सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारी को बहाल न करने के लिए हाईकोर्ट और पंजाब सरकार की आलोचना की
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट और पंजाब राज्य द्वारा न्यायिक अधिकारी को बहाल न करने पर अपनी असहमति जताई, जिनकी बर्खास्तगी को सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में पंजाब सरकार द्वारा 2009 में पारित आदेश (पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के फुल कोर्ट की सिफारिश के आधार पर) खारिज कर दिया था, जिसमें न्यायिक अधिकारी की सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला भी खारिज कर दिया, जिसमें अधिकारी की बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी गई थी। इसके अलावा, कोर्ट ने हाईकोर्ट के फुल कोर्ट से मामले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फुल कोर्ट ने मामले पर पुनर्विचार किया और अधिकारी की सेवाएं समाप्त करने के लिए 2009 में की गई अपनी पिछली सिफारिश को दोहराया। इसके बाद पंजाब राज्य ने 29.01.2024 को आदेश पारित कर 17.12.2009 (वह तारीख जब हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ शिकायतों के आधार पर उनसे काम वापस ले लिया था) से पूर्वव्यापी प्रभाव से अधिकारी की सेवाएं समाप्त कर दीं।
इस पृष्ठभूमि में अधिकारी ने निपटाई गई याचिका में विविध आवेदन दायर किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार सेवा में बहाली की मांग की गई।
आवेदन पर विचार करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की खंडपीठ ने कहा कि अधिकारी की बर्खास्तगी को रद्द किए जाने के बाद उसे बहाल न करने का कोई औचित्य नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
"जब सेवा समाप्ति आदेश को रद्द कर दिया जाता है और उक्त सेवा समाप्ति आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज करने वाला हाईकोर्ट का फैसला भी रद्द कर दिया जाता है, तो स्वाभाविक परिणाम यह है कि कर्मचारी को सेवा में वापस ले लिया जाना चाहिए। उसके बाद निर्देशों के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए। जब सेवा समाप्ति आदेश रद्द कर दिया जाता है तो कर्मचारी को सेवा में माना जाता है। हमें 20.04.2022 के आदेश के बाद अपीलकर्ता को सेवा में वापस न लेने में हाईकोर्ट और राज्य की निष्क्रियता में कोई औचित्य नहीं दिखता। अपीलकर्ता को सेवा में वापस लेने के बारे में हाईकोर्ट या राज्य द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया और सेवा समाप्ति आदेश पारित होने की तारीख से लेकर बहाली की तारीख तक पिछले वेतन के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया, जो इस न्यायालय के निर्णय की तारीख होनी चाहिए।"
न्यायालय ने पाया कि अधिकारी कम से कम 20.04.2022 के निर्णय की तारीख से 02.04.2024 को नए सिरे से सेवा समाप्ति आदेश पारित होने तक वेतन पाने का हकदार था। न्यायालय ने माना कि वह अपीलकर्ता को निरंतर सेवा में मानते हुए सभी स्वीकार्य लाभों के साथ गणना की जाने वाली उपरोक्त अवधि के लिए पूर्ण वेतन का हकदार होगा।
जहां तक 18.12.2009 यानी 17.12.2009 के समाप्ति आदेश के बाद से लेकर इस न्यायालय के निर्णय और आदेश से पहले की तारीख 19.04.2022 तक की अवधि का सवाल है, न्यायालय का मानना है कि यह निर्देश देकर न्याय की पूर्ति होगी कि अपीलकर्ता को निरंतर सेवा में मानते हुए पिछले वेतन का 50 प्रतिशत पाने का हकदार होगा। ऐसे पिछले वेतन की गणना अपीलकर्ता को कानून के तहत स्वीकार्य सभी लाभों के साथ की जाएगी जैसे कि वह सेवा में था।
हाईकोर्ट के दिनांक 03.08.2023 के प्रस्ताव के आधार पर दिनांक 02.04.2024 के नए समाप्ति आदेश के संबंध में न्यायालय ने कहा कि अधिकारी को नई रिट याचिका के माध्यम से इसे चुनौती देने की स्वतंत्रता होगी।
आवेदक की ओर से सीनियर एडवोकेट पी.एस. पटवालिया उपस्थित हुए तथा हाईकोर्ट की ओर से सीनियर एडवोकेट निधेश गुप्ता उपस्थित हुए। पंजाब के एडिशनल एडवोकेट जनरल गौरव धामा ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया।
केस टाइटल: अनंतदीप सिंह बनाम पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट, चंडीगढ़ तथा अन्य।