Narendra Dabholkar Murder : सुप्रीम कोर्ट ने जांच की निगरानी खत्म करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

Update: 2024-01-08 12:35 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में अंधविश्वास विरोधी योद्धा नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की अदालत की निगरानी में जांच बंद करने को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार (8 जनवरी) को खारिज की।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने हालांकि याचिकाकर्ता-मुक्ता दाभोलकर (नरेंद्र दाभोलकर की बेटी) के लिए यह खुला छोड़ दिया कि वे आपराधिक मामलों से संबंधित कोई भी सामग्री सीबीआई को प्रदान करें, जिसे CBI "ध्यान में रखेगी और कानून के अनुसार आगे बढ़ें"।

आदेश पारित करते हुए कोर्ट ने कहा,

"प्रथम दृष्टया, हम हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। तदनुसार, याचिका खारिज कर दी जाती है। हालांकि, हम याचिकाकर्ता के लिए यह खुला छोड़ते हैं कि वह ऐसी कोई भी सामग्री प्रदान करे, जो विचाराधीन आपराधिक मामलों से संबंधित याचिकाकर्ता के लिए उपयोगी हो सकती है। इसे सीबीआई को दिया जाए, जो इस पर विचार करेगी और कानून के अनुसार आगे बढ़ेगी।''

यह देखा गया कि जांच की निगरानी जारी रखने से इनकार करने वाला बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश उचित है और निगरानी किसी पक्षकार की मर्जी से नहीं की जा सकती।

बेंच ने मौखिक रूप से टिप्पणी की,

"अदालतें निगरानी और हर चीज़ के लिए नहीं हैं..."।

सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर वकील आनंद ग्रोवर ने आग्रह किया कि वर्तमान मामला गंभीर है और बड़ी साजिश की जांच की जानी चाहिए।

कोर्ट ने कहा,

"क्योंकि अन्यथा आप केवल उन लोगों के साथ बचे हैं, जो दिन के अंत में शूटिंग कर रहे हैं। पूरे मामले के पीछे का मास्टरमाइंड नहीं"।

इस पर कोर्ट ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता को पता है कि मास्टरमाइंड कौन है? उत्तर नकारात्मक दिया गया। दलील दी गई कि इसकी जांच सीबीआई करेगी। तदनुसार, खंडपीठ ने अपना आदेश पारित किया।

विशेष रूप से, एक्टिविस्ट केतन तिरोडकर और बाद में दाभोलकर की बेटी मुक्ता दाभोलकर की याचिका के बाद हत्या की जांच 2014 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे पुलिस से सीबीआई को ट्रांसफर कर दी। इसके बाद से मामले की प्रगति पर हाईकोर्ट की ओर से नजर रखी जा रही है।

पिछले साल अप्रैल में हाईकोर्ट ने यह कहते हुए जांच की निगरानी जारी रखने से इनकार कर दिया कि निगरानी स्थायी नहीं हो सकती।

अदालत ने कहा,

"हालांकि कुछ निगरानी ठीक है, लेकिन कानून स्पष्ट है कि जब आरोप पत्र दायर किया जाता है तो आरोपी के अधिकारों पर विचार किया जाना चाहिए।"

इससे व्यथित मुक्ता दाभोलकर ने सीबीआई के इस बयान पर भरोसा करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया कि मामले की जांच जारी है। पिछली सुनवाई पर सीनियर वकील आनंद ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान सीबीआई के उस बयान की ओर आकर्षित किया, जिसमें कहा गया कि दो फरार आरोपियों और "बड़े पैमाने पर साजिश" में शामिल अन्य लोगों के संबंध में जांच जारी है।

इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि सीबीआई मुख्यालय ने जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर कोई निर्णय नहीं लिया। अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सीबीआई द्वारा हाईकोर्ट से 4 सप्ताह का समय मांगा गया था।

केस टाइटल: मुक्ता दाभोलकर और अन्य बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो और अन्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 6539/2023

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