कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड होने के नाते, हाईकोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत खुद के फैसले पर पुनर्विचार कर सकता हैः केरल हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
31 May 2021 10:09 AM IST
केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दोहराया कि हाईकोर्ट, कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड के रूप में खुद के आदेशों पर पुनर्विचार कर सकते हैं। चीफ जस्टिस एस मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी चाली की खंडपीठ ने पुनर्विचार याचिका के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।
अपीलकर्ता, जो मूल रिट याचिकाकर्ता था, भूमि कर भुगतान से संबंधित विवाद में अपने पक्ष में निर्णय प्राप्त किया था। इसके बाद प्रतिवादियों ने सिंगल जज के समक्ष एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिन्होंने फैसले को पलट दिया था। सिंगल जज ने कहा कि अपीलकर्ता (रिट याचिकाकर्ता) ने न्यायालय से भौतिक तथ्यों को छुपाया था।
सिंगल जज ने पुनर्विचार यचिका को मंजूर किया और शिवदेव सिंह और अन्य मामलों पर भरोसा करते हुए कहा था, "... यह स्पष्ट है कि ये संवैधानिक अदालतों में, कोर्ट ऑन रिकॉर्ड होने के कारण, खुद के आदेशों को वापस लेने का अधिकार क्षेत्र निहित है और यह इसलिए है कि वे वरीय कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड हैं। हमारे कई फैसलों में इसे मान्यता दी गई है।
याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर की है। पुनर्विचारयाचिकाकर्ता की ओर से पेश सामग्रियों पर, मेरा विचार है कि रिट याचिकाकर्ता ने कोर्ट से साफ-सुथरी मंश से संपर्क नहीं किया है। यह पाया गया है कि रिट याचिका में सामग्री तथ्यों को दबा दिया गया है। इसलिए, मैं निर्णय पर पुनर्विचार करना और उसे वापस लेना उचित समझता हूं।"
सिंगल जज ने यह भी रेखांकित किया था कि अनुच्छेद 226 के अलावा किसी अन्य प्रावधान की खोज करने के लिए हाईकोर्ट की कोई आवश्यकता नहीं है, जो इसे अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करने की अनुमति देता है।
तथ्यों की ओर इशारा करते हुए, न्यायालय ने सहमति व्यक्त की कि सामग्री ने प्रदर्शित किया है कि अपीलकर्ता ने भौतिक तथ्यों को छुपाया था।
सिंगल जज के रुख की पुष्टि करते हुए कोर्ट ने कहा, "उपरोक्त तथ्यों की चर्चा से यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत निर्णय देते समय, विद्वान सिंगल जज इस धारणा के अधीन थे कि अपीलकर्ता ने रिट कोर्ट के समक्ष सभी तथ्यों और परिस्थितियों को रखा था, जिससे विद्वान सिंगल जज ने प्रतिवादी को अपीलकर्ता से मूल कर स्वीकार करने का निर्देश देने के लिए राजी हुए थे।
हालांकि, जब WP(C) No 32652 of 2014 में प्रतिवादियों ने एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी, तो विद्वान सिंगल जज ने महसूस किया कि अपीलकर्ता की ओर से सामग्री छिपाई गई थी, और उन्होंने WP(C) No 32652 of 2014 में 12.10.2018 को दिए निर्णय पर पुनर्विचार किया और कहा कि उन्हें अनुच्छेद 226 के तहत निर्णय पर पुनर्विचार करने की शक्ति प्राप्त है।
चूंकि हाईकोर्ट, कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड है, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 215 में कहा गया है, जो खुद के फैसले पर पुनर्विचार करने की शक्ति सहित एक समावेशी शक्ति है।"
डिवीजन बेंच ने कहा, "हालांकि अपीलकर्ता ने यह साबित करने के लिए विभिन्न तर्क दिए थे कि रिट याचिका में पारित निर्णय पर पुनर्विचारकरने की शक्ति नहीं है, हम इसे स्वीकार करने में असमर्थ हैं, क्योंकि यह कानून में अच्छी तरह से स्थापित प्रस्ताव है कि एक कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड होने के नाते, हाईकोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आगे बढ़ने और निर्णय पर पुनर्विचार करने की शक्तियां निहित हैं, यदि यह पाया जाता है कि भौतिक सामग्री को छिपाया गया था, और न्यायालय का भौतिक तथ्यों को छिपाने के कारण रिट याचिका के पक्ष में फैसला देना सही नहीं था।
विद्वान सिंगल जज ने माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभिन्न निर्णयों में निर्धारित कानून के प्रस्तावों पर भरोसा करके अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विस्तृत रूप से विचार किया है और सही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।"
अपील को खारिज करते हुए, कोर्ट ने बिना धोखाधड़ी किए कोर्ट जाने की आवश्यकता पर भी प्रासंगिक टिप्पणी की। यदि कोई वादी ईमानदारी के साथ अदालत के सामने आने में विफल रहता है, तो उसे जल्द से जल्द बाहर का दरवाजा दिखाया जाना चाहिए।
फैसले में कहा गया है, "ईमानदारी, निष्पक्षता, मन की पवित्रता, और स्वच्छ हाथों से रिट कोर्ट में जाना सबसे ऊपर होना चाहिए और एक रिट याचिका और आदेशों को सुरक्षित बनाए रखने के लिए यह एक अनिवार्य शर्त है, जिसमें विफल होने पर वादी को बाहर निकलने का दरवाजा दिखाया जाना चाहिए।"
इन शर्तों पर अपील खारिज कर दी गई थी।
मामला: पोट्टाकलाथिल रामकृष्णन बनाम तहसीलदार, तिरूर और अन्य
वकील: याचिकाकर्ता के लिए अधिवक्ता वीबी रामानुन्नी मेनन, प्रतिवादियों के लिए वरिष्ठ सरकारी वकील वी टेक चंद