सुप्रीम कोर्ट ने यूपी गैंगस्टर एक्ट, नियमों के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2024-11-30 07:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 और उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) नियम, 2021 के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने सीनियर एडवोकेट आर बसंत (याचिकाकर्ताओं की ओर से) की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया, जिन्होंने पुलिस को दी गई विवेकाधीन शक्तियों पर सवाल उठाया। तर्क दिया कि गैंगस्टर एक्ट और नियमों के तहत पुलिस खुद शिकायतकर्ता, अभियोजक और निर्णायक है। सीनियर वकील ने बताया कि ये मुद्दे पहले के एक मामले में भी उठाए गए थे, जहां नोटिस जारी किया गया था, हालाँकि बाद में इन मुद्दों पर फैसला नहीं हुआ।

संक्षेप में कहें तो यह याचिका गैंगस्टर एक्ट की धारा 3, 12, 14, 15, 16 और 17 के साथ-साथ गैंगस्टर नियम के नियम 16(3), नियम 22, नियम 35, नियम 37(3) और (4) तथा नियम 40 को चुनौती देते हुए दायर की गई, क्योंकि ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 20(2), 21 और 300ए का उल्लंघन करते हैं।

याचिका में कहा गया,

"गैंगस्टर एक्ट और गैंगस्टर नियम के विवादित प्रावधान अनुच्छेद 14 की कसौटी और उसमें दिए गए मनमानी न करने के मापदंडों पर पूरी तरह से खरे नहीं उतरते हैं। यह एक्ट पुलिस/कार्यपालिका को बिना किसी उचित वर्गीकरण के किसी भी व्यक्ति के खिलाफ अपनी संतुष्टि के आधार पर गैंगस्टर अधिनियम लागू करने की मनमानी शक्ति देता है।"

याचिकाकर्ताओं, जिन पर स्वयं गैंगस्टर एक्ट की धारा 2/3 के तहत मामला दर्ज किया गया, उसका आरोप है कि अधिनियम के प्रावधानों का इस्तेमाल बदला लेने, उन्हें परेशान करने और पारिवारिक विवादों को निपटाने के लिए एक हथियार के रूप में किया जा रहा है, जबकि एक्ट केवल गैंगस्टरों की गतिविधियों से संबंधित है, जो सार्वजनिक व्यवस्था को गंभीर रूप से खतरे में डालते हैं।

"यू.पी. गैंगस्टर एक्ट के प्रावधान निवारक प्रकृति के हैं और उन्हें दंडात्मक के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह अधिनियम खूंखार अपराधियों से निपटने के लिए लाया गया। अब पुलिस मनमाने ढंग से गैंगस्टर अधिनियम लागू कर रही है।"

इसमें कहा गया है कि गैंगस्टर अधिनियम और नियम आरोपी व्यक्तियों का कोई वर्गीकरण प्रदान नहीं करते हैं, ऐसे में उनका दुरुपयोग किया जा रहा है और मनमाने ढंग से और भेदभावपूर्ण तरीके से लागू किया जा रहा है।

"पुलिस/कार्यपालिका को किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध गैंगस्टर एक्ट लागू करने या न करने का पूर्ण विवेकाधिकार दिया गया, जिसके विरुद्ध कोई मामला नहीं है:

i. उसके विरुद्ध एक ही मामला है।

ii. उसके विरुद्ध एक से अधिक मामले हैं।"

श्रद्धा गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के निर्णय पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पुलिस/कार्यपालिका को पूर्ण विवेकाधिकार दिया गया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि गैंगस्टर एक्ट को एकल अपराध/FIR/चार्जशीट के मामले में भी लागू किया जा सकता है, यदि यह पाया जाता है कि अभियुक्त किसी गिरोह का सदस्य है और गैंगस्टर एक्ट की धारा 2(बी) में उल्लिखित किसी भी असामाजिक गतिविधि में लिप्त है।

यह भी आरोप लगाया गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक कदम आगे बढ़कर (इरफान एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य) पुलिस को ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध FIR दर्ज करने का विवेकाधीन अधिकार प्रदान किया, जिस पर किसी अपराध का आरोप नहीं है या जिसके विरुद्ध कोई आधार मामला नहीं है।

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, एक्ट न्यायालय को न केवल विचाराधीन अभियुक्त की संपत्ति कुर्क करने का अधिकार देता है, बल्कि एक्ट के अंतर्गत मुकदमा शुरू होने से पहले या बल्कि अभियुक्त के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल होने से पहले भी ऐसी संपत्ति को जब्त या निपटाने का अधिकार भी देता है।

"गैंगस्टर एक्ट की धारा 14 के अंतर्गत जिला मजिस्ट्रेट संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा गैंगस्टर एक्ट के अंतर्गत दंडनीय अपराध का संज्ञान लिए जाने से पहले भी किसी व्यक्ति की संपत्ति कुर्क करने का आदेश दे सकता है। गैंगस्टर नियम की धारा 37(3) के अंतर्गत किसी व्यक्ति की संपत्ति उस व्यक्ति के विरुद्ध मामला दर्ज होने से पहले भी कुर्क की जा सकती है।"

"कोई भी व्यक्ति अपने मामले में स्वयं न्यायाधीश नहीं हो सकता" के सिद्धांत के संदर्भ में आगे कहा गया, "किसी व्यक्ति (चाहे वह आरोपी हो या नहीं) की संपत्ति" गैंगस्टर एक्ट की धारा 14 के अंतर्गत गैंगस्टर नियम 37 के साथ आयुक्त/जिला मजिस्ट्रेट के आदेश से कुर्क की जा सकती है। संपत्ति की रिहाई के लिए आयुक्त/जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष अभ्यावेदन दायर किया जाना चाहिए, जो गैंगस्टर नियम 40 के अंतर्गत निर्णायक भी है।"

याचिका में आगे कहा गया,

"कोई व्यक्ति जो किसी अपराध में शामिल नहीं है, उसके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। उसके नाम के साथ गैंगस्टर शब्द जुड़ा हुआ है, जो उसके पूरे जीवन में इस टैग के साथ रहता है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके अधिकार का उल्लंघन होगा।"

अपने विशिष्ट मामले के तथ्यों में याचिकाकर्ताओं ने उनके खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने के साथ-साथ उनके आवासीय घर और कृषि भूमि के संबंध में पुलिस आयुक्त (बासमंडी, डालीगंज, लखनऊ) द्वारा पारित कुर्की के आदेशों को भी रद्द करने की मांग की। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन आदेशों को बरकरार रखा।

केस टाइटल: सिराज अहमद खान एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, डब्लू.पी.(सीआरएल.) नंबर 452/2024

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