'राज्य की हर कार्रवाई को मुख्यमंत्री से नहीं जोड़ा जा सकता': तेलंगाना हाईकोर्ट ने यूनिवर्सिटी हॉस्टल बंद करने के मामले में रेवंत रेड्डी के खिलाफ याचिका खारिज की

Update: 2024-06-12 05:35 GMT

तेलंगाना हाईकोर्ट ने यूनिवर्सिटी हॉस्टल बंद करने के मामले में कथित रूप से मनगढ़ंत ट्वीट से जुड़े मामले में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के खिलाफ अपराध दर्ज करने के लिए उस्मानिया यूनिवर्सिटी क्षेत्र के स्टेशन हाउस ऑफिसर को निर्देश देने की मांग वाली रिट याचिका खारिज कर दी है।

जस्टिस बी. विजयसेन रेड्डी की पीठ ने आज प्रवेश के चरण में मामले की सुनवाई की और उसका निपटारा किया।

याचिकाकर्ता यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट हैं। उसने दावा किया कि 27 अप्रैल को यूनिवर्सिटी कैंपस में विरोध प्रदर्शन के बाद यूनिवर्सिटी के मुख्य वार्डन ने 29 अप्रैल को सर्कुलर जारी कर ग्रीष्मकालीन अवकाश घोषित कर दिया और हॉस्टल तथा मेस को 31 मई तक बंद कर दिया।

सर्कुलर के निचले भाग में उल्लेख किया गया कि 'भीषण गर्मी के कारण पानी और बिजली की कमी भी है।'

अगले दिनों में सर्कुलर शहर और राज्य में पानी और बिजली की कमी को स्पष्ट रूप से उजागर करने के कारण बहस का गंभीर विषय बन गया; बीआरएस पार्टी के प्रमुख द्वारा 29 अप्रैल को जारी नोटिस को ट्वीट करने के बाद। ट्वीट में यह भी आरोप लगाया गया कि सर्कुलर राज्य में पानी और बिजली के आसपास के मामलों को दर्शाता है।

आक्रोश के मद्देनजर, मुख्यमंत्री ने 'एक्स' पर कहा कि पिछले वर्ष भी मुख्य वार्डन द्वारा दिनांक 12.05.2023 को इसी तरह का नोटिस जारी किया गया था।

इस बीच विपक्षी दल के सदस्य ने पिछले वर्ष यूनिवर्सिटी द्वारा जारी किए गए कथित सर्कुलर का वर्जन प्रसारित किया और दावा किया कि सीएम द्वारा पोस्ट किया गया सर्कुलर मनगढ़ंत और झूठा था।

याचिका में आरोप लगाया गया कि सीएम द्वारा किया गया ट्वीट "पिछली सरकार को दोष देने और यह दिखाने के लिए था कि पिछले वर्ष भी पानी और बिजली की कमी थी।"

इससे व्यथित होकर चीफ वार्डन ने विपक्षी दल से संबंधित पार्टी सदस्य के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और पुलिस द्वारा जांच शुरू की गई।

पुलिस अधिकारी की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल ने न्यायालय के संज्ञान में लाया कि मुख्य वार्डन ने बीआरएस पार्टी के सदस्य के खिलाफ शिकायत शुरू की है और जांच अभी भी जारी है। फिर भी, याचिकाकर्ता बार-बार पुलिस अधिकारियों पर मामला दर्ज करने और कथित फर्जी नोटिस के मामले की जांच करने का दबाव बना रहे हैं।

दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार के मामले के अनुसार जांच की जानी चाहिए।

दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद पीठ ने कहा,

"राज्य की हर कार्रवाई को मुख्यमंत्री से नहीं जोड़ा जा सकता। कल कोई भिखारी यह कहते हुए न्यायालय में आएगा कि भीख मांगना ही मेरी एकमात्र आय है, लेकिन मुख्यमंत्री ने सड़क से अवैध अतिक्रमण हटाने को कहा, इसलिए मुख्यमंत्री जिम्मेदार हैं। जब कथित फर्जी नोटिस के मामले में जांच पहले से ही चल रही है तो जवाबी मामला दर्ज करने की कोई जरूरत नहीं है।"

याचिका खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास अधिकार नहीं है। उन्हें उचित प्राधिकारी से संपर्क करने का विकल्प खुला छोड़ दिया।

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