सिखों पर टिप्पणी को लेकर राहुल गांधी के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर नए सिरे से होगी सुनवाई
Shahadat
22 July 2025 3:31 PM IST

वाराणसी एडिशनल जिला एवं सेशन कोर्ट ने सोमवार को मजिस्ट्रेट कोर्ट का आदेश खारिज कर दिया, जिसमें कांग्रेस (Congress) नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के खिलाफ सितंबर, 2024 में उनकी अमेरिका यात्रा के दौरान सिखों पर की गई कथित टिप्पणियों को लेकर FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी गई थी।
एडिशनल जिला एवं सेशन जज यजुवेंद्र विक्रम सिंह ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए संबंधित मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वह सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों के आलोक में मामले की नए सिरे से सुनवाई करें और फिर आदेश पारित करें।
संक्षेप में मामला
यह पुनर्विचार याचिका नागेश्वर मिश्रा नामक व्यक्ति ने दायर की थी, जिसमें उन्होंने मजिस्ट्रेट अदालत के 28 नवंबर, 2024 के आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में राहुल गांधी के खिलाफ FIR दर्ज करने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
मिश्रा का कहना है कि अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान, गांधी ने एक भड़काऊ बयान दिया था, जिसमें उन्होंने सवाल किया था कि क्या भारत में सिख पगड़ी पहनकर या गुरुद्वारों में जाकर सुरक्षित महसूस करते हैं। उनके अनुसार, ऐसी टिप्पणियां भड़काऊ थीं और उनका उद्देश्य सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना था।
शिकायतकर्ताओं ने गांधी के बयानों को शाहीन बाग में सीएए विरोधी प्रदर्शनों जैसी पूर्व राजनीतिक घटनाओं से जोड़ते हुए अशांति भड़काने के एक निरंतर पैटर्न का आरोप लगाया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने आदेश में मजिस्ट्रेट अदालत ने मिश्रा की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि भारत के बाहर किए गए कथित अपराध के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 208 के प्रावधान में यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना भारत में ऐसे किसी भी अपराध की जांच या सुनवाई नहीं की जा सकती।
पुनर्विचार याचिका पर विचार करते हुए एडिशनल जिला एवं सेशन कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने केवल इस आधार पर आवेदन खारिज करने में गलती की कि BNSS की धारा 208 (CrPC की धारा 188 के अनुरूप) के तहत केंद्र सरकार से कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई, क्योंकि कथित अपराध भारत के बाहर हुआ था।
अजय अग्रवाल बनाम भारत संघ 1993, थोटा वेंकटेश्वरलू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य 2011 और नरेला चिरंजीवी अरुण कुमार बनाम आंध्र प्रदेश राज्य 2021 सहित सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णयों का हवाला देते हुए सेशन कोर्ट ने टिप्पणी की:
“BNSS की धारा 208 के प्रावधान के तहत किसी मामले का संज्ञान लिए जाने तक केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक नहीं है, लेकिन संज्ञान के बाद केंद्र सरकार की स्वीकृति प्राप्त किए बिना मुकदमा शुरू नहीं किया जा सकता।”
इस प्रकार, न्यायालय ने पाया कि BNSS की धारा 208 के प्रावधान में उल्लिखित 'जांच' किसी मामले में आरोप पत्र दाखिल करने और आरोप तय होने के बाद संज्ञान लेने के बाद की जांच से संबंधित है, जिसके लिए केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।
इसमें आगे कहा गया कि चूंकि संज्ञान लिए जाने तक किसी भी जांच या पूछताछ के लिए केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक नहीं है। ऐसी स्थिति में BNSS की धारा 173(4) के तहत आदेश पारित करने के लिए केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य नहीं है।
संक्षेप में कहें तो न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया कि BNSS की धारा 173(4) के तहत आदेश पारित करने के लिए केंद्र सरकार की ऐसी किसी पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।
न्यायालय ने अमेरिका में गांधी की कथित टिप्पणियों को उनके दिल्ली रामलीला मैदान के भाषण से अलग करते हुए कहा कि जहां तक दिल्ली के भाषण का संबंध है, मजिस्ट्रेट द्वारा आवेदन को खारिज करना उचित था, लेकिन अमेरिका में की गई टिप्पणियों के संबंध में इसे खारिज करना कानून के विरुद्ध था।
इस प्रकार, आपराधिक पुनर्विचार (नंबर 61/2025) को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने मजिस्ट्रेट का 28 नवंबर, 2024 का आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया:
“मजिस्ट्रेट इस पुनर्विचार आदेश और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के आलोक में मामले पर नए सिरे से विचार करेंगे और कानून के अनुसार आदेश पारित करेंगे।”

