ऐसा कोई पूर्ण नियम नहीं कि अगर जांच प्रारंभिक चरण में है तो हाईकोर्ट CrPC की धारा 482 के तहत दायर याचिका में हस्तक्षेप नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ऐसा कोई पूर्ण नियम नहीं कि अगर जांच प्रारंभिक चरण में है तो हाईकोर्ट CrPC की धारा 482 के तहत दायर याचिका में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
जस्टिस एएस ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर निर्णय ले रही थी, जिसमें कोयंबटूर एजुकेशन फाउंडेशन नामक ट्रस्ट के धन का अपने निजी उपयोग के लिए दुरुपयोग करने के अपराध के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार कर दिया गया।
जबकि याचिकाकर्ताओं और वास्तविक शिकायतकर्ता के बीच दीवानी कार्यवाही न्यायालय में लंबित थी, शिकायतकर्ता ने ट्रस्ट के नाम पर स्टूडेंट्स से कथित रूप से 4,30,00,000/- रुपये की कुल फीस वसूलने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जांच को आगे बढ़ाने के लिए कुछ सामग्री मौजूद है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि वर्तमान मामले में शामिल मुद्दा सिविल प्रकृति का है।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए आदेश के पैराग्राफ 7 में आगे कहा:
"इसके अनुसार, यह आपराधिक मूल याचिका खारिज की जाती है। हालांकि, याचिकाकर्ताओं को कानून प्रवर्तन एजेंसी के समक्ष FIR की सामग्री को गलत साबित करने के लिए सभी आवश्यक दस्तावेज पेश करने की स्वतंत्रता दी जाती है और कानून प्रवर्तन एजेंसी अपराध की संज्ञेयता के अधीन मामले को तथ्य की गलती के रूप में संदर्भित करेगी। परिणामस्वरूप, विविध याचिका बंद की जाती है।"
हाईकोर्ट के दृष्टिकोण के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"शायद हाईकोर्ट का यह विचार था कि जांच में "प्रारंभिक अवस्था" में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।
हालांकि, इसने आगे कहा कि ऐसा कोई कठोर नियम नहीं है कि यदि जांच प्रारंभिक अवस्था में है तो न्यायालय CrPC की धारा 482 याचिका में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
"ऐसा कोई पूर्ण नियम नहीं है कि भले ही जांच प्रारंभिक अवस्था में हो, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाला न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।"
आक्षेपित आदेश के पैराग्राफ 7 का हवाला देते हुए खंडपीठ ने हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से असहमति जताई और कहा कि उसने सुनवाई में मामले की खूबियों को नजरअंदाज किया।
"CrPC की धारा 482 के तहत याचिका पर विचार करते समय, जैसा कि पैराग्राफ 7 में देखा जा सकता है, हाईकोर्ट की ओर से ऐसा दृष्टिकोण अनसुना है। हम इस विवादित निर्णय से केवल इतना ही देख सकते हैं कि हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं की प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त करने की याचिका पर गुण-दोष के आधार पर विचार नहीं किया।"
खंडपीठ ने विवादित आदेश निरस्त कर दिया तथा मामले को गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से सुनवाई के लिए वापस भेज दिया। इसने हाईकोर्ट की रजिस्ट्री (न्यायिक) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि बहाल की गई याचिका हाईकोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध की जाए।
केस टाइटल : कुलंदईसामी एवं अन्य बनाम राज्य का प्रतिनिधित्व उसके पुलिस निरीक्षक एवं अन्य द्वारा किया गया। विशेष अपील अनुमति (सीआरएल) संख्या 14318/2024