कई स्थितियों में 'वाणिज्यिक उद्देश्य' के लिए वस्तुओं की ख़रीद में क्रेता 'उपभोक्ता' की परिभाषा के बाहर नहीं हो पाता। अगर उस वस्तु का वाणिज्यिक प्रयोग अपनी आजीविका अर्जित करने के लिए क्रेता ही कर रहा है तो वह क्रेता 'उपभोक्ता' है। इसके बाद अदालत ने यह बताया कि 'वाणिज्यिक उद्देश्य' क्या है यह प्रश्न हर मामले के तथ्य पर निर्भर करता है।"
लक्ष्मी इंजीनियरिंग वर्क्स बना पीएसजी इंडस्ट्रियल इंस्टिट्यूट मामले में आए फ़ैसले के एक उदाहरण से इसे स्पष्ट करते हुए अदालत ने कहा,
"…अगर क्रेता ख़ुद अपनी टाइपराइटर पर काम करता है या कार को टैक्सी के रूप में चलाता है तो वह उपभोक्ता बना रहता है। दूसरे शब्दों में अगर किसी वस्तु को ख़रीदनेवाला उस वस्तु का ख़ुद प्रयोग करता है और इसका प्रयोग अपनी आजीविका कमाने के लिए करता है तो इसे 'वाणिज्यिक उद्देश्य' नहीं माना जाएगा और इस अधिनियम के तहत ऐसा नहीं होता कि वह उपभोक्ता नहीं रह जाता है।"
चीमा इंजीनियरिंग मामले में आए फ़ैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा,
"…कोई वस्तु जिसे कोई उपभोक्ता ख़रीदता है और जिसका वह अपनी आजीविका कमाने के लिए वह ख़ुद प्रयोग करता है तो वह वाणिज्यिक उद्देश्य से बाहर हो जाता है। वस्तुओं के इस ख़रीद को वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए हुई ख़रीद नहीं कहा जा सकता। अब प्रश्न यह है कि क्या प्रतिवादी इस मशीन का प्रयोग स्व-रोज़गार के लिए कर रहा था? स्व-रोज़गार को परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए यह सबूत पर निर्भर करता है। और इसे साबित करने की ज़िम्मेदारी प्रतिवादी पर है। "
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