O 39 R 2A CPC | भले ही निषेधाज्ञा आदेश को बाद में रद्द कर दिया गया हो, पक्षकार अपने पिछले उल्लंघन के लिए उत्तरदायी बनी रहती है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निषेधाज्ञा आदेश बाद में रद्द करने से अदालतों को आदेश के लंबित रहने के दौरान की गई अवज्ञा के लिए पक्षकार को दोषी ठहराने से नहीं रोका जा सकता।
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 39 नियम 2ए के संदर्भ में यह फैसला सुनाया, जो आदेश 39 CPC नियम 1 और 2 CPC के तहत निषेधाज्ञा आदेशों या अन्य आदेशों की अवहेलना करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की प्रणाली को निर्दिष्ट करता है।
नियम 2ए (1) निषेधाज्ञा आदेशों की अवहेलना करने पर सजा निर्धारित करता है। यह अदालत को अवज्ञाकारी पक्ष को संपत्ति की कुर्की या तीन महीने से अधिक अवधि के कारावास से दंडित करने की अनुमति देता है।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि निषेधाज्ञा आदेश के लागू रहने के दौरान भी पार्टी इसका उल्लंघन करने के लिए उत्तरदायी बनी रहती है, भले ही आदेश को बाद में रद्द कर दिया गया हो।
न्यायालय का निर्णय समी खान बनाम बिंदु खान (1998) 7 एससीसी 59 के मामले में स्थापित मिसाल पर आधारित था, जहां यह माना गया कि “भले ही निषेधाज्ञा आदेश को बाद में अलग कर दिया गया हो, लेकिन अवज्ञा मिट नहीं जाती है।”
केस टाइटल: लावण्या सी और अन्य बनाम विट्ठल गुरुदास पाई, एलआरएस द्वारा मृत एवं अन्य।