S. 102(3) CrPC | मजिस्ट्रेट को देरी से रिपोर्ट करने के कारण पुलिस की जब्ती पूरी तरह से व्यर्थ नहीं होगी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (13 मई) को कहा कि पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट को जब्ती रिपोर्ट की रिपोर्ट करने में देरी से दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 102(3) के तहत पुलिस द्वारा जब्ती की कार्रवाई व्यर्थ नहीं होगी।
हाईकोर्ट के निष्कर्षों के फैसले को उलटते हुए जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने कहा कि हालांकि कानून के अनुसार पुलिस को जब्ती रिपोर्ट 'तत्काल' (जितनी जल्दी हो सके' के रूप में व्याख्या की गई) भेजने की आवश्यकता है, लेकिन मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजने में देरी से पुलिस द्वारा पूरी तरह से जब्ती की कार्रवाई व्यर्थ नहीं होगी।
हाईकोर्ट ने अपने उक्त फैसले में जब्ती रिपोर्ट को दोषपूर्ण घोषित किया गया था, क्योंकि रिपोर्ट तुरंत मजिस्ट्रेट को नहीं भेजी गई थी।
जस्टिस अरविंद कुमार द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया,
“इसलिए यह तय करने में कि क्या पुलिस अधिकारी ने सीआरपीसी की धारा 102(3) के तहत अपने दायित्व का ठीक से निर्वहन किया, मजिस्ट्रेट को सबसे पहले यह जांचना होगा कि क्या जब्ती की तुरंत सूचना दी गई। ऐसा करने में इसे अभिव्यक्ति की व्याख्या का ध्यान रखना चाहिए, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई। यदि उसे पता चलता है कि रिपोर्ट तुरंत नहीं भेजी गई तो उसे यह जांच करनी चाहिए कि क्या देरी के समर्थन में कोई स्पष्टीकरण दिया गया। यदि मजिस्ट्रेट को पता चलता है कि देरी को उचित रूप से समझाया गया तो वह मामले को वहीं छोड़ देगा। हालांकि, अगर उसे पता चलता है कि देरी के लिए कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं है या अधिकारी ने जानबूझकर उपेक्षा/अवांछित लापरवाही बरती है तो वह ऐसे दोषी अधिकारी के खिलाफ उचित विभागीय कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दे सकता है। हम एक बार फिर दोहराते हैं कि इस तरह की देरी के कारण जब्ती का कार्य ख़राब नहीं होगा, जैसा कि ऊपर विस्तार से चर्चा की गई।''
संक्षेप में, सीआरपीसी की धारा 102(3) अपराध से जुड़ी जब्ती करने का अधिकार क्षेत्र रखने वाले पुलिस अधिकारी को अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट को जब्ती की रिपोर्ट 'तुरंत' करने का आदेश देता है।
वर्तमान मामले में दिनांक 09.01.2023 को पुलिस के आदेश पर बैंक द्वारा आरोपी का बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिया गया। 27.01.2023 को धारा 102(3) के अनुसार बैंक अकाउंट फ्रीज करने की जब्ती रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजी गई।
मजिस्ट्रेट द्वारा बैंक अकाउंट को डी-फ़्रीज़ करने का आवेदन अस्वीकार कर दिए जाने के बाद आरोपी ने इस आधार पर अपने बैंक अकाउंट को डी-फ़्रीज़ करने की प्रार्थना करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि जब्ती (उसके बैंक खाते को फ़्रीज़ करना) का आदेश नहीं दिया गया।
अभियुक्त की याचिका स्वीकार करने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ शिकायतकर्ता/अपीलकर्ता सुप्रीम कोर्ट में चले गए।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विवादास्पद प्रश्न यह था कि क्या मजिस्ट्रेट को जब्ती की देरी से रिपोर्ट करने से जब्ती आदेश पूरी तरह से व्यर्थ हो जाएगा।
नकारात्मक उत्तर देते हुए न्यायालय ने 'तुरंत' शब्द के विधायी इरादे पर जोर देते हुए इसका अर्थ 'जितनी जल्दी हो सके' बताया।
अदालत ने कहा,
"ऊपर की गई चर्चा से यह उभर कर सामने आएगा कि अभिव्यक्ति 'तुरंत' का अर्थ है 'जितनी जल्दी हो सके', 'उचित गति और शीघ्रता के साथ', 'तत्कालता की भावना के साथ' और 'बिना किसी अनावश्यक देरी के'। दूसरे शब्दों में, इसका अर्थ जितनी जल्दी हो सके, उस उद्देश्य के संदर्भ में निर्णय लेना होगा, जिसे हासिल करना या पूरा करना है।''
न्यायालय के अनुसार, 'तुरंत' शब्द का उचित अर्थ लगाया जाना चाहिए यानी, किए जाने वाले कार्य या चीज़ की प्रकृति और मामले की मौजूदा परिस्थितियों को पूरा करने के लिए आवश्यक चर।
अदालत ने आगे कहा,
“जब यह कानून का आदेश नहीं है कि कार्य निश्चित समय के भीतर किया जाना चाहिए तो इसका मतलब यह होगा कि कार्य उचित समय के भीतर किया जाना चाहिए। यह सब उन परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जो किसी दिए गए मामले में सामने आ सकती हैं। इस संबंध में कोई सीधा-सीधा फॉर्मूला निर्धारित नहीं किया जा सकता। उस अर्थ में 'तुरंत' शब्द की व्याख्या उस इलाके पर निर्भर करेगी, जिसमें यह यात्रा करता है और मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर अपना रंग लेगा जो परिवर्तनशील हो सकता है।'
उपरोक्त टिप्पणी को वर्तमान मामले में लागू करते हुए अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट को जब्ती रिपोर्ट की रिपोर्ट करने में देरी के आधार पर पुलिस द्वारा जब्ती (बैंक अकाउंट फ्रीज करना) के कार्य को पूरी तरह से रद्द करने में त्रुटि की है।
चूंकि सीआरपीसी की धारा 102(3) के तहत कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है, जिसके भीतर पुलिस को जब्ती की रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को देनी होगी। इसलिए जब्ती की रिपोर्ट प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर उचित समय के भीतर मजिस्ट्रेट को भेजी जानी चाहिए।
केस टाइटल: शेंटो वर्गीस बनाम जुल्फिकार हुसैन और अन्य।