प्रथम दृष्टया राज्य गोद लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए जारी निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं: सुप्रीम कोर्ट ने पालन करने का आखिरी मौका दिया
सुप्रीम कोर्ट ने (15 मार्च को) गोद लेने की प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया राज्य गोद लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के पिछले निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं। इसे देखते हुए न्यायालय ने राज्यों को निर्देशों का पालन करने का आखिरी मौका दिया, ऐसा न करने पर न्यायालय बलपूर्वक कार्यवाही का सहारा ले सकता है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ धर्मार्थ ट्रस्ट "द टेम्पल ऑफ हीलिंग" द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी।
पिछले आदेश में कोर्ट ने भारत में गोद लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए कुछ निर्देश जारी किए थे। इनमें विशिष्ट दत्तक ग्रहण एजेंसियों (एसएए) में रिक्तियों को भरना शामिल है।
सुनवाई के दौरान, शुरुआत में ही सीजेआई ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से स्थिति रिपोर्ट के बारे में पूछा।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की शामिल वाली पीठ को एएसजी ने अवगत कराया कि स्टेटस रिपोर्ट दायर की गई, जो दर्शाती है कि राज्य की ओर से और कदम उठाने की आवश्यकता है। इस स्थिति को रेखांकित करते हुए उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आज भी 760 जिलों में से 370 जिलों में कोई SAA कार्य नहीं कर रहा है।
उन्होंने कहा,
“यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि बच्चे को राज्य के केंद्र में नहीं लाया जाएगा। जिला निकायों को कार्यात्मक और क्रियाशील होना होगा।''
इसे देखते हुए उन्होंने अनुरोध किया कि राज्यों को निर्देशों का पालन करने का आखिरी मौका दिया जाए और फिर अदालत के समक्ष अपडेट स्टेटस रिपोर्ट दायर की जाएगी।
इसके बाद "टेम्पल ऑफ हीलिंग" के पदाधिकारी डॉ. पीयूष सक्सेना (याचिकाकर्ता-व्यक्ति) ने अपने द्वारा प्रस्तुत विस्तृत रूपरेखा का उल्लेख किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि उनके द्वारा बताए गए समाधान व्यावहारिक और सरल हैं।
हालांकि, पिछले नवंबर में पारित पिछले आदेश का जिक्र करते हुए सीजेआई ने कहा कि व्यापक निर्देश पहले ही जारी किए जा चुके हैं और कोर्ट उन्हें कार्यान्वयन योग्य बनाना चाहता है। उन्होंने यह भी दोहराया कि 370 जिलों में एसएए नहीं है।
अंततः, न्यायालय ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह उन सुझावों पर गौर करेगा और आगे विचार-विमर्श करेगा कि पहले से पारित निर्देशों को कैसे मजबूत किया जा सकता है।
केस टाइटल: द टेम्पल ऑफ हीलिंग बनाम यूनियन ऑफ इंडिया| WP(C) 1003/2021