केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के आईपीएस अधिकारी गुरजिंदर पाल सिंह की अनिवार्य रिटायरमेंट रद्द करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
भ्रष्टाचार, जबरन वसूली और देशद्रोह के आरोपों का सामना कर रहे छत्तीसगढ़ के आईपीएस अधिकारी गुरजिंदर पाल सिंह की अनिवार्य रिटायरमेंट से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या न्यायिक पुनर्विचार का सीमित दायरा अदालतों को फंसाए जाने के आरोपों पर विचार करने से रोकता है।
जस्टिस एसवीएन भट्टी ने सवाल किया,
"मान लीजिए कि झूठ है तो अधिकारी को लगता है कि उन्हें अनिवार्य रिटायरमेंट दे दी जाएगी। फिर उसका क्या उपाय है?"
इसी तरह की भावना व्यक्त करते हुए जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने कहा,
"किसी व्यक्ति को फंसाए जाने का एक मामला लीजिए। इसका मतलब है कि वह ऐसा व्यक्ति है जो नापसंद है, अलोकप्रिय है। शायद अपने सहकर्मियों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। वे मिलकर उसे फंसा सकते हैं। अगर ऐसा कोई भ्रम कैट तक पहुंचता है तो क्या आप कह सकते हैं कि आप जिन निर्णयों का हवाला देने का प्रस्ताव कर रहे हैं, उनके आधार पर अदालत उस तरह के आरोपों पर विचार नहीं करेगी?"
जस्टिस रॉय और जस्टिस भट्टी की खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को केंद्र सरकार की चुनौती पर विचार कर रही थी, जिसके तहत सिंह की अनिवार्य रिटायरमेंट खारिज करने के केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण का फैसला बरकरार रखा गया था।
न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (संघ की ओर से) को संक्षेप में सुना और सुनवाई 2 दिसंबर तक के लिए स्थगित की।
संक्षेप में मामला
सिंह पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(बी) और 13(2) तथा आईपीसी की धारा 201, 467 और 471 के तहत अपराध का आरोप है।
सुनवाई के दौरान एसजी मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने अनिवार्य रिटायरमेंट मामले में अपील की, जबकि ऐसे मामलों में न्यायिक पुनर्विचार का दायरा सीमित है। फ़्रेम-अप के मामले में व्यक्ति के उपचार के बारे में पीठ के प्रश्न के उत्तर में एसजी ने कहा कि पिछली सरकार फ़्रेम-अप दावे का समर्थन कर रही है। वर्तमान राज्य सरकार सिंह का समर्थन कर रही है। इसलिए केंद्र सरकार तटस्थ है और मामले को न्यायिक पुनर्विचार के मापदंडों (चाहे विकृति, दुर्भावना आदि हो) के आधार पर देखा जाना चाहिए।
रिकॉर्ड देखते हुए खंडपीठ ने राय दी कि सिंह के खिलाफ दर्ज मामलों का क्रम प्राधिकरण के साथ मेल खाता है। उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई।
जस्टिस भट्टी ने कहा कि हाईकोर्ट ने केवल मुद्दों पर गौर किया। उनमें गहराई से नहीं गया या ऐसी टिप्पणियां नहीं कीं, जो सिंह को पूरी तरह से दोषमुक्त कर दें।
इस बिंदु पर एसजी ने जोर देकर कहा कि न्यायाधिकरण और हाईकोर्ट के निष्कर्ष विकृत थे। कुछ अतिरिक्त दस्तावेजों/निर्णयों को रिकॉर्ड पर रखने के लिए समय मांगा।
सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया सिंह के लिए पेश हुए और बताया कि अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए जांच अधिकारी की नियुक्ति आज तक नहीं की गई। उन्होंने आगे तर्क दिया कि सिंह का पूरा रिकॉर्ड बेदाग रहा है। वह राज्य में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के प्रमुख थे, लेकिन नवंबर, 2018 में सत्तारूढ़ सरकार बदल गई।
इसके बाद 2020 में 4-5 चीजें एक साथ हुईं- (i) आत्महत्या की घटना की जांच के लिए 5 सदस्यीय जांच समिति गठित की गई (जिसे अब कैट ने खारिज कर दिया है), (ii) सिंह की 2019-20 की वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट को प्रतिकूल टिप्पणियों के साथ 7.90 से घटाकर 6.00 कर दिया गया; और (iii) उनके खिलाफ 3 FIR दर्ज की गईं (जिसे अब हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया)।
केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम गुरजिंदर पाल सिंह और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 24779/2024