पति-पत्नी के बीच जाति-आधारित अपमान SC/ST Act के तहत अपराध नहीं, जब तक कि जनता द्वारा इसकी गवाही न दी जाए: तेलंगाना हाईकोर्ट

Update: 2025-08-21 04:56 GMT

तेलंगाना हाईकोर्ट ने दोहराया कि एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) के प्रावधान 3(1)(आर) और 3(1)(एस) केवल तभी लागू होंगे, जब घटना या तो सार्वजनिक स्थान पर हुई हो या कम से कम एक स्वतंत्र गवाह द्वारा देखी गई हो।

यह आदेश जस्टिस ई.वी. वेणुगोपाल ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की याचिका पर पारित किया, जिसने कथित तौर पर जाति-आधारित गालियों का इस्तेमाल करके अपने पूर्व पति का अपमान किया था।

हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य तथा सुधाकर बनाम राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेशों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा:

“रिकॉर्ड के अवलोकन और दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद यह न्यायालय पाता है कि आरोपों से, भले ही उन्हें सच मान लिया जाए, यह पता नहीं चलता कि घटना किसी सार्वजनिक स्थान पर हुई थी या किसी स्वतंत्र व्यक्ति ने उसे देखा, जैसा कि कानून के तहत आवश्यक है। कथित कृत्य पक्षकारों के बीच घरेलू कलह का हिस्सा हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक निजी आवास की सीमा के भीतर हुआ।”

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला एक पति-पत्नी (जो अब अलग हो चुके हैं) के बीच वैवाहिक विवाद से उत्पन्न हुआ है, जो अलग-अलग जातियों के थे और जिनका प्रेम विवाह हुआ। शिकायतकर्ता (पति) के अनुसार, उसकी पूर्व पत्नी ने 2018 में अचानक तलाक की मांग की और उसे व्हाट्सएप पर आक्रामक संदेश भेजे, जिसमें सांस्कृतिक मतभेदों का हवाला दिया गया, जिनमें से अधिकांश जातिगत मुद्दों से संबंधित है।

शिकायतकर्ता तलाक के लिए सहमत हो गया, लेकिन उसने संपत्ति वापस करने की मांग की। इस मामले में याचिकाकर्ता ने शुरुआत में सहयोग तो किया, लेकिन फिर से अपने बयान से पलट गया और वकील नियुक्त करने या परिवार के बुजुर्गों से परामर्श लेने से इनकार कर दिया।

याचिकाकर्ता के आक्रामक व्यवहार से निराश होकर शिकायतकर्ता ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 504 और SC/ST Act, 2015 की धाराओं के तहत मामला दर्ज कराया।

इस मामले को रद्द करने की मांग करते हुए पूर्व पत्नी/याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने तर्क दिया कि यह घटना वैवाहिक विवाद का परिणाम थी। इसलिए यह SC/ST Act की धारा 3(1)(आर) और 3(1)(एस) के अंतर्गत नहीं आती।

यह तर्क दिया गया कि वर्तमान शिकायत दर्ज होने से बहुत पहले ही दोनों पक्षों को तलाक दे दिया गया। यह तर्क दिया गया कि अपराध 2018 में हुआ और शिकायत लगभग 10 महीने बाद दर्ज की गई।

दूसरी ओर, राज्य की ओर से वकील ने तर्क दिया कि गवाहों की अभी तक जांच नहीं हुई, इसलिए इस स्तर पर शिकायत को रद्द नहीं किया जा सकता।

पीठ ने कहा,

"तदनुसार, यह न्यायालय हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य और सुधाकर बनाम राज्य में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए CrPC की धारा 482 के तहत हस्तक्षेप करना उचित समझता है, क्योंकि SC/ST Act की धारा 3(1)(आर) और 3(1)(एस) के तहत कथित अपराध के संबंध में ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। आरोप सार्वजनिक दृश्य में किए जाने की वैधानिक आवश्यकता को पूरा नहीं करते हैं। इसलिए उक्त प्रावधानों के तहत कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता। पूर्वगामी चर्चा और निष्कर्षों के मद्देनजर, यह न्यायालय मानता है कि आरोप SC/ST Act की धारा 3(1)(आर) और 3(1)(एस) के आवश्यक तत्वों को संतुष्ट नहीं करते हैं, क्योंकि कथित कृत्य सार्वजनिक रूप से नहीं किए गए। परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखना एक कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग।”

Thus, the petition was allowed, and the case was quashed.

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