सुप्रीम कोर्ट ने PMLA मामले में भूषण स्टील के पूर्व एमडी नीरज सिंघल को जमानत दी, कहा- ED ने गिरफ्तारी के मामले में कानून का उल्लंघन किया

Update: 2024-09-06 07:11 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में भूषण स्टील लिमिटेड के पूर्व प्रबंध निदेशक नीरज सिंघल को रिहा करने का आदेश दिया। सिंघल के करीब 16 महीने लंबे कारावास और इतने कम समय में मुकदमा पूरा होने की संभावना न होने का हवाला देते हुए यह आदेश पारित किया गया।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ सिंघल की गिरफ्तारी और दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा जमानत खारिज किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उन्हें पिछले साल 9 जून को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बैंक धोखाधड़ी मामले में कथित संलिप्तता और मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के लिए गिरफ्तार किया था।

सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी सिंघल की ओर से पेश हुए और तर्क दिया कि वह करीब 16 महीने से हिरासत में हैं। आगे यह भी कहा गया कि सिंघल का मामला पंकज बंसल फैसले के अंतर्गत आता है।

जस्टिस खन्ना ने कहा कि आर्थिक अपराधों में कहीं न कहीं एक सीमा रेखा खींचनी पड़ती है।

उन्होंने कहा,

"आप अर्थव्यवस्था को हिला नहीं सकते, बाजार के भरोसे को हिला नहीं सकते।"

हालांकि, जज ने माना कि सिंघल के पास मजबूत मामला है, क्योंकि गिरफ्तारी के आधार नहीं दिए गए हैं। इस बिंदु पर सिंघल के लिए पेश सीनियर वकीलों ने अदालत का ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया कि सिंघल को इस अपराध में हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है।

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने जब कथित रूप से शामिल राशि यानी 46000 करोड़ रुपये की ओर इशारा किया तो जस्टिस खन्ना ने कहा,

"इसमें कोई संदेह नहीं है। 16 महीने से वह जेल में है, है न? हम कारणों को न दिए जाने से चिंतित हैं। इस समय तक आम तौर पर इन मामलों में 2-3 साल के भीतर मुकदमा खत्म होने की उम्मीद की जाती है। पहले ही 16 महीने हो चुके हैं। मुझे नहीं लगता कि मुकदमा शुरू भी हुआ होगा।"

जस्टिस खन्ना ने सिंघल की दोबारा गिरफ्तारी पर भी आपत्ति जताई और कहा कि वैधानिक प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।

न्यायाधीश ने कहा,

"मुझे नहीं पता कि आप उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर सकते हैं या नहीं। मैं बहुत स्पष्ट रहूंगा। मैं इस बारे में निश्चित नहीं हूं। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा।"

यह भी टिप्पणी की गई कि कानून के शासन में संवैधानिक प्रावधानों का अनुपालन शामिल है।

जस्टिस कुमार (जो पंकज बंसल निर्णय सुनाने वाली पीठ का हिस्सा थे) ने कहा,

"यह पंकज बंसल, मिस्टर राजू द्वारा स्पष्ट रूप से कवर किया गया है। आप जानते हैं कि उस निर्णय में 'इसके बाद' कैसे शामिल किया गया। आपने जस्टिस बोपन्ना के समक्ष उल्लेख किया कि पुराने मामलों को उस आधार पर नहीं खोला जाना चाहिए। इसलिए वह शब्द जोड़ा गया था। ऐसे मामलों में जहां चुनौती पहले से ही लंबित है, आप यह नहीं कह सकते कि यह पहले से ही समाप्त हो चुका मामला था। यह मामला लंबित था।"

आदेश सुनाने से पहले जस्टिस खन्ना ने यह भी कहा,

"जो लोग 16-17-18 महीने से जेल में हैं, उनके लिए मुकदमा चलाने की कोई संभावना नहीं है। जहां तक ​​उनकी गिरफ्तारी का सवाल है, यह कानून का उल्लंघन है। हम कानून के शासन के सिद्धांतों का पालन करते हैं।"

अंततः, सिंघल को ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए जाने वाले नियमों और शर्तों पर रिहा करने का आदेश दिया गया।

इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ शर्तें लगाई गईं, जो इस प्रकार हैं:

(1) अपीलकर्ता धारा 438(2) सीआरपीसी की आवश्यकता का अनुपालन करेगा।

(2) अपीलकर्ता एक टेलीफोन नंबर उपलब्ध कराएगा, जिस पर ईडी के अधिकारी उसके ठिकाने और उपस्थिति का पता लगाने के लिए उससे संपर्क कर सकते हैं।

(3) अपीलकर्ता अपना पासपोर्ट सरेंडर करेगा और कोर्ट की अनुमति के बिना भारत नहीं छोड़ेगा।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि रिहाई के नियमों और शर्तों का उल्लंघन होता है तो अभियोजन पक्ष ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपने आदेश को वापस लेने की मांग कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सिंघल ने तर्क दिया कि उन्हें गिरफ़्तारी का कोई आधार नहीं दिया गया। इस प्रकार पंकज बंसल मामले में निर्धारित कानून का उल्लंघन किया गया। याचिका पर 25 जून को नोटिस जारी किया गया।

केस टाइटल: नीरज सिंघल बनाम प्रवर्तन निदेशालय, डायरी नंबर 15175-2024

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