सुप्रीम कोर्ट ने DRAT के समक्ष अपील के लिए पूर्व-जमा की शर्त को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (26 जून) को कंपनी निदेशक द्वारा दायर याचिका में नोटिस जारी करने से इनकार किया। उक्त याचिका में SARFAESI Act की धारा 18 के तहत ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण (DRAT) में अपील के लिए 50% पूर्व-जमा की शर्त की वैधता को चुनौती दी गई।
याचिकाकर्ता का मुख्य तर्क यह था कि धारा 18 के प्रावधान SARFAESI Act की धारा 17 के तहत DRT के आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिए DRAT द्वारा बैंक को देय राशि का 50% या 25% (न्यायालय के विवेक पर) जमा करने की शर्त लगाते हैं, जो मनमाना और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
याचिका के अनुसार, प्रावधान अपील के प्रावधान को निरर्थक और नकारात्मक बनाते हैं। चूंकि बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ऋण का बड़ा हिस्सा 10-15 साल की अवधि के लिए सावधि ऋण के रूप में होता है, इसलिए ऋणदाता बैंक द्वारा SARFAESI Act के प्रावधान का उपयोग करने के लिए डिफ़ॉल्ट राशि उधार ली गई राशि का केवल 5% या उससे कम होती है। इसके विपरीत, उधारकर्ता को अपील में सुनवाई के लिए राशि का 50-25% भुगतान करने के लिए मजबूर किया जाता है।
याचिकाकर्ता ने कहा,
"जब कोई खाता 90 दिनों की अवधि के लिए डिफॉल्ट हो जाता है तो बैंकर को SARFAESI लागू करने की अनुमति होती है। इसका मतलब यह होगा कि डिफॉल्ट की गई राशि बकाया राशि का 5 प्रतिशत भी नहीं है। एक उधारकर्ता, जिसे SARFAESI Act के तहत कार्रवाई का सामना करना पड़ता है, उदाहरण के लिए, बकाया राशि का 5 प्रतिशत भुगतान करने में सक्षम नहीं होने के कारण, उसे अपनी अपील को बनाए रखने के लिए भी पूरी ऋण राशि का 50 प्रतिशत भुगतान करना पड़ता है, चाहे DRT का आदेश कितना भी क्रूर क्यों न हो। इससे भी बदतर किसी भी आदेश में इस्तेमाल की जाने वाली शब्दावली, चाहे अपील की प्रकृति कुछ भी हो, DRAT कम से कम 25 प्रतिशत की अग्रिम जमा राशि पर जोर देते हैं। धारा स्पष्ट रूप से अपील के प्रावधान को निरर्थक बनाती है। व्यवहार में प्रावधान अंतरिम आदेशों से उत्पन्न होने वाली अपीलों पर भी लागू होता है।"
जस्टिस एएस ओक और जस्टिस राजेश बिंदल की वेकेशन बेंच ने याचिका पर विचार करने से इनकार किया और कहा कि जिस कंपनी का वर्तमान याचिकाकर्ता निदेशक है, उसने पहले ही इसी तरह के मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट मैथ्यूज जे नेदुम्परा ने किया।
न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणी करते हुए मामले का निपटारा किया:
"हम याचिका पर विचार क्यों नहीं कर रहे हैं, इसके दो कारण हैं, पहला यह कि याचिकाकर्ता के पास भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष उपाय है। दूसरा यह कि याचिकाकर्ता सीजेईएक्स बायोकेम प्राइवेट लिमिटेड का निदेशक है, जो रिट याचिका नंबर 3038/22 में याचिकाकर्ता है। उक्त रिट याचिका में पारित अंतिम आदेश को कंपनी द्वारा इस न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई है, जिसमें याचिकाकर्ता के वकील स्वयं उपस्थित हुए और यह आदेश पारित किया गया कि याचिका स्पेशल बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा। चूंकि याचिकाकर्ता के पास हाईकोर्ट के समक्ष उपाय है, इसलिए हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका पर विचार करने से इनकार करते हैं और उपरोक्त अवलोकन के अधीन याचिका का निपटारा किया जाता है।"
एओआर अब्दुल कादिर अब्बासी की सहायता से याचिका दायर की गई।
केस टाइटल: चेतन प्रभाशंकर जोशी बनाम पेगासस एसेट्स रीकंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मंडल डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 000391 / 2024