किसी के नाम पावर ऑफ अटार्नी करने से वह संपत्ति का स्वामी नहीं बन सकता, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला
LiveLaw News Network
17 Oct 2019 9:56 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि जीपीए बिक्री और एसए/जीपीए/वसीयत ट्रांसफ़र क़ानूनी रूप से वैध नहीं है और इससे स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं होता और न ही यह अचल संपत्ति के हस्तांतरण का वैध तरीक़ा है।
यह मामला एक अधिसूचित ज़मीन का एसए/जीपीए/वसीयत के माध्यम से ख़रीद का है। पीठ ने कहा कि अचल संपत्ति ख़रीदने का यह तरीक़ा क़ानूनी रूप से वैध नहीं है क्योंकि इन अग्रीमेंट के द्वारा अचल संपत्ति में किसी भी तरह के स्वामित्व के अधिकार का सृजन नहीं होता।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीआर गवई की खंडपीठ ने शिव कुमार बनाम भारत संघ में यह अवलोकन किया, जिसमें यह कहा गया था कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 4 के तहत अधिसूचना जारी करने के बाद संपत्ति का एक खरीदार बाद में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार की धारा 24 में निहित प्रावधान का आह्वान नहीं कर सकता।
सूरज लैम्प फ़ैसला
इस तरह की ख़रीद की वैधता पर ग़ौर करते हुए पीठ ने सूरज लैंप एंड इंडस्ट्रीज़ प्रा. लि. माध्यम निदेशक बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य (2012) 1 SCC 656 मामले में आए फैसले का ज़िक्र किया। इस फ़ैसले में कहा गया था कि इस तरह के तरीक़ों का प्रयोग कुछ ट्रांसफ़र पर लगी रोक से बचने, स्टैम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क चुकाने से बचने, संपत्ति के ट्रांसफ़र पर कैपिटल गेन चुकाने से बचने, इस कारोबार में काले धन का प्रयोग करने और विकास प्राधिकरणों को शुल्कों में की गई बढ़ोतरी की राशि नहीं चुकाने के लिए किया जाता है।
एसए/जीपीए/वसीयत ट्रांसफ़र के तरीक़े
(a) विक्रेता क्रेता के पक्ष में एक बिक्री क़रार बनाता है जो बिक्री, डिलीवरी और परिसंपत्ति पर क़ब्ज़े के लिए संबंधित राशि की पूर्ण भुगतान और ज़रूरत पड़ने पर किसी भी तरह के दस्तावेज़ तैयार करने के लिए होता है। या, बिक्री क़रार किया जाता है जिसमें संबंधित परिसंपत्ति को बेचने की सहमति व्यक्त की जाती है, जिसके साथ एक अलग से हलफ़नामा होता है, जिसमें पूरी क़ीमत प्राप्त हो जाने और क़ब्ज़ा दिलाने और बाद में जब भी ज़रूरत हो, बिक्री क़रार की बात का ज़िक्र होता है।
(b) विक्रेता द्वारा क्रेता या उसके नोमिनी के पक्ष में एक जनरल पावर ऑफ़ अटर्नी तैयार किया जाता है जो उसकी ओर से सौदे का प्रबंधन करेगा और विक्रेता के संदर्भ के बिना परिसंपत्ति को बेच देगा। या, विक्रेता क्रेता या उसके नोमिनी के पक्ष में एक जनरल पावर ऑफ़ अटर्नी तैयार करता है और अटर्नीधारक को संपत्ति को ट्रांसफ़र करने या बेचने का अधिकार देता है और इस संपत्ति के प्रबंधन के लिए विशेष पीओए किया जाता है।
(c) एक वसीयत तैयार किया जाता है जिसके माध्यम से क्रेता को संपत्ति का अधिकार दिया जाता है। यह उस स्थिति के लिए तैयार किया जाता है जब संपत्ति के ट्रांसफ़र से पहले विक्रेता की मौत हो जाए।
सूरज लैंप मामले के फ़ैसले में अदालत ने कहा,
"अचल संपत्ति सिर्फ़ पंजीकृत क़रार से ही क़ानूनी और वैधानिक तरीक़े से ट्रांसफ़र किया जा सकता है।"
अदालत ने कहा कि एसए/जीपीए/वसीयत से होने वाले ट्रांसफ़र को वह क़रार पूरा हुआ ऐसा नहीं मानेगा क्योंकि इससे न तो स्वामित्व का पता चलता है और न ही किसी अचल संपत्ति के संदर्भ में किसी भी तरह के अधिकार का सृजन होता है।
इन दस्तावेज़ों को टीपी अधिनियम की धारा 53A के सीमित दायरे को छोड़कर स्वामित्व हस्तांतरण का क़रार नहीं माना जा सकता। इस तरह के लेन-देन पर भरोसा नहीं किया जा सकता और नगर निगम या राजस्व रेकर्ड में इसक आधार पर कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। जो ऊपर बताया गया है वह न केवल फ़्री होल्ड प्रॉपर्टी को लेकर की गई डीड्ज़ ऑफ़ कन्वेयेंस पर लागू होगा बल्कि लीज़होल्ड प्रॉपर्टी के ट्रांसफ़र पर भी लागू होगा। कोई लीज़ तभी वैध होगा अगर वह पंजीकृत होता है। अब समय आ गया है जब एसए/जीपीए/वसीयत पर रोक लगाया जाए जिसे जीपीए सेल्स कहा जाता है।
वास्तविक लेनदेन समझने की भूल न करेंं
इस फ़ैसले में यह कहा गया कि इन लेनदेन को ऐसा वास्तविक लेनदेन समझने की भूल नहीं की जाए या उनसे तुलना नहीं की जाए जहाँ किसी संपत्ति के मालिक परिवार के किसी व्यक्ति या दोस्त के पक्ष में अपनी संपत्ति की देखभाल या उसको बेचने के लिए पीओए तैयार करता है क्योंकि वह इसका ख़ुद प्रबंधन नहीं कर सकता या बेच नहीं सकता।
इस फ़ैसले में कुछ और बातें भी स्पष्ट की गई
"हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमारी राय पूर्व में हुए सही बिक्री क़रारों को प्रभावित करने का नहीं है। उदाहरण के लिए जैसे कोई व्यक्ति अपनी पत्नी, बेटे, बेटी, भाई, बहन या किसी भी रिश्तेदार को डीड ऑफ़ कन्वेयेंस करने के लिए पीओए दे सकता है। कोई व्यक्ति किसी लैंड डेवलपर या बिल्डर के साथ किसी भूमि पर निर्माण कार्य को लेकर क़रार कर सकता है और इस सिलसिले में बिक्री कार्य को काम पूरा करने के लिए डेवलपर के पक्ष में पीओए कर सकता है। कई राज्यों में इस तरह के डेवलपमेंट क़रार और पीओए का विनियमन क़ानून के द्वारा होता है और इसे तभी वैध माना जाता है जब इस पर स्टैम्प शुल्क चुकाया जाता है। एसए/जीपीए/वसीयत के बारे में हमारी राय का असर सही लेनदेन पर नहीं होगा।"
फैसले की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें