National Housing Bank Act | कंपनी के व्यवसाय के लिए जिम्मेदार होने की विशेष दलील के बिना निदेशकों के लिए कोई प्रतिनिधि दायित्व नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-08-03 05:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नेशनल हाउसिंग बैंक एक्ट, 1987 (National Housing Bank Act) के तहत कंपनी द्वारा किए गए अपराध के लिए कंपनी के निदेशकों के खिलाफ शिकायत में यह स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए कि निदेशक अपराध के समय कंपनी के व्यवसाय के लिए जिम्मेदार थे।

जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने सीआरपीसी की धारा 200 के तहत कंपनी के निदेशकों के खिलाफ शिकायत खारिज की, जिसमें 1987 के अधिनियम की धारा 29ए के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।

न्यायालय ने कहा,

“ऐसा कोई दावा नहीं किया गया कि अपराध के समय दूसरे से सातवें आरोपी पहले आरोपी कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार थे। जब तक धारा 50 की उपधारा (1) के अनुसार अपेक्षित दावे नहीं किए जाते, तब तक प्रथम आरोपी कंपनी के निदेशकों की प्रतिनिधिक जिम्मेदारी नहीं बनती। इसलिए शिकायत में 1984 अधिनियम की धारा 50 की उपधारा (1) के अनुसार अभिकथनों के अभाव में ट्रायल कोर्ट तीसरे से सातवें आरोपियों के खिलाफ अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता, जो कथित तौर पर प्रथम आरोपी कंपनी के निदेशक हैं।"

इस मामले में प्रथम आरोपी एक कंपनी है, जबकि दूसरा आरोपी इसका प्रबंध निदेशक है तथा अन्य पांच आरोपी इसके निदेशक हैं। शिकायत के कारण मजिस्ट्रेट ने धारा 29ए(आई) के साथ धारा 50 के तहत कथित अपराधों का संज्ञान लिया, जो 1987 अधिनियम की धारा 49(2ए) के तहत दंडनीय है, जिसमें न्यूनतम एक वर्ष की सजा निर्धारित की गई है, जिसे पांच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। धारा 29ए(आई) में प्रावधान है कि कोई भी आवास वित्त संस्थान जो एक कंपनी है, रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट प्राप्त किए बिना और दस करोड़ रुपये या ऐसी अन्य उच्च राशि की शुद्ध स्वामित्व वाली निधि के बिना आवास वित्त का व्यवसाय अपने मुख्य व्यवसाय के रूप में शुरू या जारी नहीं रख सकता, जैसा कि रिजर्व बैंक अधिसूचना द्वारा निर्दिष्ट कर सकता है।

हाईकोर्ट ने 1987 अधिनियम की धारा 50(1) आवश्यकताओं का अनुपालन न करने का हवाला देते हुए शिकायत पूरी तरह से खारिज की, जो परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 141 के समान है। शिकायतकर्ता ने वर्तमान अपील में इस आदेश को चुनौती दी।

अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि शिकायत ने 1987 अधिनियम की धारा 29ए(आई) के उल्लंघन को पर्याप्त रूप से प्रदर्शित किया। वकील ने इस बात पर जोर दिया कि दूसरे आरोपी की पहचान प्रबंध निदेशक के रूप में की गई, जिसका अर्थ है कि वह कंपनी के व्यवसाय का प्रभारी और जिम्मेदार था। अपीलकर्ता ने दावा किया कि शिकायत में अन्य आरोपियों को भी फंसाने के लिए पर्याप्त आरोप शामिल थे।

अभियुक्त के वकील ने हाईकोर्ट के निर्णय का समर्थन करते हुए तर्क दिया कि शिकायत में 1987 अधिनियम की धारा 50(1) के अनुसार आवश्यक कथन शामिल नहीं किए गए।

1987 अधिनियम की धारा 50 में यह प्रावधान है कि अपराध किए जाने के समय कंपनी के प्रभारी और जिम्मेदार प्रत्येक व्यक्ति को दोषी माना जाता है। न्यायालय ने उल्लेख किया कि 1987 अधिनियम की धारा 50(1) NI Act की धारा 141 के समरूप है।

शिकायत के पैराग्राफ 9 में कंपनी की संरचना और अभियुक्तों की भूमिकाओं का वर्णन किया गया, जिसमें कहा गया कि सभी कंपनी के व्यवसाय के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार थे। हालांकि, न्यायालय ने पाया कि शिकायत में विशेष रूप से यह दावा नहीं किया गया कि कथित अपराध के समय कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए तीसरे से सातवें अभियुक्त जिम्मेदार थे।

न्यायालय ने एसएमएस फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड बनाम नीता भल्ला एवं अन्य के मामले में पिछले फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि NI Act की धारा 141 के तहत निदेशक की जिम्मेदारी स्थापित करने के लिए विशिष्ट कथन आवश्यक हैं। यह माना गया कि केवल निदेशक होना ही पर्याप्त नहीं है; शिकायत में प्रासंगिक समय पर कंपनी के व्यावसायिक आचरण में निदेशक की भागीदारी को स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए।

वर्तमान मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रबंध निदेशक के रूप में दूसरे आरोपी को कंपनी के व्यवसाय का प्रभारी और जिम्मेदार माना जाता है। न्यायालय ने पहले आरोपी कंपनी और दूसरे आरोपी के खिलाफ शिकायत को खारिज करने का कोई औचित्य नहीं पाया।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे से सातवें आरोपी के खिलाफ शिकायत खारिज करते हुए विवादित आदेश को संशोधित किया। न्यायालय ने निर्देश दिया कि पहली आरोपी कंपनी और दूसरे आरोपी के खिलाफ शिकायत कानून के अनुसार आगे बढ़े।

केस टाइटल- नेशनल हाउसिंग बैंक बनाम भेरुदन दुगर हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड और अन्य।

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