सुप्रीम कोर्ट ने आयकर विभाग को फटकार लगाई: पहले से निपटे मामले पर दोबारा SLP दाखिल करना अदालत का समय बर्बाद करना

Update: 2025-11-28 11:08 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आयकर विभाग को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि वह पहले से तय किए गए मुद्दे पर बार-बार निरर्थक विशेष अनुमति याचिकाएँ (SLP) दाखिल कर रहा है, जिससे लंबित मामलों का बोझ बढ़ रहा है।

यह टिप्पणी जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने की, जब आयकर विभाग ने कर्नाटक हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ SLP दाखिल की। यह मामला TDS देनदारी से संबंधित था, जिसे सुप्रीम कोर्ट पिछले वर्ष ही वोडाफोन-आइडिया मामले में स्पष्ट कर चुका था कि विदेशी टेलीकॉम कंपनियों को किए गए भुगतान पर TDS लागू नहीं होता।

जब मामला सुना गया, जस्टिस नागरत्ना ने सवाल किया कि पहले वाली SLP खारिज होने के बावजूद विभाग ने दोबारा याचिका क्यों दाखिल की?

विभाग के वकील ने बताया कि उन्होंने अपील दाखिल न करने की सलाह दी थी, लेकिन विभाग ने यह कहते हुए याचिका दाखिल कर दी कि पहले फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका लंबित थी।

इस पर जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कोर्ट आदेश में अपनी नाराज़गी दर्ज करेगी ताकि स्पष्ट संदेश जाए।

अपने आदेश में खंडपीठ ने लिखा:

“हम समझ नहीं पा रहे हैं कि विभाग क्यों लगातार SLP दाखिल कर रहा है, जबकि यह मुद्दा पहले ही इस कोर्ट द्वारा तय किया जा चुका है। एक बार जब सुप्रीम कोर्ट पिछले फैसले के आधार पर SLP खारिज कर चुका है, तो विभाग को उसी मुद्दे पर और याचिकाएँ दाखिल नहीं करनी चाहिए। ऐसी निरर्थक याचिकाएँ अदालत की लंबित मामलों की संख्या बढ़ाती हैं और न्यायिक समय की अनावश्यक बर्बादी करती हैं।”

कोर्ट ने यह भी रिकॉर्ड किया कि पहले फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पहले ही खारिज की जा चुकी है, इसलिए इस तरह की दोबारा याचिका बिल्कुल बेबुनियाद है।

आदेश लिखने के बाद जस्टिस नागरत्ना ने तीखी टिप्पणी की:

“मामला दाखिल, खारिज। यह क्या है? सिर्फ आंकड़ों के लिए? जब वही मुद्दा है, तो दोबारा SLP क्यों?”

खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि किसी मुद्दे पर एक बार SLP खारिज होने के बाद विभाग को अन्य मामलों में उसी मुद्दे पर नई याचिकाएँ नहीं दाखिल करनी चाहिए।

जस्टिस नागरत्ना ने विभाग के वकील से कहा कि वे यह संदेश विभाग तक पहुँचाएँ, क्योंकि विभाग की लगातार फाइलिंग यह दिखाती है कि उसके पास किसी प्रकार की स्पष्ट मुकदमेबाज़ी नीति नहीं है।

उन्होंने कहा:

“एक बार मामला हार जाने के बाद विभाग हर असेसी के मामले में याचिका दाखिल कर देता है। आप हमें कैसे समझाएँगे कि यह सही है?”

जब वकील ने कहा कि विभाग 'मॉनिटरी लिमिट पॉलिसी' का पालन करता है, तो जस्टिस नागरत्ना ने जवाब दिया:

“नहीं, नहीं—कृपया यह बात विभाग को अपनी राय के साथ बताइए।”

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