सरोगेट माताओं को वैसे भी भुगतान किया जाएगा, बेहतर होगा कि विनियमन के लिए सिस्टम हो: कॉमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-09-11 05:15 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेसी से जुड़े कुछ कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस बात पर जोर दिया कि भारत में कॉमर्शियल सरोगेसी प्रतिबंधित होने के बावजूद सरोगेट माताओं के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ सरोगेसी विनियमन अधिनियम और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जब उसने देखा कि "सिस्टम" की आवश्यकता है, जिससे किसी भी महिला का शोषण न हो।

जस्टिस नागरत्ना ने मौखिक रूप से कहा,

"एक डेटाबेस हो सकता है, जिससे एक ही महिला का शोषण न हो। एक सिस्टम होना चाहिए। कोई भी यह नहीं कह रहा है कि यह एक बुरा विचार है। साथ ही इसका गलत तरीके से इस्तेमाल भी किया जा सकता है।"

मुआवज़े के पहलू पर जज ने कहा कि न्यायालय सरोगेट माताओं को सीधे भुगतान करने के बजाय निर्दिष्ट प्राधिकरण द्वारा धन वितरित करने के पहलू पर विचार करेगा: "आपको सीधे महिला को भुगतान करने की ज़रूरत नहीं है, विभाग भुगतान करता है। आपको जमा करना होगा।"

केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने न्यायालय को सूचित किया कि वर्तमान में कानून कॉमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाते हैं। केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति है।

हालांकि, उन्होंने निर्देश देने के लिए समय मांगा और कहा,

"यदि कोई सुझाव हैं तो हम लेने के लिए तैयार हैं। यह ऐसा अधिनियम है, जो विशेष रूप से आया और कॉमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाना हमारे प्रमुख उद्देश्यों में से एक था। अन्यथा, जिस चश्मे से विशेषज्ञों ने इसे देखा, वह बच्चे का कल्याण है। यह इच्छुक जोड़ों या व्यक्तियों के अधिकारों का मामला नहीं है। यह अंततः उस बच्चे का अधिकार है, जिसे दुनिया में लाया जाता है।"

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट नकुल दीवान ने तर्क दिया कि "परोपकारिता" की भावना बरकरार रखते हुए सरोगेट माताओं को किसी प्रकार का मुआवजा प्रदान किया जाना चाहिए, क्योंकि अधिनियम और नियम केवल चिकित्सा व्यय और बीमा को कवर करते हैं। अदालत के एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि एक महिला केवल एक बार सरोगेट मां बन सकती है।

सीनियर वकील ने आगे कहा कि एक सिस्टम स्थापित करने से उन इच्छुक जोड़ों को भी सहायता मिलेगी, जो सरोगेट खोजने में असमर्थ हैं।

उन्होंने कहा,

"अगर ऐसी चीजें भूमिगत हो जाती हैं तो अगर एक सिस्टम स्थापित किया जाता है तो निश्चित रूप से मुझे लगता है कि हम इसे बेहतर तरीके से विनियमित कर सकते हैं। शायद ऐसे मामलों में जहां [लोग] सरोगेट खोजने में असमर्थ हैं, वे सरोगेट खोजने में सक्षम हो सकते हैं।"

वकील मोहिनी प्रिया ने दीवान की दलीलों को पूरक करते हुए सुझाव दिया कि सरकार सरोगेट माताओं के मुआवजे के लिए ऊपरी और निचली सीमा तय कर सकती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे जुड़वां बच्चे या एकल बच्चे को जन्म दे रही हैं, आदि। हालांकि, पीठ का मानना ​​था कि संबंधित सरकारी विभाग इस पर विचार कर सकता है।

दीवान की दलील स्वीकार करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि "सरोगेट बैंक" जैसा कुछ हो सकता है।

जज ने कहा,

"यह योजना वास्तव में इस अर्थ में काम नहीं करेगी कि उन्हें अभी भी भुगतान किया जाएगा। कम से कम हम इसे विनियमित कर सकते हैं।"

यह भी ध्यान दिया गया कि इच्छुक जोड़ों पर मौजूदा अधिनियम (अधिनियमों) के प्रभाव पर विचार करना होगा, जिन्होंने पहले ही प्रक्रिया शुरू कर दी है।

न्यायालय 5 नवंबर को मामले की सुनवाई करेगा और पक्षकारों को इस बीच अपनी दलीलें दाखिल करने के लिए कहा गया।

केस टाइटल: अरुण मुथुवेल बनाम भारत संघ | डब्ल्यू.पी. (सिविल) नंबर 756/2022 (और संबंधित मामले)

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