गुमशुदा महिलाओं के लिए केंद्रीकृत अलर्ट पर दिशा-निर्देश मांगने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा

Update: 2024-09-14 04:17 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई, जिसमें किसी महिला के गुम होने की सूचना मिलने और उचित समय-सीमा के भीतर उसका पता न लगा पाने की स्थिति में केंद्रीकृत अलर्ट अनिवार्य करने के लिए दिशा-निर्देश मांगे गए।

सुप्रीम कोर्ट ने होरी लाल बनाम आयुक्त 2002 के निर्णय में नाबालिग लड़कियों के अपहरण के मामलों में उठाए जाने वाले कदमों के बारे में दिशा-निर्देश निर्धारित किए।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट नित्या रामकृष्णन ने जोर देकर कहा कि भले ही दिशा-निर्देश पहले ही तैयार किए जा चुके हैं, लेकिन अक्सर लापता लड़की/महिला के परिवारों की ओर से घटना की सूचना देने में चूक और देरी होती है, जिससे न्याय का हनन होता है। उन्होंने वर्तमान मामले का हवाला दिया, जिसमें नाबालिग की मां, जो अस्पताल में नर्स के रूप में काम कर रही थी, 8 दिनों तक लापता रही और बाद में उसका शव बरामद हुआ।

वकील ने कहा,

"उदाहरण के लिए, 11 साल का बच्चा है, उसकी मां घर नहीं आती, वह रोते हुए सो जाती है, अगले दिन वह पड़ोसियों को बताती है, पड़ोसी रिश्तेदारों को बताते हैं - वे लापता व्यक्ति के बारे में सही जानकारी प्राप्त करने की भी जहमत नहीं उठाते। 8 दिन बाद घर के पास, जहां हर कोई चल रहा है - रुद्रपुर एक छोटी सी जगह है, शव मिलता है - यह अचानक सामने आता है, वे अभी भी एफआईआर दर्ज नहीं करते हैं। यह शोरगुल है और लोग सड़कों पर उतर आते हैं। फिर शव मिलने के 8 दिन बाद वे एफआईआर दर्ज करते हैं। यह पूरे देश में स्थिति है।"

वकील ने इस बात पर प्रकाश डाला कि लापता व्यक्ति के बारे में समय पर सूचना देने के लिए परिवार के सदस्यों के लिए विशेष रूप से कदम उठाने के लिए दिशा-निर्देशों की आवश्यकता थी।

कहा गया,

"तो आप ऐसी स्थिति से कैसे निपटते हैं, जहां गुमशुदगी की शिकायत है? जरूरत इस बात की है कि एक सदमे में डूबे परिवार से जानकारी कैसे प्राप्त की जाए?"

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मामले में नोटिस जारी करने पर सहमति जताई।

याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई मुख्य राहतों में शामिल हैं:

1) प्रतिवादी नंबर 1 को परमादेश की प्रकृति में रिट या आदेश या निर्देश जारी करना, जिससे वे अस्पताल के कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए देश भर में दिशा-निर्देश जारी कर सकें, चाहे उनकी मेडिकल योग्यता कुछ भी हो।

2) किसी महिला के लापता होने की सूचना मिलने और उचित समय-सीमा के भीतर उसका पता न लगा पाने की स्थिति में केंद्रीकृत अलर्ट जारी करने के लिए परमादेश की प्रकृति में रिट या आदेश या निर्देश जारी करना।

इसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज की देखरेख में याचिकाकर्ता की मां के साथ वर्तमान यौन उत्पीड़न और हत्या की स्वतंत्र जांच और यौन उत्पीड़न/अन्य अपराधों की पीड़ित महिलाओं के लिए उत्तराखंड मुआवजा योजना, 2022 के तहत याचिकाकर्ता(ओं) को मुआवजा देने की भी मांग की गई।

याचिका एओआर सुगंधा आनंद और एडवोकेट सारिम जावेद की सहायता से दायर की गई।

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