विशेष कानूनों के तहत बिना वारंट तलाशी में कारण दर्ज करना अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-09-15 16:14 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि अगर किसी विशेष कानून (Special Enactment) के तहत बिना वारंट तलाशी ली जाती है, तो “कारण दर्ज करना” अनिवार्य है।

कोर्ट की मुख्य बातें

दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 165 (BNSS की धारा 185) कहती है कि अगर वारंट के बिना तलाशी करनी है, तो अधिकारी को यह लिखित रूप से दर्ज करना होगा कि

1. अपराध संबंधी सामग्री होने का विश्वास क्यों है, और

2. तत्काल तलाशी की ज़रूरत क्यों है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानूनी मापविज्ञान अधिनियम, आयकर अधिनियम, सीमा शुल्क अधिनियम, केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम, जीएसटी अधिनियम, एनडीपीएस अधिनियम जैसे विशेष कानूनों में भी तलाशी और ज़ब्ती के लिए CrPC के प्रावधानों का पालन करना आवश्यक है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि तलाशी का कारण केवल संदेह या अनुमान पर आधारित नहीं होना चाहिए। इसके लिए ठोस आधार होना चाहिए, जैसे – किसी तीसरे पक्ष से मिली जानकारी या व्यक्तिगत ज्ञान।

ज़ब्ती (Seizure) करते समय भी अधिकारी को लिखित कारण दर्रज करना होगा और यह दिखाना होगा कि उसने उपलब्ध सामग्री पर सही तरीके से विचार किया है।


केस का संदर्भ

यह मामला कानूनी मापविज्ञान अधिनियम, 2009 से जुड़ा था। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा:

भले ही कभी-कभी आपात स्थिति में वारंट लेना संभव न हो, फिर भी CrPC की धारा 100 लागू होती है।

ऐसे मामलों में भी अधिकारी को तलाशी के कारण विस्तार से दर्ज करने होंगे।


बेंच ने पाया कि:

तलाशी/ज़ब्ती बिना वारंट और बिना लिखित कारण के की गई।

कानूनी मापविज्ञान अधिनियम की धारा 15 और CrPC की धाराएँ 165, 100(4) व 100(5) का उल्लंघन हुआ।

तलाशी के समय दो स्वतंत्र गवाह होना अनिवार्य था, लेकिन यहाँ निरीक्षण अधिकारी के ड्राइवर को गवाह बना दिया गया, जो क़ानून के विपरीत है।


निष्कर्ष

कोर्ट ने कहा कि जब शुरुआत ही क़ानून के अनुसार न हो, तो आगे की सारी कार्यवाही भी अवैध मानी जाएगी। इसलिए

तलाशी और ज़ब्ती को अवैध घोषित किया गया,

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच का आदेश रद्द कर दिया गया,

और सिंगल बेंच का आदेश बहाल कर दिया गया।

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