सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सवाल, वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के बाद भी क्या पत्नी को गुजारा भत्ता देने को बाध्य है पति?
LiveLaw News Network
9 Oct 2019 10:29 AM IST
उच्चतम न्यायालय यह तय करेगा कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश पक्ष में होने के बावजूद क्या पति अपनी पत्नी को दंड संहिता प्रक्रिया (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने को बाध्य है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में पति द्वारा यह दलील दी गयी थी कि हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा नौ के तहत मुकदमे में यह पाया गया है कि उसकी पत्नी बगैर किसी कारण के उससे अलग रह रही है। दंड विधान संहित (सीआरपीसी) की धारा 125 की उपधारा-4 का उल्लेख करते हुए यह दलील दी गयी थी कि यदि पत्नी बगैर किसी पर्याप्त कारण के अलग रहती है तो पति उसे गुजारा भत्ता देने को बाध्य नहीं है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की खंडपीठ ने सुब्रत कुमार सेन बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में नोटिस जारी करते हुए कहा :
"हमारे सामने ऐसा मामला है, जहां विभिन्न अदालतों ने सीआरपीसी की धारा 125 और हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा नौ के तहत विरोधाभासी विचार व्यक्त किये हैं तथा हाईकोर्ट ने भी रिवीजन पिटीशन में इन पहलुओं पर विचार नहीं किया।"
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला बहुत ही संक्षिप्त है और यह सम्बद्ध कानूनी पहलुओं पर विचार नहीं करता।एक ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया था कि पत्नी के छोड़कर चले जाने के आधार पर पति द्वारा तलाक दी गयी महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता हासिल करने के योग्य है।
ज ब वैवाहिक अधिकारों की बहाली का फरमान पति के पक्ष में हो तो सीआरपीसी की धारा 125 सुनने योग्य है या नहीं, इसे लेकर विभिन्न हाईकोर्ट ने अलग-अलग व्यवस्था दी है। इस मामले का फैसला संबंधित विवाद का निपटारा कर सकता है।
विभिन्न उच्च न्यायालयों के भिन्न-भिन्न मत
इस मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 'रवि कुमार बनाम संतोष कुमारी (1997)' मामले में सुनाया था। इसने कहा था :-
* जिस महिला के खिलाफ उसके पति को वैवाहिक अधिकारों की बहाली का फरमान जारी किया गया हो, वह महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ते के दावे का हकदार नहीं होगी, यदि दीवानी अदालत के समक्ष वैवाहिक अधिकारों की बहाली की प्रक्रिया के दौरान एक खास मुद्दा उठाया गया हो कि क्या बगैर पर्याप्त कारण के पत्नी अपने पति के साथ रहने से इन्कार करती है और दोनों पक्षों को साक्ष्य संबंधी दस्तावेज पेश करने का अवसर प्रदान किया गया हो और उसके बाद सिविल कोर्ट ने विशेष निर्णय दिये हों,
* लेकिन यदि पति को सिविल कोर्ट से वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश इकतरफा मिला हो, तो ऐसा फरमान सीआरपीसी की धारा 125 अपने अधिकार क्षेत्रों का इस्तेमाल करते वक्त क्रिमिनल कोर्ट पर लागू नहीं होगा,
* यदि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मजिस्ट्रेट गुजारा भत्ता का आदेश जारी करते है, उसके बाद यदि पति वैवाहिक अधिकारों की बहाली का फरमान हासिल करता है तो यह फरमान स्वयंमेव पति को उसके गुजारा भत्ते से वंचित नहीं कर सकेगा। ऐसी स्थिति में पति को गुजारा भत्ते के आदेश को निरस्त कराने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 125 की उपधारा-5 के तहत अर्जी दायर करनी होगी,
* यदि हमारे पहले निष्कर्ष के अनुरूप महिला के खिलाफ वैवाहिक अधिकारों की बहाली का फरमान जारी किया गया हो तो उसे तलाक की मंजूरी की तारीख से पति से उस समय तक गुजारा भत्ते के दावे का अधिकार होगा, जब तक वह दूसरी शादी नहीं कर लेती।
ऐसा ही मंतव्य 'गिरिशभाई बाबूभाई राजा बनाम हंसाबेन गिरिशचंद्र (1986)' के मामले में भी दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि सिविल कोर्ट द्वारा जारी आदेश क्रिमिनल कोर्ट पर भी लागू होगा और मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 125 के तहत इस मामले में दोबारा सुनवाई नहीं करेगा।
'हेमराज बनाम उर्मिला देवी' मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यदि सिविल कोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर यह पाया है कि पत्नी ने बगैर किसी पर्याप्त कारण के ससुराल में रहना छोड़ दिया है तो वह दंड संहिता प्रक्रिया की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता का दावा नहीं कर सकती। इस फैसले से अलग केरल हाईकोर्ट ने 'हैजाज पाशा बनाम गुलजार भानू' मामले में व्यवस्था दी है कि अपनी पत्नी के खिलाफ वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एकतरफा फरमान पाने के बावजूद पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने से रोका नहीं जा सकता।
इसके विपरीत, 'बाबूलाल बनाम सुनीता' मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एकल पीठ ने व्यवस्था दी है कि किसी कानूनी प्रतिबंध की गैर-मौजूदगी में गुजारा भत्ता संबंधी पत्नी की अर्जी सिर्फ इसलिए नहीं खारिज की जा सकती कि पति ने उसके खिलाफ वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश हासिल किया है और वह (पत्नी) इस पर अमल करने से इन्कार कर रही है।
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने मदीना सुब्बम्मा बनाम मदीना वेंकटेश्वरालु (1993) मामले में व्यवस्था दी थी कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका पर विचार करने से नहीं रोक सकता। अन्य उच्च न्यायालयों के फैसलों का हवाला देते हुए इसने व्यवस्था दी थी कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश प्राप्त करने के बावजूद यदि पत्नी के पास पति से अलग रहने का पर्याप्त कारण है तो ऐसी स्थिति में पत्नी को गुजारा भत्ता दिया जा सकता है।
त्रिपुरा उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 'सुबल दास बनाम मौसमी साहा' मामले में व्यवस्था दी थी कि वैवाहिक अधिकारों को कायम रखने के आदेश या उस पर अमल न करने के कारण पत्नी को गुजारा भत्ता पाने संबंधी सीआरपीसी की धारा 125 के दायरे से बाहर नहीं रखा जा सकता।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की दो एकल पीठों ने इस मामले में विरोधाभासी फैसले दिये हैं। चरण सिंह बनाम जया वाती मामले में एकल पीठ ने इसे वृहद पीठ के सुपुर्द किये बिना कहा था कि वैवाहिक रिश्ते कायम रखने के अदालती फरमान पति के पक्ष में होने के बावजूद गुजारा भत्ता संबंधी याचिका सुनवाई योग्य मानी जाएगी।