क्या SC/ST श्रेणियों का उप-वर्गीकरण अनुमेय है? सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला

Update: 2024-08-01 05:23 GMT

सुप्रीम कोर्ट की सात जजों वाली संविधान पीठ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (SC/ST) के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमेयता पर अपना फैसला सुनाएगी।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस मामले पर तीन दिनों तक सुनवाई करने के बाद इस साल 8 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इस मामले को 2020 में पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में 5 जजों वाली पीठ ने 7 जजों वाली पीठ को सौंप दिया था। 5 जजों वाली पीठ ने पाया कि ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, (2005) 1 एससीसी 394 में समन्वय पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, जिसमें कहा गया कि उप-वर्गीकरण अनुमेय नहीं है।

तीन दिन तक चली सुनवाई में न्यायालय ने अस्पृश्यता के सामाजिक इतिहास, संविधान निर्माताओं के दृष्टिकोण से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की धारणा, भारत में आरक्षण का उद्देश्य और इसे आगे बढ़ाने में अनुच्छेद 341 का महत्व तथा संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के साथ इसके अंतर्संबंधों पर विचार-विमर्श किया।

यह संदर्भ पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 की धारा 4(5) की वैधता से संबंधित मामले में हुआ। इस प्रावधान में यह निर्धारित किया गया कि अनुसूचित जातियों के लिए सीधी भर्ती में आरक्षित कोटे की पचास प्रतिशत रिक्तियां अनुसूचित जातियों के उम्मीदवारों में से प्रथम वरीयता प्रदान करके, उनकी उपलब्धता के अधीन, बाल्मीकि और मजहबी सिखों को दी जाएंगी।

वर्ष 2010 में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की खंडपीठ ने ईवी चिन्नैया निर्णय पर भरोसा करते हुए इस प्रावधान को रद्द कर दिया था।

केस टाइटल: पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह | सी.ए. नंबर 2317/2011

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