DDA द्वारा ज्यूडिशियल ऑफिसर को कानूनी सलाहकार नियुक्त करने पर सुप्रीम कोर्ट हैरान, कहा- यह न्यायिक स्वतंत्रता का उल्लंघन

Update: 2024-06-25 05:05 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (24 जून) को दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा के सेवारत ज्यूडिशियल ऑफिसर को कानूनी सलाहकार नियुक्त करने की प्रथा पर हैरानी जताई।

यह देखते हुए कि इस तरह की प्रथा न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करती है, कोर्ट ने DDA से इसे बंद करने को कहा। कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट से उचित कार्रवाई के लिए मामले पर गौर करने का भी आग्रह किया।

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस जस्टिस उज्जल भुइयां की वेकेशन बेंच सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए दिल्ली रिज फॉरेस्ट में पेड़ों की कटाई के लिए DDA के वाइस चेयरमैन सुभाशीष पांडा के खिलाफ शुरू किए गए स्वप्रेरणा अवमानना ​​मामले की सुनवाई कर रही थी।

DDA वाइस चेयरमैन के हलफनामे को पढ़ते हुए बेंच ने DDA द्वारा सेवारत ज्यूडिशियल ऑफिसर को कानूनी सलाहकार नियुक्त करने की इस "चौंकाने वाली प्रथा" पर ध्यान दिया।

बेंछ ने आदेश में निम्नलिखित टिप्पणी की:

"जब हम हलफनामे का अवलोकन कर रहे थे तो हमें कुछ ऐसा मिला जो चौंकाने वाला है। प्रथम दृष्टया हमारा मानना ​​है कि दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा के कार्यरत ज्यूडिशियल ऑफिसर को DDA के कानूनी सलाहकार के रूप में नियुक्त करना न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सिद्धांतों और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का पूरी तरह से उल्लंघन है। इसके अलावा, DDA दिल्ली की अदालतों में प्रमुख वादी है। हम उम्मीद करते हैं कि दिल्ली हाईकोर्ट इस पहलू पर उचित कार्रवाई करेगा।

इसलिए हम निर्देश देते हैं कि रजिस्ट्री द्वारा आदेश की कॉपी दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भेजी जाए, जो इसे तुरंत दिल्ली हाईकोर्ट के माननीय एक्टिंग चीफ जस्टिस के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। हमें उम्मीद है और भरोसा है कि DDA स्वयं ही कार्यरत ज्यूडिशियल ऑफिसर को DDA के कानूनी सलाहकार के रूप में नियुक्त करने की इस प्रथा को तुरंत बंद कर देगा। इसका कारण सरल है। सेवारत न्यायिक अधिकारियों को दिल्ली की अदालतों में किसी प्रमुख वादी के कानूनी सलाहकार के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता।"

सुनवाई के दौरान क्या हुआ?

सुनवाई के दौरान DDA वाइस चेयरमैन की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने बेंच के इस सवाल का जवाब दिया कि क्या DDA के विधि विभाग को एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ एवं अन्य में पारित सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की जानकारी थी। विधि विभाग में न्यायिक अधिकारियों की संलिप्तता तब सामने आई जब सिंह ने प्रस्तुत किया कि DDA ने लॉ टीम के कामकाज की देखरेख में मदद के लिए कुछ ज्यूडिशियल ऑफिसर्स से अनुरोध किया था।

जस्टिस ओक ने तुरंत हस्तक्षेप किया और वैधानिक निकायों के विधिक मामलों में ज्यूडिशियल ऑफिसर के शामिल होने की बेतुकी बात पर टिप्पणी की,

"ज्यूडिशियल ऑफिसर DDA को उनके विधिक कार्य करने में मदद करने और उन्हें सलाह देने के लिए होते हैं। वे (DDA) उनसे (ज्यूडिशियल ऑफिसर्स से) अनुरोध करते हैं कि कृपया वकीलों के कामकाज को देखें। सेवारत ज्यूडिशियल ऑफिसर DDA के साथ कैसे काम कर सकते हैं? हम समझ नहीं पा रहे हैं। हम इस पर आपकी सहायता चाहते हैं। DDA वैधानिक प्राधिकरण है। कल आप कहेंगे कि ज्यूडिशियल ऑफिसर को नगर निगम के साथ काम करना चाहिए। यह चौंकाने वाली स्थिति है- DDA इस न्यायालय के समक्ष वादी है और न्यायिक अधिकारी इसकी मदद कर रहे हैं। यह क्या हो रहा है?"

बेंच ने आगे सिंह से इस तरह के तर्क को बढ़ावा देने से बचने के लिए कहा।

बेंच ने कहा,

"मिस्टर सिंह, क्या आप इसका बचाव कर रहे हैं? ज्यूडिशियल ऑफिसर DDA के साथ कानूनी सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं? कृपया इस प्रथा को तुरंत रोकें।"

अदालत को यह भी बताया गया कि दो उच्च न्यायिक अधिकारी हैं, जो DDA के कानूनी सलाहकार और मुख्य कानूनी सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं।

इस पर जस्टिस ओक ने जवाब दिया कि कार्यकारी के वैधानिक निकाय में न्यायिक सदस्यों को सलाहकार के रूप में रखना न्यायिक स्वतंत्रता की अवधारणा के खिलाफ है।

उन्होंने कहा,

"कैसे? न्यायपालिका की स्वतंत्रता के रूप में कुछ जाना जाता है। क्या आप मूल अवधारणा भूल गए हैं?"

सिंह ने सहमति जताई कि न्यायिक अधिकारियों को कानूनी सलाहकार के रूप में रखने की ऐसी प्रथा से DDA को बचना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा,

"वे दिल्ली की अदालतों में प्रमुख वादियों में से एक हैं, यह पूरी तरह से अनुचित होगा कि न्यायिक अधिकारी उनके कानूनी सलाहकार बनें।"

DDA का मुख्य बचाव यह है कि एग्जीक्यूटिव इंजीनियर पेड़ों की कटाई के बारे में मुख्य कानूनी सलाहकार को सूचित करने में विफल रहे। इस प्रकार कानूनी विभाग को पेड़ों की कटाई के निर्देशों की जानकारी नहीं थी।

सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने पाया कि ई-मेल पत्राचार से संकेत मिलता है कि पेड़ों को साफ करने के आदेश में दिल्ली के उपराज्यपाल की संलिप्तता थी।

इसके बाद न्यायालय ने विस्तृत आदेश पारित किया, जिसमें वाइस चेयरमैन से दिल्ली के उपराज्यपाल की संलिप्तता के बारे में स्पष्ट तथ्य प्रकट करने को कहा गया। बेंच ने पाया कि कुछ ई-मेल संचार में एलजी द्वारा 3 फरवरी, 2024 को किए गए साइट विजिट का उल्लेख है और साइट विजिट के बाद एलजी के निर्देश पर पेड़ों की कटाई की गई।

केस टाइटल: बिंदु कपूरिया बनाम सुभाशीष पांडा डेयरी नंबर 21171-2024, सुभाशीष पांडा वाइस चेयरमैन डीडीए एसएमसी (सीआरएल) नंबर 2/2024 के संबंध में

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