सत्ता के साथ चलती है भ्रष्टाचार की परछाई: ओडिशा हाईकोर्ट ने IAS अधिकारी विष्णुपद सेठी को जमानत देने से किया इनकार

Update: 2025-07-29 07:45 GMT

ओडिशा हाईकोर्ट ने सीनियर IAS अधिकारी विष्णुपद सेठी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की। यह मामला एक कथित घूसखोरी के आरोप से जुड़ा है, जिसकी जांच CBI कर रही है।

जस्टिस वी. नरसिंह की एकल पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा,

"अक्सर कहा जाता है कि भ्रष्टाचार की शक्ति एक परछाई की तरह होती है जो सत्ता के साथ चलती है। याचिकाकर्ता निःसंदेह सीनियर IAS अधिकारी हैं और उनके पास प्रशासनिक शक्ति है। रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों के आधार पर यह जांच होना आवश्यक है कि क्या भ्रष्टाचार उनकी परछाई है, और इस जांच में अग्रिम जमानत जैसी असाधारण राहत आड़े नहीं आनी चाहिए।"

मामले के तथ्यों के अनुसार CBI ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 61(2) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं 7, 8, 9, और 10 के तहत FIR दर्ज की थी। इसमें आरोप था कि ब्रिज एंड रूफ कंपनी लिमिटेड के जीएम चंचल मुखर्जी ने प्रोजेक्ट बिल पास कराने और कॉन्ट्रैक्ट आगे बढ़ाने के लिए संतोष मोहराणा से 10 लाख की रिश्वत मांगी।

7 दिसंबर, 2024 को CBI ने जाल बिछाकर रकम बरामद की थी, जो कथित रूप से चंचल मुखर्जी से होकर एक अन्य व्यक्ति देबदत्त महापात्र तक पहुंची थी। जांच में सामने आया कि मुखर्जी के साथ विष्णुपद सेठी की मुलाकात 50 करोड़ के SC/ST विभाग के एक प्रोजेक्ट को लेकर हुई थी। आरोप है कि सेठी की बेटी को महापात्र द्वारा कीमती सामान उपहार में दिए गए थे।

CBI ने सेठी के सरकारी आवास और उनकी बेटी के कॉलेज हॉस्टल पर सर्च भी किया, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बरामद हुए। साथ ही दो लॉकरों की भी जानकारी मिली, जो CBI की कार्रवाई से कुछ दिन पहले ही खाली कर दिए गए। CBI का आरोप था कि सेठी और उनकी पत्नी ने तलाशी में सहयोग नहीं किया और डिवाइस के पासकोड नहीं बताए।

सेठी ने पहले रिट याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने CBI की कार्रवाई को निजता, गरिमा और प्रतिष्ठा का उल्लंघन बताया था। लेकिन जस्टिस संजीब कुमार पाणिग्रही ने इसे गैरजरूरी और भ्रामक याचिका करार देते हुए खारिज कर दिया और कहा कि उच्चपदस्थ व्यक्ति भी जांच से नहीं बच सकते।

बाद में सेठी ने अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी। मुख्य आरोप यह था कि मुखर्जी के फोन से महापात्र को खुद फोन करके सेठी ने रिश्वत की रकम लेने के लिए कहा था।

सेठी के वकील ने तर्क दिया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 349 के तहत उनकी आवाज का नमूना लेना उनके आत्म-आरोप न करने के संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 20(3)) का उल्लंघन है। लेकिन कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यदि कोई साक्ष्य स्वेच्छा से दिया गया तो वह अनुच्छेद 20(3) के तहत संरक्षित नहीं होता।

फॉरेंसिक टेस्ट में सेठी की आवाज नमूना उस व्यक्ति से मेल खा गई, जिसने रिश्वत लेने के निर्देश फोन पर दिए थे। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सीनियर IAS अधिकारी होते हुए भी उनके द्वारा दोनों iPhones को नुकसान पहुंचाया गया और लॉकरों की जानकारी छुपाई गई जो जांच के दौरान खाली पाए गए। यह सब यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता।

अंततः कोर्ट ने यह माना कि अगर अग्रिम जमानत दी गई तो जांच निष्फल हो सकती है। खासकर आरोपी की उच्च प्रशासनिक स्थिति को देखते हुए। इसी आधार पर याचिका को खारिज कर दिया गया।

केस टाइटल: Bishnupada Sethi v. Central Bureau of Investigation

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