सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जजों की पदोन्नति के लिए LDCE कोटा बढ़ाया, योग्यता सेवा में कटौती की
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निर्देश दिया कि सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के कैडर से जिला जजों के रूप में पदोन्नति के लिए सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा का कोटा 10% से बढ़ाकर 25% किया जाए।
कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारों को इस संबंध में अपने सेवा नियमों में संशोधन करने का निर्देश दिया।
साथ ही LDCE में उपस्थित होने के लिए सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के लिए आवश्यक न्यूनतम योग्यता सेवा अवधि को घटाकर तीन वर्ष कर दिया गया। इसके अलावा, कोर्ट ने निर्देश दिया कि LDCE के माध्यम से तीन साल की योग्यता सेवा पूरी करने पर सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की त्वरित पदोन्नति के लिए सिविल जज (सीनियर डिवीजन) में 10% पद आरक्षित किए जाएं।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ मामले में ये निर्देश पारित किए।
इस निर्णय के माध्यम से न्यायालय ने यह शर्त भी बहाल कर दी कि सिविल जज (जूनियर डिवीजन) बनने के इच्छुक उम्मीदवारों को अधिवक्ता के रूप में न्यूनतम तीन वर्ष की प्रैक्टिस पूरी करनी होगा।
पीठ द्वारा जारी निर्देश इस प्रकार हैं:
1. देश के सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारें प्रासंगिक सेवा नियमों में संशोधन करेंगी ताकि सिविल जज (वरिष्ठ डिवीजन) के कैडर से उच्च न्यायिक सेवा में पदोन्नति के लिए LDCE के लिए आरक्षण का कोटा बढ़ाकर 25% किया जा सके।
2. देश के सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारें प्रासंगिक सेवा नियमों में संशोधन करेंगी ताकि सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के कैडर से उच्च न्यायिक सेवा में पदोन्नति के लिए LDCE में उपस्थित होने के लिए आवश्यक न्यूनतम अर्हक सेवा को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के रूप में 3 वर्ष की सेवा तक घटा दिया जाए और सिविल जज (जूनियर डिवीजन) और सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के रूप में की गई सेवा सहित की जाने वाली कुल सेवा न्यूनतम 7 वर्ष की सेवा निर्धारित की जाए।
3. देश के सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारें संबंधित सेवा नियमों में संशोधन करेंगी ताकि सिविल जज (सीनियर कैटेगरी) के कैडर में 10% पद LDCE सिस्टम के माध्यम से सिविल जज (जूनियर कैटेगरी) उम्मीदवारों की त्वरित पदोन्नति के लिए आरक्षित किए जाएं। उक्त LDCE में उपस्थित होने के लिए आवश्यक न्यूनतम अर्हक सेवा सिविल जज (जूनियर कैटेगरी) के रूप में तीन वर्ष की सेवा होगी।
4. यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि यदि सिविल जज (सीनियर कैटेगरी श्रेणी) या उच्च न्यायपालिका के लिए LDCE के लिए आरक्षित कोई पद रिक्त रह जाता है तो उसे उस विशेष वर्ष में 'योग्यता-सह-वरिष्ठता' के आधार पर नियमित पदोन्नति के माध्यम से भरा जाएगा। LDCE के लिए विचार किए गए अनुपात में रिक्त पदों को भरना उसी वर्ष की नियमित पदोन्नति के लिए एक साथ की गई चयन प्रक्रिया से किया जाना होगा।
5. हाईकोर्ट और राज्य सरकारें, जहां LDCE के लिए रिक्तियों की गणना कैडर क्षमता के आधार पर नहीं की जा रही है, संबंधित सेवा नियमों में संशोधन करेंगे ताकि LDCE के लिए रिक्तियों की गणना कैडर क्षमता के आधार पर की जा सके।
6. देश के सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारें, जहां नियम नहीं बनाए गए या यदि बनाए गए तो वे सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के कैडर से उच्च न्यायिक सेवा के कैडर में पदोन्नत किए जाने के लिए उम्मीदवार की उपयुक्तता का आकलन करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए नए नियम बनाएंगे या मौजूदा नियमों में संशोधन करेंगे, जैसे: (i) क्या उम्मीदवार के पास लॉ की अपडेट नॉलेज है; (ii) न्यायिक अधिकारी द्वारा दिए गए निर्णयों की गुणवत्ता; (iii) न्यायिक अधिकारी की पिछले पांच वर्षों की एसीआर; (iv) पिछले पांच वर्षों में निपटान दर; (v) मौखिक परीक्षा में न्यायिक अधिकारी का प्रदर्शन; और (vi) सामान्य धारणाएं और जागरूकता तथा संचार कौशल।
केस टाइटल: अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ (न्यूनतम प्रैक्टिस और LDCE मुद्दा)