सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप, देखिए पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण फैसले
LiveLaw News Network
14 Oct 2019 10:00 AM IST
अक्टूबर 2019 के दूसरे सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट में निम्नलिखित महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। देखिए सुप्रीम कोर्ट के वीकली राउंड अप में पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय और आदेश।
अगर कोई वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए कुछ ख़रीदता है और उसका प्रयोग अपनी आजीविका कमाने के लिए करता है तो वह एक उपभोक्ता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ख़रीदार ख़ुद वाणिज्यिक वस्तु का प्रयोग स्व-रोज़गार के रूप में अपनी आजीविका कमाने के लिए करता है तो वस्तु का इस तरह ख़रीद करने वाला व्यक्ति 'उपभोक्ता' है। न्यायमूर्ति यूयू ललित, इंदिरा बनर्जी और एमआर शाह की पीठ ने यह बात राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के आदेश के ख़िलाफ़ सुनवाई में कही। आयोग ने एक शिकायत को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया था कि यह अदालत में टिक नहीं सकता। (सुनील कोहली बनाम मै. प्योरअर्थ इंफ़्रास्ट्रक्चर लिमिटेड)
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निगम के वाहन में यात्रा करते हुए मारे जाने वाले व्यक्ति के आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मांगने से रोकने का प्रावधान सही : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान राज्य परिवहन निगम के अनुकंपा नियुक्ति विनियमन को सही ठहराया है जिसके तहत निगम के वाहन में यात्रा करते हुए मारे जाने वाले व्यक्ति के आश्रित को निगम में अनुकंपा के आधार पर नौकरी मांगने से रोकने का प्रावधान है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, "यद्यपि अनुच्छेद 14 वर्गीय क़ानून की इजाज़त नहीं देता लेकिन यह क़ानून बनाने के लिए तर्कसंगत वर्गीकरण से मना नहीं करता।"
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डिपोजिट के लिए अतिरिक्त समय लेना वादी को करार की प्रतिबद्धता साबित करने के दायित्व से मुक्त नहीं करता : सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि करार की शेष राशि के भुगतान के लिए केवल अतिरिक्त समय लेना ही वादी को बिक्री समझौते के अनुपालन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता साबित करने के दायित्व से मुक्त नहीं करेगा। न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा है कि अतिरिक्त मोहलत दिये जाने से वादी खुद से यह नहीं मान सकता कि इससे उसकी करार को लेकर प्रतिबद्धता साबित होती है।
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सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सवाल, वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के बाद भी क्या पत्नी को गुजारा भत्ता देने को बाध्य है पति?
उच्चतम न्यायालय यह तय करेगा कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश पक्ष में होने के बावजूद क्या पति अपनी पत्नी को दंड संहिता प्रक्रिया (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने को बाध्य है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में पति द्वारा यह दलील दी गयी थी कि हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा नौ के तहत मुकदमे में यह पाया गया है कि उसकी पत्नी बगैर किसी कारण के उससे अलग रह रही है। दंड विधान संहित (सीआरपीसी) की धारा 125 की उपधारा-4 का उल्लेख करते हुए यह दलील दी गयी थी कि यदि पत्नी बगैर किसी पर्याप्त कारण के अलग रहती है तो पति उसे गुजारा भत्ता देने को बाध्य नहीं है।
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व्यापक आम हितों के कारण सरकारी नीति में परिवर्तन को वैध उम्मीदों पर ग़ौर करने के दौरान उचित महत्व दिया जाना ज़रूरी है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी चीज़ में व्यापक आम दिलचस्पी सरकार की नीति में परिवर्तन का कारण हो सकती है और जायज़ उम्मीदों के दावे पर ग़ौर करने के दौरान इस पर पर्याप्त ध्यान देने की ज़रूरत होती है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की पीठ ने केरल हाईकोर्ट के एक फ़ैसले को निरस्त कर दिया। इस फ़ैसले में विस्थापित अर्क कामगारों के लिए दैनिक मज़दूरी को आरक्षित करने संबंधी नियम को लागू करने का निर्देश सरकार को दिया गया था।
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जिस विवाह को कायम रखना मुश्किल हो रहा हो, उसके विच्छेद के लिए अनुच्छेद 142 की शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह उन मामलों में विवाह विच्छेद के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत निहित अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, जहां यह पाया जाता है कि विवाह आगे निभाना मुश्किल है, वह भावनात्मक रूप से मृत हो चुका है, जो बचाव से परे है और जो पूरी तरह से टूट चुका हो। भले ही मामले के तथ्यों से कानून की नजर में कोई ऐसा आधार उपलब्ध न हो, जिसके आधार पर तलाक की अनुमति दी जा सकती है। इस मामले में (''आर.श्रीनिवास कुमार बनाम आर.शमेथा'') हाईकोर्ट ने पति की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसने इस आधार पर तलाक की डिक्री की मांग की थी कि उनका विवाह पूरी तरह से टूट चुका है।